- पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व युवा नेतृत्व और नए चेहरे पर जोर दे रहा है।
- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रिश्ता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बेहद करीब का रहा है।
- साल 2023 के आखिरी में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे।
Shivraj Singh Chauhan: करीब 18 साल पहले साल 2004 में भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में नेतृत्व के मोर्चे पर असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। पहले 8 महीने में मुख्यमंत्री उमा भारती की विदाई हो गई और उसके बाद 15 महीने के बाबू लाल गौर के ढुलमुल शासन ने पार्टी की मुश्किलें खड़ी कर दी थी। उस वक्त चार बार के सांसद शिवराज सिंह चौहान पर भाजपा ने दांव खेला था। चौहान को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सबसे बड़ी वजह उनका सौम्य और विनम्र व्यवहार था।
और चार बार के उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में यह बात उनके राजनीतिक विरोधी भी मानते हैं कि वह बदले की भावना नहीं रखते हैं। उनके विनम्र व्यवहार के कारण ही वह राज्य में 'मामा' के नाम से भी लोकप्रिय हुए। और बार-बार जीतते भी आए हैं। लेकिन लगता है वह छवि अब शिवराज सिंह चौहान को रास नहीं आ रही है और वह अब नए तेवर में दिखना चाहते हैं।
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क्या छवि बदलना चाहते हैं शिवराज
पिछले कुछ समय से शिवराज बदले हुए नजर आ रहे हैं। वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह सख्त बयान दे रहे हैं। उन्हें बुलडोजर मामा कहे जाने से भी परहेज नही है। वह अब भू-माफियाओं और दंगाइयों को सीधे चुनौती देते हैं कि जो लोग भी नहीं सुधरेंगे, उन पर बुलडोजर चलेगा। साफ है कि शिवराज सिंह चौहान अब पुरानी छवि में बंध कर नहीं रहना चाहते हैं। खास तौर से जब 2023 के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
भाजपा ने कई राज्यो में बदल डाले हैं मुख्यमंत्री
असल में शिवराज सिंह चौहान यह अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि 2023 में उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ाया जाएगा यह निश्चित नहीं है। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व युवा नेतृत्व और नए चेहरे पर जोर दे रहा है। इसका उदाहरण उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकल गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हैं। ऐसे में इस बात की अटकले हैं कि मध्य प्रदेश में भी किसी युवा चेहरे को आगे किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो रेस में सबसे आगे कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अहम चेहरा हो सकता है।
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रिश्ता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बेहद करीब का रहा है। उन्होंने पिछले 16 साल में कई ऐसे काम पूरे किए जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडे में रहे हैं। जैसे महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखा में जाने पर पाबंदी थी, उसे शिवराज सिंह चौहान ने हटा दिया। इसी तरह उज्जैन में कुंभ मेले का सैकड़ों खर्च कर आयोजन कराया। अब वह शंकाराचार्य की मूर्ति ओंकारेश्वर में बनवा रहे हैं। धर्म परिवर्तन पर कानून लेकर आए है। कश्मीरी पंडितों के लिए संग्राहलय बनाने की भी घोषणा कर दी है। और अब उन्होंने दंगाइयों और भू-माफियाओं पर कार्रवाई के लिए योगी मॉडल अपना लिया है। साफ है कि ऐसा कर वह संघ की नजरों में अपनी छवि मजबूत रखना चाहते हैं। जिससे कि जरूरत के समय वह ब्रह्मास्त्र काम आ सके।
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केंद्रीय नेतृत्व को सहयोगी बड़ी चुनौती
असल में जिस तरह केंद्रीय नेतृत्व ने कई राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्रियों को बदला है। उसे देखते हुए शिवराज सिंह चौहान के लिए, एक बार फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होना आसान नहीं है। खास तौर से जब वह 16 साल से मुख्यमंत्री हैं। केंद्रीय नेतृत्व भी बीच-बीच में ऐसे संकेत देता रहता है, जिससे शिवराज के लिए रास आसान नहीं दिखती है। इसलिए नरम शिवराज अब गरम दिखाई दे रहे हैं। अब देखना है कि उनकी यह रणनीति आने वाले समय में कितनी कारगर होती है।