- अमेठी की सीट से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे।
- भाजपा जिन 144 सीटों पर फोकस कर रही हैं। उसमें से 100 सीटें तो दक्षिण भारत से आती है।
- भाजपा के उत्तर भारत के राज्यों से ज्यादा सीटों का इजाफा नहीं कर सकती है।
BJP Lok Sabha Election Strategy: 2024 के लोक सभा चुनावों के लिए 2 साल से भी कम समय रह गया है। ऐसे में चाहे विपक्ष हो या सत्ता पक्ष अब रणनीति बनाने में जुट गया है। इसी कवायद में पिछली बार 303 लोक सभा सीट जीतने वाली भाजपा, एक दम नई रणनीति पर काम कर रही है। इसके तहत पार्टी उन 144 सीटों पर ज्यादा फोकस करेगी, जहां पर पिछले बार उसे हार मिली थी। इसके लिए केंद्रीय मंत्रियों की लंबी चौड़ी फौज को इन संसदीय क्षेत्र में जमीनी स्थिति परखने और वहां पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है।
अब इन 144 सीटों में विपक्ष के उन दिग्गजों की भी सीट शामिल हैं, जो कि 2019 की मोदी लहर में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा 2024 के लिए इन दिग्गजों को हराने की रणनीति पर काम कर रही है। इस रणनीति की सबसे बड़ी कामयाबी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली थी। जब अमेठी की सीट से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव हार गए थे। उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी ने हराया था।
69 मंत्रियों को सौंपी गई जिम्मेदारी
न्यूज एजेंसी एएनआई की मुताबिक 7 सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह की अगुआई में हुई बैठक में 144 सीटों पर फोकस करने की रणनीति बनाई गई है। और इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के 69 दिग्गजों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जो कि हर महीने इन लोक सभा सीट पर कम से कम 2 दिन प्रवास करेंगे। और पार्टी को मजबूत करने का काम करेंगे। जिससे कि 2019 के मुकाबले ज्यादा सीटें मिल सकें।
इन दिग्गजों को हरा पाएगी भाजपा
वैसे तो भाजपा की मीटिंग में ऐसी कोई आधिकारिक चर्चा नहीं की गई है, कि विपक्षी दलों के दिग्गजों को हराने के लिए क्या करना है, लेकिन अगर पार्टी उन 144 सीटों पर फोकस कर रही है। तो साफ है कि इस लिस्ट में इन दिग्गजों की भी सीटें आएंगी। और इस आधार पर इसमें ये सीट शामिल हो सकती हैं..
इसमें कांग्रेस की रायबरेली सीट, जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं। इसके अलावा आनंदपुर साहेब सीट, जहां से मनीष तिवारी सांसद हैं, पश्चिम बंगाल के बहरामपुर सीट से अधीर रंजन चौधरी, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की सीट, शिव गंगा से पी.चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, तिरुअनंतपुरम से शशि थरूर की सीट प्रमुख रूप से शामिल हैं।
वहीं अगर यूपी से देखा जाय तो 2019 के चुनाव में आजमगढ़ से अखिलेश यादव और रामपुर से आजम खां की सीट पर भी भाजपा की नजर रहेगी। हालांकि हाल ही में उप चुनाव में आजमगढ़ और रामपुर की सीट भाजपा के पास आ गई हैं। लेकिन उस समय अखिलेश यादव और आजम खान मैदान में नहीं थी। ऐसे में अगर वह 2024 में चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा के लिए उन्हें हराना भी बड़ी चुनौती होगा।
ऐसे ही विपक्ष के एक प्रमुख दिग्गज नेता शरद पवार हैं। महाराष्ट्र का बारामती का इलाका उनका गढ़ कहा जाता है। वहां से उनकी बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं। भाजपा के लिए उन्हें भी चुनौती देना आसान नहीं होगा।
इसी तरह तृणमूल कांग्रेस के नंबर-2 और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने 2019 में डायमंड हार्बर से चुनाव जीता है। वह भी सीट जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। जबकि बिहार की बात की जाय तो 2019 में नीतीश-भाजपा साथ थे तो उन्हें 40 में से 39 सीटें मिली थी। जबकि 2014 में जब वह अलग-अलग लड़े थे तो एनडीए को 28 सीटों पर जीत मिली थी।
दक्षिण भारत में 100 कमजोर सीटें
भाजपा जिन 144 सीटों पर फोकस कर रही हैं। उसमें से 100 सीटें तो दक्षिण भारत से आती है। जहां पर उसे हार मिली है। उसमें भी आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल में पार्टी का खाता ही नहीं खुला था। जहां पर कुल 84 सीटें हैं। ऐसे में भाजपा परिवारवाद के सहारे तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु में खास तौर से आक्रामक रणनीति दिखा सकती है। क्योंकि कर्नाटक में वह देवगौड़ा परिवार, तेलंगाना में के.सी.आर और तमिलनाडु में करूणानिधि परिवार पर निशाना साध कर, वोटर में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर जोर देगी। इसके अलावा हिंदुत्व के मुद्दे से भी वह वोटरों को लुभाने की कोशिश करेगी।
उत्तर भारत के राज्यों में एक तरफा जीत
2024 में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह उत्तर भारत के राज्यों से ज्यादा सीटों का इजाफा नहीं कर सकती है। क्योकि 6 राज्य ऐसे हैं जहां पर उसने सभी सीटें जीत ली थी। इसमें गुजरात, राजस्थान (एक सीट सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रित पार्टी), हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश हैं। इन राज्यों में कुल 79 सीटें हैं। वहीं अगर मध्य प्रदेश को शामिल कर लिया जाय तो वहां उसने 29 में से 27 सीटों पर जीतीं थी। जबकि बिहार से एनडीए को 40 में से 39 सीट मिली थी। जिसमें भाजपा को 17 सीटें मिली थी। यानी 123 सीटें उसे हिंदी भाषी राज्यों से मिली थीं।