- वक्त आ गया है कि मध्यस्थता से मामले सुलझाएं जाएं: सीजेआई
- इससे कोर्ट पर निर्भरता कम होगी: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया
नई दिल्ली: हमारे देश की अदालतों पर मुकदमों का खूब बोझ है। यही कारण है कि हमारे यहां ज्यादातर मुकदमे बेहद लंबे समय तक चलते हैं। इसी को देखते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शरद अरविंद बोबड़े ने कहा है कि अब समय है कि मुकदमेबाजी से पहले मध्यस्थता के बारे में सोचा जाए। इससे कोर्ट पर निर्भरता कम होगी।
हाल ही में बिहार की राजधानी पटना में हाई कोर्ट के नवनिर्मित शाताब्दी भवन का उद्घाटन करने पहुंचे सीजेआई ने कहा, 'कोर्ट-कानून अच्छे हैं। उनका सहारा लेना भी अच्छा रास्ता है, लेकिन अब समय मुकदमेबाजी से पहले मध्यस्थता के बारे में सोचने का है। इससे न्यायपालिका पर निर्भरता कम होगी।'
उन्होंने कहा, 'वाद-पूर्व मध्यस्थता दीवानी और फौजदारी दोनों ही मामलों में विवादों का समाधान करने का एक जरिया है। मैं कानून मंत्री से इस बारे में चर्चा कर रहा था कि वाद-पूर्व मध्यस्थता के लिए बस एक कानून का अभाव है।'
अदालत अन्याय नहीं होने देती: नीतीश कुमार
इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि स्पीडी ट्रायल चलता रहेगा तो राज्य में अपराध नियंत्रित रहेगा। 2006 में पटना हाई कोर्ट की ओर से एक मीटिंग में अपराध पर नियंत्रण और स्पीडी ट्रायल पर चर्चा हुई थी। तेजी से सुनवाई के बाद बड़ी संख्या में अपराधियों को सजा मिली और अपराध में कमी आई। कानून का राज करना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, इसमें न्यायपालिका की भी अहम भूमिका है। न्यायपालिका किसी भी सही आदमी के साथ अन्याय नहीं होने देती है, सभी के साथ न्याय करती है। गड़बड़ करने वाले बच नहीं पाते हैं।
2014 में नीतीश कुमार ने किया था शिलान्यास
पटना हाई कोर्ट का शताब्दी भवन 203.94 करोड़ की लागत से बना है। मुख्य न्यायाधीश ने फीता काटकर नए भवन का उद्घाटन करने के साथ ही पट्टिका का भी अनावरण किया। उद्घाटन करने के बाद उन्होंने भवन का निरीक्षण किया। पटना उच्च न्यायालय के पुराने भवन के समीप बने इस नए भवन में दो पुस्तकालय अत्याधुानिक सुविधाओं से लैस हैं। इस नए भवन का शिलान्यास फरवरी, 2014 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। जब इसका शिलान्यास किया गया था तब इस भवन निर्माण की संभावित लागत 116 करोड़ आंकी गई थी। इसका निर्माण कार्य दो साल में पूरा हो जाना था। इस शताब्दी भवन में कोर्ट रूम के अलावा, न्यायाधीशों के लिए चैंबर हैं। उल्लेखनीय है कि पटना उच्च न्यायालय में 1916 से काम प्रारंभ हुआ है।