- गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत इनकी रिहाई की मंजूरी दी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।
- दोषी 15 साल की सजा काट चुके हैं।
Bilkis Bano Case: गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगे में गैंग रेप की शिकार बिल्कीस बानो के 20 साल बाद ,जख्म फिर हरे हो गए हैं। मार्च 2002 में दंगाइयों ने बिल्किस बानो के परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी। और फिर उनके साथ गैंगरेप में किया था। वह भी उस हालत में जब बानो 5 महीने की गर्भवती थी। लंबी लड़ाई के बाद बिल्किस बानो को इंसाफ मिला और 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा मिली। लेकिन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने माफी दे दी है।
क्यों हुई रिहाई
पंचमहल के आयुक्त सुजल मायत्रा ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार से दोषी की सजा माफ करने के अनुरोध पर गौर करने का निर्देश दिया था। जिसके बाद सरकार ने एक समिति का गठन किया था। उस समिति के मायत्रा प्रमुख थे।मायत्रा ने बताया कि कुछ महीने पहले पहले गठित समिति ने सर्वसम्मति से मामले के सभी 11 दोषियों को क्षमा करने के पक्ष में निर्णय किया था। उसके बाद राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी और कल हमें उनकी रिहाई के आदेश मिले। और अब उन्हें रिहा कर दिया गया है। इस मामले में जिन 11 दोषियों को रहा किया गया है उनके नाम ये हैं..
जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चन्द्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदाना। इन सभी दोषियों को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया है।
ओवैसी ने दोषियों की रिहाई पर सवाल भी उठाए
बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के बाद राजनीति भी गरमा गई है। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि भाजपा का यह आजादी का अमृत है। जो लोग इतने गंभीर मामले में सजा काट रहे हैं, उन्हें आजादी दी जा रही है।
मिली थी उम्र कैद की सजा
गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत इनकी रिहाई की मंजूरी दी। इसके पहले 21 जनवरी 2008 को मुंबई में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को बिल्कीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने भी सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कैद की सजा काट ली थी, जिसके बाद उनमें से एक दोषी ने समय से पहले रिहाई के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
दोषियों की रिहाई पर मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता शमशाद पठान नेकहा कि बिल्कीस बानो मामले से कम जघन्य और हल्के अपराध करने के जुर्म में बड़ी संख्या में लोग जेलों में बंद हैं और उन्हें कोई माफी नहीं मिल रही है।पठान ने कहा कि सरकार जब इस तरह के फैसले लेती है तो तंत्र पर से लोगों का भरोसा उठने लगता है।
बिल्किस की मांग पर मुंबई में हुआ था ट्रॉयल
पहले बिल्किस बानो के मामले में अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ। लेकिन बिलकिस बानो को इस बात का डर था कि कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया। और विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के आरोप में 21 जनवरी, 2008 को 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। और बाद में बाम्बे हाईकोर्ट ने भी सजा को बरकार रखा।
(एजेंसी इनपुट के साथ)