- चीन ने एक बार फिर लद्दाख में अशांति पैदा करने की कोशिश की, एलएसी से करीब दो किमी पीछे हटी चीनी सेना
- पंचशील सिद्धांतों को तोड़ने का गुनहगार है चीन, 1962 का भारत चीन लड़ाई है उदाहरण
- चीनी नीतिकारों की सोच ड्रैगन के विस्तारवाद नीति में रोड़ा है भारत
नई दिल्ली। भारत और चीन के रिश्ते को समझने के लिए हमें पंचशील सिद्धांत(Panchsheel Principle) पर ध्यान देने की जरूरत है। 1954 में इस सिद्धांत के जरिए दोनों देशों ने आगे बढ़ने का फैसला किया। लेकिन तिब्बत(Tibet) का मुद्दा दोनों देशों के बीच आया। चीन( China) को लगा कि भारत ने उसके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप किया। लेकिन भारत ने प्राचीन मान्य सिद्धांतों के तहत दलाई लामा(Dalai Lama) को शरण दिया। बात सिर्फ एक शख्स को शरण देने की नहीं थी उसका राजनीतिक संदेश भी था तो ऐतिहासिक संदर्भ। लेकिन 1962 में चीन ने जिस तरह से भारत की पीठ में छूरा भोंका उसे दुनिया ने देखा और समझा भी।
निर्वात को भरने की फिराक में चीन, तनाव को देता हैं न्यौता
20 वीं सदी के 70 के दशक की दुनिया में दो बड़े राजनीतिक ध्रुव अमेरिका और रूस अलग अलग मुल्कों को अलग अलग तरह से संचालित करने की कोशिश करते थे। यह सिलसिला सोवियत संघ के विघटन तक रहा। लेकिन जब विश्व एकध्रुवीय हुआ तो चीन के मन में विस्तारवादी आकांक्षा हिलोरे मारने लगी। चीन को लगने लगा कि रूस कमजोर हो चुका है और वो उसकी जगह ले सकता है। उस दिशा में चीन ने तरफ से साम दाम दंड भेद की नीति पर आगे बढ़ना शुरू किया।
पंचशील सिद्धांत
- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और सर्वोच्च सत्ता के लिये पारस्परिक सम्मान की भावना।
- दोनों देश एक दूसरे के साथ मित्रता का भाव रखेंगे यानि आक्रमण नहीं करेंगे।
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- समानता एवं पारस्परिक लाभ।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना का विकास।
पंचशील सिद्धांतों पर चीन कभी चला ही नहीं
भारत के साथ सीमा विवाद का इतिहास पुराना है। प्राचीन नीति भी कहती है किसी को कमजोर करने के लिए दो तरीके हैं या तो खुद को मजबूत करो या दूसरे के यहां दिक्कतें खड़ी करो। चीन ने इन दोनों नीति को व्यवहार में लाया।भारत के साथ करीब चार हजार किमी सीमा को उसे अपने लिए अवसर नजर आया। वो समय समय पर कभी लद्दाख में तो कभी सिक्किम में तो कभी अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश करता रहा है। यह बात अलग है कि सतर्क भारतीय सेना की वजह से वो कामयाब न हो सका।
लद्दाख में चीनी चालबाजी नहीं आई काम
ताजा मामला पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास का है। भारत की तरफ से जब आधारभूत संरचना पर काम शुरू हुआ तो चीन को नागवार लगा और उसकी तरफ से अड़चन डाली गई। पहले तो दोनों देशों के सैनिकों के बीच धक्कामुक्की हुई बाद में चीन ने पहले 800 सैनिकों की तैनाती की और बाद में वो संख्या बढ़कर 5000 हो गई। लेकिन जिस तरह से भारत की तरफ से प्रतिक्रिया हुई उससे चीन सकते में था। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि अगर कूटनीति से बात बनी तो अच्छा होगा। लेकिन दूसरे विकल्पों को आजमाने से भी भारत नहीं चुकेगा और उसका असर दिखाई भी दे रहा है। बुधवार को खबर आई कि चीनी सेना कुछ जगहों पर दो किमी पीछे हट गई है और अपने टेंट को हटा रही है।
ड्रैगन और हाथी का सुर अलापा
आप को याद होगा कि जब भारत की तरफ से बयान आया कि हम कूटनीति के जरिए तथाकथित विवाद को सुलझाना चाहते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल इसलिए हुआ क्योंकि भारत की तरफ से तनाव जैसी बात थी ही नहीं। इसके साथ जब अमेरिका ने कहा कि चीन को अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना चाहिए तो चीन खफा हो गया उसकी तरफ से कालापानी के मुद्दे पर नेपाल को भड़काने की कोशिश की गई। लेकिन भारत ने नेपाल को साफ संदेश दे दिया कि वो कोई ऐसा काम न करे जिससे ऐतिहासिक संबंधों पर असर आए। ऐसे हालात में चीन को लगने लगा कि यह लड़ाई कोई और रूप ले रही है तो उसकी तरफ से बयान आ गया कि ऐसा कोई विषय नहीं है जिस पर भारत और चीन आगे नहीं बढ़ सकते हैं। आखिर में वो तमाम सारी वजहें हैं जिसमें ड्रैगन और हाथी एक साथ डांस कर सकते हैं।