- 2014 से लगातार अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा को भाजपा के खिलाफ हार मिल रही है।
- उप चुनाव में चुनाव प्रचार से अखिलेश यादव की दूरी पर भी सवाल उठ रहे हैं।
- मायावती और ओवैसी की नजर मुस्लिम वोटर पर है।
Azamgarh, Rampur By Election 2022: वैसे तो आजमगढ़ (Azamgarh)और रामपुर (Rampur) में लोकसभा की 2 सीटों पर हुए उप चुनाव के रिजल्ट आए हैं । लेकिन समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के गढ़ में भाजपा (BJP) के जीत ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। और यह सवाल कोई और नहीं विपक्ष के नेता उठा रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) ने यहां तक कह दिया कि केवल बीएसपी में ही भाजपा को हराने की सैद्धान्तिक व जमीनी शक्ति है। इसके अलावा AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने कहा कि रामपुर और आजमगढ़ चुनाव के नतीजे से साफ जाहिर होता है कि सपा में भाजपा को हराने की न तो काबिलियत है और न कुव्वत।
साफ है कि चाहे मायावती हो या ओवैसी वह नतीजों के बाद वोटरों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं, कि जो मतदाता भाजपा को हराना चाहता है, उसे यह समझ लेना चाहिए कि समाजवादी पार्टी के अंदर भाजपा को हराने की क्षमता नहीं रह गई है। इसके लिए वह 2014, 2019 के लोकसभा और 2017, 2022 के विधानसभा के साथ मौजूदा उप चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत की याद दिला रहे हैं। असल में विपक्षी नेताओं की उस मुस्लिम मतदाता पर नजर है जो पिछले 2 लोकसभा और 2 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का बड़ा वोट बैंक रहा है।
योगी आदित्यनाथ और अखिलेश की कार्यशैली में बड़ा फर्क
चाहे विधानसभा चुनाव की बात हो या फिर 2 सीटों पर हुए उप चुनाव, इस बात को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि अखिलेश यादव फुल टाइम राजनीति नहीं कर रहे हैं। मसलन आजमगढ़ और रामपुर उप चुनाव में प्रचार ही नहीं किया। उनकी इस रणनीति पर ओवैसी ने सवाल उठाते हुए कहा है कि अखिलेश यादव को इतना अहंकार है कि वह जनता को जाकर यह भी बताने की जरूरत नहीं समझते हैं कि वह, वहां से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
कुछ इसी तरह के सवाल विधानसभा चुनाव के दौरान भी उठे थे। मार्च में चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना था कि जिस तरह विपक्ष का अखिलेश यादव को सपोर्ट मिल रहा था, वैसा फायदा वह जनता के बीच नहीं उठा सके। उन्होंने 2022 की लड़ाई के लिए पूरी 5 साल मेहनत नहीं की और चुनाव के एक साल पहले से ही ज्यादा सक्रिय हुए।
जबकि भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद भी उप चुनाव में पूरी सक्रियता दिखाई । रामपुर और आजमगढ़ में भाजपा के दर्जन भर से ज्यादा मंत्री उप चुनाव के लिए मैदान में थे। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार की अगुआई कर रहे थे। और इसका असर नतीजों के रूप में दिखा। जिस तरह भाजपा हमेशा इलेक्शन मोड में रहती है, ऐसे में यह तो साफ है कि 2024 में अखिलेश यादव के लिए अपनी मौजूदा रणनीति के सहारे भाजपा को हराना आसान नहीं होगा।
मुस्लिम वोटर के अब कई उम्मीदवार
रामपुर उत्तर प्रदेश के उन जिलों में हैं, जहां पर 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। और यही कारण है कि आजम खान वहां से 10 बार से विधायक हैं। और उनके परिवार का, रामपुर की राजनीति पर अच्छा खासा प्रभाव रहा है। इसके बावजूद रामपुर में सपा की हार हुई है। यह हार इसलिए भी मायने रखती है कि उप चुनाव में बसपा ने अपनी उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था। इसके बावजूद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद आसिम रजा, भाजपा के उम्मीदवार घनश्याम सिंह लोधी से 42 हजार से ज्यादा के बड़े अंतर से चुनाव हार गए। इस बात का संकेत है कि भाजपा के खिलाफ गैर सपाई वोटर एकजुट हो गया।
इसी तरह आजमगढ़ में करीब 27 फीसदी यादव और 23 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। जिनका गठजोड़ सपा के लिए हमेशा से फायदेमंद रहा है। लेकिन चुनाव में बसपा की मौजूदगी ने इस समीकरण को बिगाड़ दिया। उप चुनाव में बसपा उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 29.27 फीसदी वोट मिल गए। जाहिर है कि अखिलेश यादव के मुस्लिम वोटों में बसपा ने बड़ी सेंध लगाई है। जिसका जिक्र मायावती कर रही हैं।
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2024 में अखिलेश के लिए नई चुनौती
उप चुनावों से उत्साहित मायवाती ने ट्वीट कर लिखा है कि सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं बल्कि बीएसपी की पूरे यूपी में 2024 लोकसभा आमचुनाव के लिए जमीनी तैयारी को वोट में बदलने हेतु भी संघर्ष व प्रयास लगातार जारी रखना है। इस क्रम में एक समुदाय विशेष को आगे होने वाले सभी चुनावों में गुमराह होने से बचाना भी बहुत जरूरी है। जाहिर है मायावती मुस्लिम मतदताओं को गुमराह नहीं होने की बात कर रही है।
असल में 2022 का विधानसभा चुनाव जिस तरह भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी हुआ था, उसका बड़ा फायदा उसे सीटों के रूप में मिला। सपा गठबंधन को न केवल 125 सीटें मिली थी बल्कि उसे 36 फीसदी वोट भी मिले थे।
लेकिन ऐसी राह 2022 में नहीं दिखने वाली है। क्योंकि न केवल मायावती बल्कि ओवैसी भी मुस्लिम वोटर को अपने पाले में लाने की कोशिश करेंगे। क्योंकि प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम और 23 फीसदी दलित आबादी है। और आजमगढ़ में बसपा को मिले 2.66 लाख वोट से उत्साहित मायावती , मुस्लिम-दलित वोटर को एक बार फिर अपने पाले में लाने की उम्मीद कर रही हैं। अब देखना यह कि अखिलेश यादव आने वाले समय में क्या रणनीति अपनाते हैं।