- मध्य प्रदेश के भावरा में चंद्र शेखर आजाद का हुआ था जन्म
- 25 साल की जिंदगी में रच दिया इतिहास
- 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुए शहीद
जिस शख्स के बारे में हम जिक्र करने जा रहे हैं वो इतिहास के पन्नों में अजर अमर शख्सियत के रूप में दर्ज हैं। अगर कहा जाय कि उनके लिए जिंदगी लंबी नहीं बल्कि वो कितनी बड़ी है ज्यादा मायने रखती थी। जी हां बात महान क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद की हो रही है। आज से करीब 115 साल पहले मध्य प्रदेश के भावरा में जगरानी देवी और सीताराम तिवारी के घर एक बालक ने आंखें खोलीं जिसकी नियति में सिर्फ 25 वर्ष थे। लेकिन उसके लिए जीवन का हर बसंत कुछ अलग करने के लिए था।
भावरा में जन्मे चंद्र शेखर ने किया कमाल
जिस समय चंद्रशेखर आजाद पैदा हुए, देश गुलामी की बेड़ी से बंधा था। जब उन्होंने होश संभाल तो अपने माता पिता से तरह तरह के सवाल करते थे कि वो किसी की दास्तां में क्यों हैं। अबोध बालक जब बड़ी बड़ी बातें करता था तो इलाके के लोग भी आश्चर्य चकित हो जाते थे और कहा करते थे वो असाधारण हैं। तरुणाई से जब उन्होंने किशोरावस्था में दाखिल हुए तो देश को आजाद करने का सपना उनके खयालों में आने लगा।
काकोरी कांड का आज भी होता है जिक्र
देश की आजादी के लिए उस समय अलग अलग धाराएं काम कर रही थीं। जिसमें अहिंसात्मक तौर पर अंग्रेजों का विरोध शामिल था तो कुछ संगठन मानते थे कि अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में जवाब देना चाहिए। चंद्र शेखर आजाद को गांधी जी की नीतियों से किसी तरह का बैर नहीं था। लेकिन उनकी सोच यह थी कि गूंगी बहरी सरकार को जगाने के लिए कुछ धमाके करने होंगे। धीरे धीरे समय आगे बढ़ा और योजना बनी कि लखनऊ से सहारनपुर जाने वाली ट्रेन को निशाना बनाकर सरकारी खजाने को लूट लिया। आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारी कामयाब भी हुए।लेकिन समय के साथ अंग्रेजो घटना की तह तक पहुंचने में कामयाब रहे।
HSRA ने दी अलग पहचान
चंद्रशेखर आजाद सिर्फ हिंसा के रास्ते को ही सही नहीं मानते थे, बल्कि उनका समाजवादी विचार था जिसकी झलत हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में भी दिखाई दी। वो कहा करते थे कि समतामूलक समाज की स्थापना के लिए हमें आर्थिक सशक्तीकरण पर ध्यान देना होगा। उनकी टोली में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भी थे।
27 फरवरी को हुए शहीद
वैचारिक और बंदूक की धारा के बीच जब सांडर्स की हत्या हुई तो ब्रिटिश सरकार करो या मरो के तर्ज पर क्रांतिकारियों की तलाश में जुट गई। चंद्रशेखर आजाद की खोज में पुलिस लग गई। एक घातिए ने जानकारी दी कि आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में छिपे हुए हैं। लेकिन उन्होंने कसम खाई थी कि उनके जिस्म में गोली किसी फिरंगी की नहीं होगी। जब उन्हें अहसास हुआ कि अब उनकी जिंदगी में कुछ पल ही बचे हैं तो खुद को गोली मारकर भारत माता की आजादी के लिए शहीद हो गए।