- किसान आंदोलन के संबंध में अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना ने की थी टिप्पणी, सरकार से किये थे सवाल
- रिहाना के समर्थन में सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी किया है ट्वीट
- बीजेपी ने पूछा सवाल , क्या देश को अस्थिर करने का यह वैश्विक प्रयास है
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 69 से आंदोलन पर हैं। किसानों की मांग है कि सरकार कानूनों को पूरी तरह खारिज कर दे। लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि किसानों को जिद छोड़कर 22 जनवरी को दिए गए प्रस्तावों पर विचार करना चाहिए। लेकिन इन सबके बीच 26 जनवरी को जिस तरह से दिल्ली की सड़कों पर हिंसा हुई उसके बाद राजनीतिक और सामाजिक विचार बंट गए हैं। किसानों के आंदोलन के संबंध में देश के राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी आवाज उठाते रहे हैं। लेकिन जब अमेरिका की पॉप सिंगर रिहाना और स्वीडन की सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने आवाज बुलंद की तो बीजेपी की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया का आना स्वाभाविक था और उसे शब्दों में आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने पिरोया।
अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना का क्या कहना है
पॉप स्टार रिहाना ने कहा कि जिस तरह से किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए दिल्ली के आसपास घेरेबंदी की गई है उसका मतलब साफ है। जिस तरह से धरना स्थल पर इंटरनेट सेवा को प्रतिबंधित किया जा रहा है या आंदोलन करने वालों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है उससे साफ पता चलता है कि भारत की सरकार अपने दायित्वों का किस तरह से निर्वहन कर रही है। रिहाना के ट्वीट के बाद वैश्विक स्तर पर अलग अलग संगठनों की तरफ से प्रतिक्रिया आई जिसका बीजेपी ने प्रतिवाद किया।
क्या है ग्रेटा थनबर्ग का ट्वीट
ग्रेटा थनवर्ग ने अपने ट्वीट में कहा कि वो भारत में चलाए जा रहे किसान आंदोलन के समर्थन में हैं। भारत की हुकुमत को यह देखना होगा कि जिन लोगों को सरकार की नीति से परेशानी है वो उसके लिए क्या कर रही है। बता दें कि नीट परीक्षा कराये जाने का जब कुछ छात्र विरोध कर रहे थे उस वक्त भी उन्होंने समर्थन किया था।
अमित मालवीय का क्या कहना है
भारत की सरकार के खिलाफ वैश्विक सेलिब्रिटी आवाज़ों के इस अचानक संगीत कार्यक्रम से सवाल उठता है: कौन बैटन की रक्षा कर रहा है?क्या भारत को बाहर से अस्थिर करने का एक वैश्विक प्रयास है?भारत को अस्थिर करने से किसे लाभ?
बता दें कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का दावा है कि जिस रूप में इसे लागू किया गया है वो किसानों के लिए डेथ वारंट की तरह है। किसानों की सिर्फ एक ही मांग है कि सरकार इसे रद्द कर दे। इस विषय में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली समिति काम कर रही है और इन सबके बीच केंद्र सरकार ने मौजूदा कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव भी दिया था।