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कोरोना महामारी में बिहार चुनाव बना नजीर, किसी के हाथ सत्ता आई तो किसी को नसीब हुई पथरीली राह

Updated Dec 15, 2020 | 16:55 IST

वर्ष 2020 की बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक बिहार विधानसभा का चुनाव था। यह चुनाव कई मायनों में खास था क्योंकि कोरोना महामारी के दौर में इसे संपन्न कराया गया और एक बार फिर नीतीश कुमार सत्ता पर काबिज हुए

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नीतीश कुमार में एक बार फिर बिहार की जनता ने भरोसा जताया

कोरोना महामारी के दौर में जब बिहार में चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान किया तो हर किसी के मन में शंका ज्यादा थी कि कहीं यह एक और बड़ी आपदा के रूप में परिवर्तित ना हो जाए। लेकिन नतीजों के ऐलान और उसके बाद की तस्वीर ने सभी शंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया। बिहार में चुनावी घमासान कभी मुद्दों से भटका तो कभी मुद्दों को पकड़े रहा और अंतिम नतीजों ने साफ कर दिया कि बिहार की जनता के दिल में नीतीश कुमार ही बसते हैं।

तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार के कारनामों को उजागर तो किया लेकिन नंबर की लड़ाई में वो पीछे रह गए। इसके साथ ही कई और चेहरे सामने आए जिसमें प्लूयरल पार्टी की पुष्पम प्रिया चौधरी थीं को बिहार में एनडीए से अलग होकर चिराग पासवान अपनी नांव अलग ही खे रहे थे। 

बिहार के चुनाव में बयानों के गोले खूब चले। एक दूसरे के ऊपर निजी आरोप भी लगाए गए। हंगामा तो तब हुआ जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के कुनबे पर टिप्पणी की तो तेजस्वी यादव कहां पीछे रहने वाले थे। तेजस्वी यादव ने कहा था कि जो शख्स मानसिक तौर पर थक चुका है उससे उम्मीद भी क्या किया जा सकता है।


इस चुनाव अभियान में बिहार के कद्दावर चेहरे रहे रामविलास पासवान दुनिया को अलविदा कह चुके थे और उनके बेटे चिराग पासवान के हाथ में एलजेपी की कमान थी। चिराग पासवान ने बिहारी फर्स्ट का नारा देते हुए नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। यह बात अलग है कि चुनावी नतीजों में उन्हें मुंह की खानी पड़ी जिसे स्वीकार करते हुये चिराग पासवान ने कहा कि सत्ता की लड़ाई में नंबर्स का ही महत्व होता है।


बिहार के चुनावी दंगल में राज्य की सूरत और सीरत बदलने का दावा करने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी भी चुनावी मैदान में थीं। लेकिन जनता ने न केवल उन्हें बल्कि उनकी पार्टी प्लूयरल पार्टी को भी नकार दिया। नतीजा यह रहा कि पुष्पम प्रिया दोनों सीटों पर अपनी जमानत बचा पाने में नाकाम रहीं।


इस चुनाव में अगर किसी क्षेत्रीय पार्टी को उभार और फैलाव मिला तो वो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम थी। एआईएमआईएम को सीमांचल इलाके में पांच सीटे मिलीं। जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव की संभावनाओं को अगर सबसे ज्यादा चोट किसी ने पहुंचाया तो वो ओवैसी ही थे।

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