- कांग्रेस नई रणनीति के तहत पंजाब, यूपी, उत्तराखंड सहित दूसरे राज्यों के चुनावों में उतर सकती है।
- सोनिया गांधी अब पहले से ज्यादा सक्रियता दिखा रही हैं।
- 2004 में आम आदमी को साधकर पार्टी ने सत्ता हासिल की थी और 10 साल तक काबिज रही थी।
नई दिल्ली: लगातार हार से परेशान कांग्रेस अब पुरानी रणनीति पर लौटने की कोशिश कर रही है। यह रणनीति 15 साल पुरानी है, जिसके जरिए उसने 10 साल तक सत्ता का स्वाद चखा था। इस रणनीति में उन वोटर पर फोकस है, जो एक समय कांग्रेस के मजबूत आधार हुआ करते थे। पार्टी इसके लिए महिला-दलित-पिछड़े वर्ग को फोकस कर फिर से 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ' के संदेश के जरिए आगामी विधान सभा चुनावों पर फोकस करेगी।
2014 से लगातार हार का सामना
कांग्रेस का 2014 में जो हार का सिलसिला शुरू हुआ, वह अभी तक जारी है। इस बीच पार्टी को न केवल 2014 और 2019 में लोकसभा चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा। बल्कि उसे मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पुडुचेरी में सत्ता गंवानी पड़ी। साथ ही गुजरात,केरल, बंगाल, बिहार, केरल और पूर्वोत्तर राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। लगातार हार का आलम यह हुआ कि 2016 से 170 से ज्यादा एमएलए और 7 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी। परिणाम यह हुआ कि पार्टी के अंदर बगावत भी शुरू हो गए। और ग्रुप-23 गुट ने नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए। और पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गुटबाजी बढ़ गई।
भाजपा को अमीरों को पार्टी बनाने की रणनीति
पार्टी सूत्रों के अनुसार 2004 में जब पार्टी ने भाजपा शाइनिंग इंडिया के खिलाफ कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ अभियान को शुरू किया था। तो उसे बड़ी सफलता मिली थी। और वह पूरे 10 साल सत्ता में रही। उसी तरह पार्टी की कोशिश है कि जब भी मौका मिला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमीरों की हितैषी सरकार के रूप में मतदाताओं के सामने प्रोजेक्ट किया जाय। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से लेकर पार्टी के प्रमुख नेता, मोदी सरकार को अमीरों की सरकार कहना का मौका नहीं चूकते हैं। इसके अलावा महंगाई और कोविड-19 की सबसे ज्यादा मार गरीब आदमी पर पड़ी है। जो अभी भी दलित-पिछड़े वर्ग से प्रमुख रुप से आता है।
महिला-दलित-पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश
पार्टी सत्ता में वापसी के लिए अब महिला-दलित-पिछड़े वर्ग पर भरोसा कर रही है। इसी के तहत पार्टी ने यूपी चुनावों में 40 महिलाओं को टिकट देने का दाव खेला है। साथ ही महिलाओं वोटरों को लुभाने के लिए कई अहम ऐलान किए है। इसके अलावा पंजाब में 32 फीसदी दलित वोटरों को लुभाने के लिए राज्य का पहला दलित मुख्यमंत्री का भी दांव खेला है। कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई के बाद पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है। इसी तरह राजस्थान के मंत्रिमंडल विस्तार में जाट-अनुसूचित जनजाति से पांच-पांच तो अनुसूचित जाति से चार मंत्री को जगह दी गई है। जाहिर पार्टी इस रणनीति के तहत यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा सहित 2023 में होने वाले राजस्थान चुनाव में आगे बढ़ेगी और उसे अगर सफलता मिलती है, तो निश्चित रुप से 2024 के लिए उसे फॉर्मूला मिल जाएगा।