पटना: आजादी के बाद महात्मा गांधी के स्वावलंबन के सपनों और लोगों के रोटी, कपड़ा और मकान के लिए गठित श्रम भारती 'खादीग्राम' को आज खुद दूसरों की मदद की दरकार आन पड़ी है। अखिल भारत चरखा संघ द्वारा 30 नबंवर 1943 को बिहार के जमुई जिले के नूमर गांव में भागलपुर के सुल्तानगंज के राजा कलानंद सिंह बहादुर से जमीन खरीदकर खादीग्राम भवन की स्थापना की गई थी। महात्मा गांधी की अपील पर डॉ़ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में 1948 में सर्व सेवा संघ का उदय हुआ। इसके बाद 13 और 14 मार्च 1948 को सर्वसेवा संघ में भारतीय चरखा संघ का विलय हो गया।
गांधीवादी विचारक प्रसून लतांत बताते हैं कि विलय के बाद देशभर में फैली अखिल भारतीय चरखा संघ की संपत्तियां सर्व सेवा संघ के नाम स्थानांतरित हो गईं। साथ ही अखिल भारतीय चरखा संघ की गतिविधियों के संचालन की जिम्मेदारी भी सर्व सेवा संघ पर आ गई।
अखिल भारतीय चरखा संघ के अध्यक्ष धीरेंद्र मजूमदार सर्व सेवा संघ के पहले अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में सर्व सेवा संघ ने 12 मार्च 1952 को 'श्रम भारती' नाम से अपना केंद्र शुरू किया। उनके आह्वान पर देशभर के सवरेदय कार्यकर्ताओं ने अपने श्रमदान से इसे विकसित कर फलों के बगीचे लगाए तथा तालाब आदि बनाए। बाद में यह सवरेदय कार्यकर्ताओं का राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र बन गया।
लतांत ने आईएएनएस से कहा, 'वर्ष 1957 में डॉ़ राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खादीग्राम के भ्रमण के दौरान धीरेन मजूमदार को खादी के विकास को जारी रखने की सलाह दी थी। यू.एऩ डेवर, आचार्य जी़ बी़ कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, जाकिर हुसैन ने यहां आकर कार्यो को सराहा और स्वयंसेवियों का उत्साहवर्धन किया।'
उन्होंने यहां ना केवल तालाब खुदवाए गए, बल्कि गृहिणी विद्यालय और श्रमशाला की भी स्थापना की गई। आचार्य राममूर्ति भी यहां आए और श्रम भारती की कमान संभाली। उनके कार्य संभलते ही आधुनिकता के साथ स्वावलंबन की कवायद शुरू की। खेती को आधार बनाया और कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना करवाई।
आचार्य राममूर्ति के साथ काम कर चुकी मुजफफरपुर की रहने वाली मंजरी सिंह बताती हैं, "आचार्य के निधन के बाद हालात तेजी से बदलते गए और वर्तमान में खादीग्राम के हालात यह बयान करने को काफी हैं कि बापू के स्वावलंबन का सपना यहां अधूरा रह गया। अब न यहां कपास की खेती होती, न ही खादी पर मंथन।"
उन्होंने बताया कि जंगली इलाके की कुव्यवस्था को देखकर आचार्य राममूर्ति ने जर्मन महिला मैरी बहन के सहयोग से जंगली क्षेत्र के बच्चियों में शिक्षा के लिए गृहिणी विद्यालय की स्थापना 18 अप्रैल, 2004 को किया था। इस विद्यालय में वर्ग एक से लेकर छह तक की पढ़ाई के लिए आवासीय व्यवस्था की गई।
वे बताती हैं कि इस विद्यालय में बच्चियों के रहने, खाने एवं उसे स्वाबलंबी बनाने के लिए सारे पैसों का इंतजाम जर्मन महिला मैरी बहन किया करती थी। वे कहती हैं कि श्रमभारती की स्थापना के बाद बतौर नर्स मैरी बहन खादी ग्राम घूमने आई थी।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 तक 1000 से ज्यादा बच्चियों को शिक्षा देकर स्वावलंबी बना चुका यह विद्यालय पिछले चार साल से बंद है। इस विद्यालय के बंद होते ही न केवल आदिवासी बच्चियां शिक्षा से मरहूम हो गईं, बल्कि आसपास के कई परिवारों की आजीविका भी छिन गई, जो विद्यालय से जुड़े थे।
मंजरी ने आईएएनएस को बताया कि उन दिनों इस विद्यालय में सिलाई-कढ़ाई, रसोई, गार्डेन, संगीत, पाकशाला सहित अन्य की जानकारी देकर बच्चियों को स्वावलंबी बनाया जाता था। स्थानीय लोग कहते हैं कि जमुई में श्रम भारती खादी ग्राम में तब गांधीवादी लोग इलाके में आते-जाते थे और खेती-किसानी के नए-नए तरीके बताते थे।
स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए श्रमभारती खादीग्राम में वर्ष 1995 में केंद्रीय नगर एवं आवास मंत्रालय ने सस्ते मकान के लिए सामग्री बनानी शुरू की। कैमूर से लेकर किशनगंज तक के लोग इससे लाभान्वित हुए। हुडको ने वर्ष 2013 में इसे बंद कर दिया। परिसर में संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम भी पिछले पांच वर्षो से प्रभावित हैं। कई महीनों से कृषि विज्ञान केंद्र के कर्मियों को वेतन तक नहीं दिया गया है।
सर्व सेवा संघ के संयोजक रमेश पंकज कहते हैं कि यहां कृषि विज्ञान केंद्र शुरू किए जाने से पिछले 20-25 सालों से खादीग्राम उजड़ गया है, घर टूट गए हैं, छप्परों के खपरैल गायब हो गए हैं। कई घरों में घास उग आए हैं। सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष महादेव विद्रोही कहते हैं कि सर्व सेवा संघ अब श्रम भारती का जीर्णोद्घार करेगी। इस संदर्भ में आवश्यक फैसले भी लिए गए हैं। गृहिणी विद्यालय को फिर से शुरू किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि खादीग्राम को सर्व सेवा संघ फिर से उसी स्वरूप मे लाना चाहती है जैसा स्थापना के समय थी। खादीग्राम की गतिविधियों को सुचारु एवं सक्रिय रूप से चलाने के लिए एक संचालन समिति का गठन किया गया है। विद्रोही ने कहा, 'खादीग्राम में फिर से ऐसी गतिविधियां संचालित हों, जिससे यह सर्वोदय का जीवंत केंद्र बन सके, तभी यह बापू के स्वालंबन के सपने को साकार कर सकेगा।'