- नागरिकता संसोधन बिल को कैबिनेट से मिली मंजूरी, मंजूरी के बाद संसद में रखा जाएगा बिल
- विपक्ष का आरोप धर्म के आधार पर शरणार्थियों को बांटने की कोशिश में केंद्र सरकार
- सरकार की दलील, अफगानिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हुए लोगों के लिए व्यवस्था
नई दिल्ली। बुधवार को कैबिनेट से नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी मिल गई है।अब सरकार से इसे संसद में पेश करेगी। लोकसभा में पर्याप्त बहुमत होने से इस बिल को पारित कराने में सरकार को दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन राज्यसभा में इसके पारित होने में मुश्किलें आ सकती हैं। इस प्रस्तावित बिल का कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। सवाल ये है कि विपक्षी दलों के विरोध के पीछे की वजह क्या है। दरअसल विरोधी दलों को आशंका है कि सरकार इसके जरिए धर्म आधारित भेदभाव करने जा रही है जो संविधान की भावना के खिलाफ है।
नागरिकता संशोधन बिल का सबसे ज्यादा विरोध उत्तर पूर्व के राज्यों में हो रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार शरणार्थियों को धर्म के आधार पर बांट रही है इस मसले पर कांग्रेस के साथ साथ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ज्यादा मुखर हैं। कांग्रेस का यह भी कहना है कि इस प्रस्तावित बिल के जरिए 1985 के असम समझौते का भी उल्लंघन किया जा रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि विपक्षी दलों के साथ साथ साथी दल भी इसका विरोध कर रहे हैं। असम गण परिषद (AGP) इस बिल का विरोध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक दर्ज करा चुकी है.
क्या है नागरिकता संशोधन बिल?
नागरिकता अधिनियम 1955 के कुछ उपबंधों को बदलने के लिए इस संशोधित बिल को लाया जा रहा है। जिससे नागरिकता देने वाले नियमों में बदलाव होगा. इस बिल में संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता आसान हो जाएगा।इसके अलावा अभी भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल देश में रहना जरूरी होता है, लेकिन नए बिल के प्रावधान में इस अवधि को 6 साल किया जा सकता है।