- मध्य प्रदेश विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित, स्पीकर ने कोरोना का दिया हवाला
- कमलनाथ सरकार को 16 मार्च को हासिल करना था विश्वासमत
- कांग्रेस के 22 विधायक बागी, बीजेपी पर सम्मोहित करने का लगाया आरोप
नई दिल्ली। कोरोना का नाम लेते ही सलाह दी जाती है कि कम से कम मीटर दूर रहो। यही नहीं अगर कोई संदिग्ध मिला तो कम से कम 14 दिन अलग थलग रहने का आग्रह कहें या फरमान इसे किसी भी रूप में लिया जा सकता है। कह सकते हैं कि कोरोना वायरस की जो आफत टूट पड़ी है उसे बचने के लिए तमाम तरह की कवायद की जा रही है। कुछ वैसे ही कवायद का इस्तेमाल मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर ने किया और कमलनाथ की सरकार को लाइफलाइन मिल गई, मतलब उनकी सरकार को कुछ सांस मिल गई और कमलनाथ की जो सरकार शहीद होने के कगार पर थी उसे कुछ दिनों की जिंदगी मिल गई। लेकिन राजनीति में खेल तो सेकेंडों में हो जाता है यहां तो फिर करीब 10 दिन का वक्त मिल गया।
कोरोना के डर से मिली राहत
मध्य प्रदेश विधानसभा में गवर्नर साहब भावुक अपील करते नजर आए कि यह अजब गजब प्रदेश की मर्यादा का सवाल है, सरकार संविधान के नियमों की अनदेखी न करते हुए उसका सम्मान करे। लेकिन स्पीकर साहब के मन में कोरोना का खौफ था जिसके जरिए उन्हें सरकार बचाने का जरिया नजर आ रहा था सो उसका इस्तेमाल किया। हां यह बात जरूर है कि स्पीकर से अपेक्षा की जाती है कि वो दलगत राजनीति का हिस्सा न बनते हुए फैसले करेगाष। लेकिन भारत के राजनीतिक इतिहास में भला ऐसा कहां हुआ कि स्पीकर एन पी प्रजापति किसी तरह की नजीर पेश करते।
उछल रहा है कोरोना का वायरस
कोरोना का वायरस उछल कूद रहा है वो लोगों को शिकार बनाकर क्वारंटाइन में भेज रहा है। ऐसे में स्पीकर साहेब को भी लगा कि कहीं कोरोना का वायरस सदन में मौजूद नीति नियंताओं को शिकार न बना दे इससे बेहतर है कि थोड़ी सी सावधानी बरत लो। अगर विधायक मध्य प्रदेश की सीमा से बाहर नहीं गए होते तो शायद कुछ और बात होती लेकिन सरकार बचाने की कवायद में ही तो विधायकों को मध्य प्रदेश की चौहद्दी से बाहर कर दिया।
भला करते तो क्या करते
भला हो कोरोना का, स्पीकर साहब को लगा कि माननीयों के स्वास्थ्य की हिफाजत तो बहुमूल्य है आखिर वो कैसे इजाजत दे सकते हैं कि एक छोटा सा वायरस इतने बड़े सूबे के माननीयों की शरीर में शरारत कर सके, लिहाजा लगाम लगाने के लिए जरूरी है सदन की कार्यवाही ही स्थगित कर दी जाए। अगर मामला अदालत में भी गया तो कम से कम यह तो कहने को होगा मीलॉर्ड हम करते तो क्या करते।
(प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)