- प्रदेश में करीब 20-21 फीसदी दलित मतदाता हैं। इसमें से 50 फीसदी से ज्यादा जाटव वोटर हैं।
- किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से जाट और मुस्लिम मतदाता एक साथ आते दिख रहे हैं।
- भाजपा की गुर्जर, त्यागी, राजपूत, ब्राह्मण मतदाताओं को जोड़े रखने के साथ अनुसूचित जाति आबादी में दायरा बढ़ाने की कोशिश है।
नई दिल्ली: पिछले दो दिनों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं। इसी कड़ी में आज वह दादरी में राजा मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण भी कर सकते हैं। योगी आदित्यनाथ का यह दौरा इस बार कई राजनीतिक संकेत दे रहा है। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर, संभल, शामली के कैराना, मुरादाबाद, नोएडा के दादरी आदि के दौरे पर है। साफ है कि मुख्यमंत्री इस दौरे पर गुर्जर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं। राजा मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण इसी राजनीति का संकेत है।
क्या जाटों का तोड़ बनेंगे गुर्जर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन ने भाजपा का मजबूत समीकरण बिगाड़ दिया है और इस बात का अहसास नेतृत्व को बखूबी हो चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 110 से ज्यादा विधान सभा सीटें हैं। जिसमें से 2017 में भाजपा ने 90 के करीब सीटें जीती थी। भारी जीत की सबसे बड़ी वजह यह थी कि भाजपा को 2013 में मुजफ्परपुर में हुए दंगों के बाद बड़ी संख्या में जाट वोट मिलने लगे थे। लेकिन इस बार तीन कृषि कानूनों के आने के बाद शुरू हुए किसान आंदोलन ने समीकरण बदल दिए हैं। और 2013 से पहले की स्थिति बन रही है। जब मुस्लिम और जाट एक होकर वोट दिया करते थे। जाट नेता और किसान जितेंद्र हुड्डा कहते हैं "अब 2013 जैसे हालात नहीं रह गए हैं, जाट और मुसलमान फिर से एक हो चुके हैं। सरकार ने कृषि कानूनों को इज्जत का सवाल बना दिया है।" मुजफ्फरनगर में हुई पंचायत में किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ तौर किसानों से अपील की है कि वोट पर चोट करनी है। यानी इस बार भाजपा को हराना है। बदलते समीकरण को देखते हुए भाजपा गुर्जर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं।
इन जिलों में सीधा असर डालेंगे गुर्जर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर जाति , गाजियाबाद, नोएडा, संभल, शामली, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर में काफी प्रभाव रखती है। पिछले चुनावों में भाजपा को जाटों के साथ-साथ गुर्जर वोट भी मिले थे। ऐसे में वह उन्हें साध कर रखना चाहती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भाजपा के पास कैराना से हुकूम सिंह प्रमुख नेता हुआ करते थे। उनकी मृत्यु के बाद भाजपा ने अशोक कटियार को आगे बढ़ाया है और वह इस समय प्रदेश में मंत्री भी है। इसके अलावा नंदकिशोर गुर्जर, तेजपाल नागर , डॉ. सोमेंद्र तोमर, प्रदीप चौधरी भाजपा के विधायक हैं। पार्टी को उम्मीद है कि गुर्जर नेताओं के सहयोग से वह गुर्जर मतदाताओं को साध सकती है। और इसीलिए कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने और मतदाताओं को लुभाने के लिए योगी आदित्यनाथ का यह दौरा चुनावों से पहले काफी अहम है।
अखिलेश की भी गुर्जर वोटों पर नजर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर मतदाताओं के असर को देखते हुए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने मार्च के महीने में मेरठ के मवाना कस्बे में क्रांतिकारी धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया था। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर वह जाट और गुर्जर गठजोड़ को मजबूत करना चाहते है। साफ है कि अखिलेश यादव को भी पता है कि किसान आंदोलन की वजह से भाजपा के खिलाफ खड़ी हुई चुनौती में अगर गुर्जर वोट को साध लिया जाय, तो उनकी राह आसान हो सकती है। असल में भाजपा के लिए त्यागी, गुर्जर, राजपूत, वैश्य और जाट मतदाता पिछले तीन चुनावों में मजबूत साथी रहे हैं।
जाटव वोट भी साधने की कोशिश
भाजपा के राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति मोर्चा के एक पदाधिकारी का कहना है कि भाजपा की कोशिश है कि अनुसूचित जाति के मतदाताओं को ज्यादा से ज्यादा अपने पास जोड़ा जाए। इसमें जाटव और गैर जाटव दोनों मतदाता शामिल हैं। प्रदेश में करीब 20 फीसदी दलित मतदाता हैं। इसमें से 50 फीसदी जाटव वोटर हैं। जो कि मायावती का मजबूत वोट बैंक हैं। भाजपा नेता कहते हैं कि इस बार जिस तरह से बसपा पिछड़ती जा रही है और केंद्र-राज्य सरकारों की योजनाओं का लाभ अनुसूचित जाति को मिला है, उसका फायदा चुनाव में जरूर मिल सकता है। इसी कड़ी में भाजपा धनगर जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का भी दांव चल रही है। इस संबंध में योगी सरकार जल्द ही कोई फैसला कर सकती है। हालांकि पश्चिमी यूपी के एक भाजपा नेता का कहना है "पार्टी कोशिश तो कर रही है, और उसे यह भी अंदाजा है कि पिछली बार जैसी सफलता दोहराना मुश्किल है। लेकिन कम से कम नुकसान हो इसके लिए पूरी कवायद जारी है।"