- म्यांमार और पाकिस्तान में हुई सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी अहम भूमिका रही है।
- वह हाइब्रिड, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध के लिए भी भारतीय सेना को तैयार कर रहे थे।
- अमेरिका, इजरायल के साथ उनके कार्यकाल में सैन्य संबंध मजबूत हुए।
नई दिल्ली: जब साल 2016 में बिपिन रावत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में सरकार ने दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की अनदेखी कर, थल सेनाध्यक्ष बनाया गया था। तो कई सवाल उठे थे, क्योंकि आजाद भारत में ऐसे कम ही मामले मिले हैं, जब वरिष्ठता को दरकिनार कर किसी को सेना प्रमुख बनाया गया था। लेकिन आज जब सीडीएस बिपिन रावत हमारे बीच नहीं है, तो उनकी विरासत को देखकर अंदाजा हो जाता है कि क्यों वरिष्ठता की अनदेखी कर बिपिन रावत को इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली थी।
इसलिए बने थे थल सेना अध्यक्ष
असल में जब उन्हें जूनियर होते हुए भी थल सेना अध्यक्ष बनाया गया था, तो उसके पीछे दलील यह थी कि उनके पास चीन, पाकिस्तान और पूर्वोत्तर भारत के फ्रंट पर काम करने का अच्छा खासा अनुभव था। जो कि भारत की सामरिक दृष्टि को देखते हुए बेहद अनुकूल था। जनरल रावत की पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को काबू करने और म्यांमार में उग्रवादियों के कैंपों को खत्म करने में भी अहम भूमिका रही है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल पर भी वह अच्छा खासा अनुभव रखते थे।
चीन पर पहली बार दिखी ऐसी आक्रमकता
जनरल रावत के इस अनुभव का फायदा चीन के साथ डोकलाम और गलवान घाटी में हुए विवाद में भी दिखा। वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी के ट्वीट से चीन के प्रति जनरल रावत की रणनीति साफ तौर पर समझ में आ जाती है। वह लिखते हैं 'स्पष्ट बोलने और साफ नजरिया रखने वाले जनरल रावत चीन की आक्रामकता के खिलाफ भारत का चेहरा थे। जहां राजनीतिक नेतृत्व की जबान से 'चीन' शब्द नहीं निकल रहा था, तब जनरल रावत साफ-साफ नाम ले रहे थे । उनकी कमी को भरना आसान नहीं होगाा।'
डोकलाम विवाद साल 2017 में हुआ था। वहां उस समय बिपिन रावत थल सेना अध्यक्ष थे। उस वक्त भारत और चीन के बीच दो महीने से ज्यादा गतिरोध की स्थिति बनी थी। उस समय भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए जब भूटान के इलाके में चीन के निर्माण कार्य करने की आपत्ति जताई थी। चीन ऐसी जगह पर निर्माण कर रहा था जो भारत को उत्तरपूर्वी राज्यों से जोड़ने वाले इलाके से नजदीक था। ऐसा शायद पहली बार हुआ था कि भारत ने चीन के साथ जमीनी विवाद पर इस तरह के तेवर दिखाए थे।
इसी तरह लद्दाख की गलवान घाटी में जून 2020 में दोनों सेनाओं के बीच हुए सीधे संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि करीब 50 चीनी सैनिक मारे गए थे। चीन ने भारतीय सीमा के करीब जब सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है तो इसके जवाब में भारत ने भी हिमालय के ऊंचे इलाके में बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर दिए और रणनीतिक बढ़त हासिल कर ली। इसी तरह रावत ने चीन की सीमा तक हर मौसम में चालू रहने वाली सड़कें भी बनवाई है। इसी कड़ी में उत्तराखंड में बाड़ाहोती सीमा तक तमाम अवरोधों के बावजूद सड़क बनवाना उनकी नेतृत्व कुशलता का उदाहरण है।
सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमुख रणनीतिकार
चीन की तरह पूर्वोत्तर भारत की परिस्थितियों के बारे में भी जनरल रावत की बेहद अच्छी समझ थी। इसी का परिणाम था कि जब जून 2015 में मणिपुर में हुए एक आतंकी हमले में 18 भारतीय सैनिक शहीद हुए। तो आतंकियों को सबक सिखाने का काम उनके नेतृत्व में किया गया। 21 पैरा कमांडो ने म्यांमार में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए आतंकी संगठन एनएससीएन (के) के कई आतंकी मार गिरा थे। 21 पैरा , थर्ड कॉर्प्स के अधीन थी, जिसके कमांडर बिपिन रावत ही थे। इसी तरह उरी आतंकी हमले के बाद सितंबर 2016 में पीओके के बालाकोट में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के रणनीतिकारों में बिपिन रावत भी शामिल रहे।
चीन-पाक के लिए खास रणनीति
सीडीएस के रूप में जनरल बिपिन रावत चीन-पाकिस्तान और समुद्री सीमा पर दुश्मन की चुनौतियों से थिएटर कमांड बना रहे थे। इसके जरिए युद्ध की स्थिति में तीनों सेना अंगों के बीच बेहतर कोऑर्डिनेशन कर युद्ध रणनीति बनेगी। इसके तहत चार-पांच थिएटर कमांड बनाए जा सकते हैं। अब यह जिम्मेदारी अगले सीडीएस के ऊपर रहेगी।
हाइब्रिड, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध के लिए भी रणनीति
जब जनरल बिपिन रावत को सीडीएस की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो उनके पास दोहरी भूमिका आ गई थी। पहली यह की वह सैन्य अधिकारी के रुप में भारतीय सेना की भविष्य की रणनीति में अहम भूमिका निभाए। वहीं दूसरी तरफ ब्यूरोक्रेट्स के रूप में सेनी के आधुनिकीकरण और जरूरत को पूरा करने में लालफीताशाही को आड़े नहीं आने दे। इसी के तहत वह हाइब्रिड, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध के लिए भी सेना को तैयार कर रहे थे। इसके अलावा हिंद-महासागार में भारतीय सेना की स्थिति को मजबूत करने में वह क्वॉड के भी बड़े पैरोकार थे। इसी तरह उनके दौर में इजरायल, अमेरिका से सैन्य संबंधों में भी मजबूती आई।
साफ है कि सीडीएस बिपिन रावत एक बडे़ मिशन को लेकर काम कर रहे थे। ऐसे में उनकी अचानक हुई मौत ने एक बड़ा झटका दिया है। लेकिन इस बीच रावत एक बड़ी विरासत भी छोड़कर जा रहे हैं, जिसे नए सीडीएस को आगे बढ़ाना होगा।