- एलएसी के पास लद्दाख में गत पांच मई से भारत और चीन के बीच बना है गतिरोध
- पेगॉंग त्सो झील, गलवान घाटी एवं अन्य इलाकों में चीनी सेना ने की है घुसपैठ
- गतिरोध समाप्त करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत जारी है
मैंने ठीक चार दिन पहले यानि जून 11, 2020 को टाइम्स नाउ हिंदी के लिए एक लेख लिखा जिसका शीर्षक है India China Standoff: इन अनसुलझे सवालों के बीच क्या भारत को चीन पर भरोसा करना चाहिए? इसे आप जरूर पढ़ें। इस लेख का वन लाइन अर्थ है कि भारत को चीन पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। हुआ वही जिसका अंदेशा था।
सोमवार यानि जून 15, 2020 की रात लद्दाख की गालवन वैली में भारत चीन के सैनिकों के बीच झड़प में 3 भारतीय फौजी शहीद हो गए जिसमें 1 अफसर कर्नल और 2 जवान थे। इसका खुलासा भारत सरकार ने मंगलवार यानि जून 16, 2020 को किया। हलांकि ये भी कहा जा रहा है कि जवाबी कार्रवाई में चीन के भी 5 जवान मारे गए और 14 घायल हुए। भारत और चीन के बीच इस तरह की झड़प या युद्ध पहली बार नहीं हुआ है बल्कि पिछले 58 सालों में चीन ने 4 बार भारत के पीठ में छुरा घोंपा है वो इस प्रकार है:
पहला, 1962 में अकस्मात चीन ने भारत पर युद्ध की घोषणा कर दी थी। वह युद्ध अक्टूबर 20 से नवंबर 21 तक चला और उसके बाद चीन ने एक तरफा युद्ध समाप्त करने की घोषणा भी कर दी। एक तरफ चीन उस युद्ध की तैयारी पहले से कर रहा था जबकि दूसरी तरफ भारत युद्ध के लिए बिलकुल तैयार नहीं था क्योंकि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चीन के एग्रेसिव नेचर को समझने के लिए तैयार नहीं थे और चीन को भाई मानते थे। उस युद्ध में भारत के 100 सैनिक शहीद हुए थे और उसी युद्ध में चीन ने भारत के अक्साई चीन इलाके पर कब्जा कर लिया जो आज भी उसके कब्जे में है।
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दूसरा, ठीक 5 साल के बाद 1967 में सिक्किम के नाथुला और चो ला में भारत - चीन के बीच सैनिक झड़प हुई और उस झड़प की शुरुवात भी चीन ने ही किया था। उस झड़प में भारत के 88 सैनिक शहीद हुए। हालांकि उस झड़प में चीन के भी 340 सैनिक मारे गए थे।
तीसरा, फिर 8 साल के बाद यानि अक्टूबर 20, 1975 को अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में भारत- चीन के बीच सैनिक झड़प हुई और उस झड़प की शुरुवात भी चीन ने ही किया था क्योंकि 1962 युद्ध के बाद से ही चीन ने पूरे प्रदेश को अपना हिस्सा बताता आ रहा है। उस झड़प में भी भारत के 4 सैनिक शहीद हुए थे।
चौथा, और अब 45 साल के बाद यानि जून 15, 2020 को लद्दाख के गालवन वैली में भारत -चीन के बीच सैनिक झड़प होती है और उस झड़प में भारत के 3 सैनिक शहीद हो गए।
असली सवाल अब उठता है कि चीन ने पिछले 58 सालों में चौथी बार भारत के पीठ में छुरा घोंपा है; ऐसी स्थिति में क्या भारत को ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देना चाहिए?
पहला, भारत - चीन संबंधों का इतिहास यही दर्शाता है कि भारत को चीन पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए और इसका उत्तर उपरोक्त 4 ऐतिहासिक घटनाएं दे रही हैं।
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दूसरा, 1950 के दशक के बाद पहली बार ऐसी अंतराष्ट्रीय परिस्थितियां बन रही हैं जब चीन पूरी दुनिया में अकेला पड़ता दिख रहा है और इसका कारण है कोविद-19 जो चीन से शुरू हुआ। इस महामारी को चीन ने पूरी दुनिया से महीनों तक छिपा कर रखा था जबतक कि यह संक्रमण उसके हाथ से नहीं निकल गया। कोविड-19 पर चीन ने दुनिया को गुमराह किया इसका खुलासा अब हो गया है। दुनिया के देश अब उससे सवाल कर रहे हैं और उसे शक भरी नजरों से देख रहे हैं। इस महामारी ने दुनियां के लाखों लोगों को मार दिया है और लाखों लाख इस महामारी से ग्रसित हैं। कोरोना के प्रकोप ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को तबाह एवं बर्बाद कर दिया है। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत को पूरी दुनिया के साथ मिलकर चीन के खिलाफ बन रहे अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन को पूर्ण समर्थन देना चाहिए।
तीसरा, 1971 में जो काम प्रधानमंत्री इंदिरा ने पाकिस्तान के खिलाफ किया था वही काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना होगा यानि पूरी दुनिया को बताना होगा कि किस तरह चीन अपनी कोरोना असफलता को दुनिया से छिपाने के लिए भारत के खिलाफ बॉर्डर पर अग्रेसर की तरह व्यवहार कर रहा है। आज की दुनिया चीन के करतूतों को समझ रही है और भारत पूरी दुनिया को आसानी से अपने पक्ष में कर सकता है।
चौथा, भारत, रूस और चीन के बीच रिम बैठक जून 22 को होने जा रही है जिसका इनिशिएटिव रूस ने लिया है। भारत को स्पष्ट रूप में रूस को बताना पड़ेगा कि जब तक चीन बॉर्डर से अपने सैनिक सामान नहीं हटाता है तब तक भारत किसी तरह की बातचीत में शामिल नहीं होगा।
पांचवां, भारत को हर हाल में जी-7 में जरूर शामिल होना चाहिए जिसकी शुरुआत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कर चुके हैं क्योंकि इसी मुद्दे पर चीन ने भारत को धमकी भी दे डाली थी कि भारत आग से न खेले। भारत को साफ-साफ चीन को बताना पड़ेगा कि भारत अब आग से खेलने को तैयार है।
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छठा, भारत को चीन के साथ व्यापार को हर हाल में धीरे-धीरे धीमा करते हुए उसे खत्म करने की ओर अग्रसर होना पड़ेगा क्योंकि चीन ने भारत को बिजनेस ट्रैप में फंसा रखा है जिससे भारत को निकलना अनिवार्य है।
सातवां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन से कहना होगा कि भारत किसी भी कीमत पर अपने राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं करेगा। दोस्तों का जवाब दोस्ती से और दुश्मनी का जवाब दुश्मनी से ही देंगे।
आठवां, भारत को चीन को स्पष्ट सन्देश देना होगा कि 2020 का भारत 1962 का भारत नहीं है और अब भारत ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए तैयार है। चीन के ईगो को तोड़ना भारत के हित में है।