- नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग में पिछले 50 दिन से प्रदर्शन जारी
- शाहीन बाग धरने पर सियासत भी तेज,देश विरोधी और देशभक्त के मिल रहे हैं तमगे
- बीजेपी का कहना है कि जब सीएए और एनआरसी पर सबकुछ स्पष्ट तो प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में पिछले 50 दिनों से धरना जारी है। शाहीन बाग की तर्ज पर यूपी के आजमगढ़ में महिलाएं सड़कों पर निकली। लेकिन उन्हें धरना की इजाजत नहीं मिली। टकराव हुआ, पत्थरबाजी हुई और जब मामला बहुत आगे बढ़ा तो प्रशासन ने पार्क में पानी भरवा दिया। इन सबके बीच दो तरह की खबरें आईं जिसमें आजमगढ़ से 19 लोगों की गिरफ्तारी हुई और कर्नाटक के बीजेपी सांसद का तेजस्वी सूर्या का बयान आया।
दिल्ली में शाहीन बाग के कितने रंग है वो सबके सामने है, शाहीन बाग में कभी कट्टा लहराया गया तो कभी फायरिंग हुई तो कभी बुर्काधारी महिला द्वारा जासूसी के आरोप लगे। आखिर शाहीन बाग के विरोध को लेकर राजनीतिक दलों की राय इतनी क्यों बंटी हुई है। इसे समझने से पहले बीजेपी एमपी तेजस्वी सूर्या के बयान को समझिये।
तेजस्वी सूर्या ने बुधवार को लोकसभा में कहा था कि वो एक बात की याद दिलाती है कि अगर देश की बहुसंख्यक आबादी सतर्क नहीं होती, कुछ देशभक्त लोग अगर खड़े नहीं होते तो दिल्ली में मुगलों का राज आने में देर नहीं है। वो कहते हैं कि सीएए के विषय पर हताश हो चुके विपक्षी दलों के पास कहने के लिए कुछ नहीं था और वो इस तरह से बयान देने लगे और दे भी रहे हैं कि बीजेपी इस देश के अल्पसंख्यकों की दुश्मन है।
सवाल ये है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर किसी दल और शख्स को अपनी बात कहने का अधिकार है। लेकिन जब कोई विषय ऐतिहासिक संदर्भ लेने लगता है तो वो खुद में कई सवालों को जन्म देने लगता है। बीजेपी एमपी तेजस्वी सूर्या का यह बयान क्या सिर्फ दिल्ली के चुनाव को ध्यान में रखकर तो नहीं दिया गया। क्योंकि जिस तरह से वो सीएए का जिक्र करते हुए बहुसंख्यक, शाहीन बाग और मुगलिया राज का जिक्र करते हैं उससे पता चलता है कि कहीं न कहीं इसमें सियासी फायदे को भी साधने की कोशिश की जा रही है।