- अवमानना के मामलों में अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दी दलीलें
- 'आरोपी के निजी वाट्सअप संदेशों को टीवी चैनल पर दिखाया जाना गलत'
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह 'खतरनाक' प्रवृति है, इस पर रोक लगनी चाहिए
नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे की तरफ से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग का मुद्दा उठाए जाने के कुछ दिनों बाद अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अदालत की अवमानना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच तत्काल एक संतुलन कायम करने की जरूरत है क्योंकि मीडिया ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करने लगा है जिसको लेकर 'मनाही' है। अवमानना के मामलों से जुड़े व्यापक मसलों एवं वकील प्रशांत भूषण के केस को सामने रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई एवं जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ को बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार ने 'आज गंभीर रूप ले लिया है।'
अटॉर्नी जनरल ने आरोपी के अधिकार का हवाला दिया
अटॉर्नी जनरल ने जो दलीलें दीं उससे जाहिर हुआ कि वह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले पर टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग का हवाला दे रहे थे। उन्होंने कहा, 'अदालत में एक जमानत अर्जी दायर होती है और टीवी चैनल वाट्सअप पर आरोपियों के बीच हुई बातचीत को लेकर बाल की खाल निकालने लगते हैं। यह आरोपी के अधिकारों के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ न्याय के प्रशासन के लिए काफी खतरनाक है।'
समाचार पत्रों में छपते हैं बड़े-बड़े लेख
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि बड़े मामलों की सुनवाई और उन पर फैसला आने से पहले समाचार पत्रों में राय व्यक्त करते हुए लेख लिखे जाते हैं। उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जब भी कोई बड़ा मामला सुनवाई के लिए आता है, समाचार पत्रों में बड़े-बड़े लेख छपते हैं और इन लेखों में संभावित फैसले के अच्छे और बुरे परिणामों की चर्चा होती है। कोर्ट को यह भी सलाह दी जाती है कि जनता किस फैसले को पसंद करेगी। इन सभी चीजों की मनाही है।'
प्रशांत भूषण के मामले पर हुई सुनवाई
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ साल 2009 में दर्ज किए गए अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल कहा कि 'प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया स्वतंत्र रूप से लंबित मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं, जो एक मामले के परिणाम को प्रभावित करने का एक प्रयास है।' उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत यह तय करने के दौरान कि किस तरह के भाषण और प्रकाशन में अदालत की अवमानना हो सकती हैं और उन्हें इन मुद्दों पर भी विचार करना चाहिए। भूषण का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भूषण की अवमानना मामले में इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एजी के सुझावों से असहमति जताई। मामले में सुनवाई को कोर्ट ने चार नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।