- छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी को लेकर दिया एक ऐतिहासिक फैसला
- कोर्ट ने फैमिली कोर्ट का फैसला रद्द करते हुए कही अहम बात
- पुरुष सहयोगियों के साथ घूमना-फिरना या जींस-टॉप पहनने से किसी महिला के चरित्र तय नहीं कर सकते- HC
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते करक दिया है जिसमें पिता को एक बच्चे की कस्टडी दी गई थी। अदालत ने कहा कि यदि कोई महिला अपने पति की इच्छा के अनुसार खुद को नहीं ढाल पाती है तो यह बच्चे की कस्टडी से उसे वंचित करने का एक निर्णायक कारक नहीं बन जाता है। न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने 14 वर्षीय लड़के की हिरासत से संबंधित एक मामले में फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि समाज के कुछ सदस्यों की "शुतुरमुर्ग मानसिकता" को किसी महिला का चरित्र तय करने का अधिकार नहीं है।
2013 में हुआ था तलाक
महिला के वकील सुनील साहू ने बुधवार को कहा कि फैसला, जो 28 मार्च को पारित किया गया था, सोमवार को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था, जिसके अनुसार बच्चे की हिरासत उसकी मां को दी गई थी। दंपति ने 2007 में शादी की थी और उसी साल दिसंबर में उनके बेटे का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि 2013 में आपसी सहमति से दोनों का तलाक हो गया, जिसके बाद बच्चे की कस्टडी महासमुंद जिले की रहने वाली उसकी मां को दे दी गई।
पति ने ये तर्क देकर मांगी थी बच्चे की कस्टडी
2014 में, महिला के पति, जो रायपुर जिले के रहने वाले हैं, ने महासमुंद की फैमिली कोर्ट में एक आवेदन दायर कर बच्चे की कस्टडी की मांग इस आधार पर की, कि महिला अपने संस्थान के पुरुष सहयोगियों के साथ बाहर आना-जाना करती है। वह जींस-टी शर्ट पहनती है और उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है। इसलिएॉ अगर बच्चे को उसकी कस्टडी में रखा गया, तो उसके दिमाग पर बुरा असर पड़ेगा। इसके बाद फैमिली कोर्ट ने 2016 में बच्चे की कस्टडी उसके पिता को सौंपी थी।
हाईकोर्ट ने कही अहम बात
महिला ने तब फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि यह केवल अनुमान के आधार पर पारित किया गया था, जिसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है। फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "...पिता की ओर से सबूतों से ऐसा लगता है कि गवाहों ने अपनी राय और सोच के मुताबिक बयान दिया है। अगर महिला को कोई काम करना है तो उसे भी अपनी आजीविका के लिए स्वाभाविक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की आवश्यकता होगी। वादी के गवाहों के बयान से पता चलता है कि वे महिलाओं की पोशाक से काफी हद तक प्रभावित हैं क्योंकि वह जींस और टी-शर्ट पहनती हैं। हमें डर है कि अगर इस तरह के गैर-कल्पित मानसिकता को स्पॉटलाइट किया गया तो तो महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक लंबी कठिन लड़ाई होगी।"
हाई कोर्ट ने बुधवार को फैमिली कोर्ट का फैसला रद्द कर बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी। इस दौरान हाईकोर्ट ने बच्चे को पिता को उससे मिलने और संपर्क करने का अधिकार भी दिया और इस संबंध में निर्देश जारी किए।