नई दिल्ली : कोविड-19 रोधी टीकों की 100 करोड़ से अधिक खुराक देने की उपलब्धि हासिल करने और कुछ यूरोपीय देशों में बढ़ते संक्रमण के मामलों के बीच देश में इस महामारी की तीसरी लहर को लेकर कई प्रकार की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। आने वाले पर्व व त्योहारों के मौसम के मद्देनजर क्या यह जानलेवा वायरस फिर अपना स्वरूप बदल सकता है, दूसरी लहर की तरह क्या जनजीवन को प्रभावित कर सकता है और यदि हां तो ऐसी किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति से निपटने की क्या तैयारी है, इन्हीं मुद्दों पर नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया से कुछ सवाल किए गए, जानिये उनके जवाब :
टीकाकरण अब तो बहुत तेजी से हो रहा है और हम 100 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर चुके हैं। वैज्ञानिकों, स्वास्थ्यकर्मियों और प्रशासकों की बदौलत हम इतनी जल्दी इस आंकड़े को पार कर पाए। अब हमारे यहां संक्रमण के मामले भी कम हो रहे हैं। अगर हम टीकाकरण अभियान को तेजी से बढ़ाते रहें और कुछ हफ्तों के लिए कोविड से बचाव के उपायों को अपनाते रहें तो वायरस को फैलने का मौका नहीं मिलेगा। हम ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं कि इस महामारी से जल्दी ही बाहर आ जाएं। हमें बहुत सतर्क रहने की भी जरूरत है। क्योंकि वायरस अगर अपना रूप परिवर्तित कर ले तो हमारी स्थिति थोड़ी सी बिगड़ सकती है। इसलिए वायरस की निगरानी के साथ ही संक्रमण के मामलों की निगरानी करना भी जरूरी है। इसलिए टीकाकरण के साथ-साथ यदि बचाव के सभी एहतियातों को बरतें तो हम इस साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में काफी अच्छी स्थिति में हो सकते हैं।
डेल्टा वायरस के नए स्वरूप 'एवाई.4.2' को लेकर कुछ लोगों को आशंका है कि वह कुछ ज्यादा संक्रामक है। हमारे यहां जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसमें कहीं भी यह नहीं देखा गया कि एवाई.4.2 के मामले बढ़ रहे हैं। फिर भी, पूरी तरह से सतर्क रहने की जरूरत है। कोई भी स्वरूप (वेरिएंट) हो, अगर हम कोविड से बचाव अनुकूल व्यवहार करेंगे तो उसको हम हम आगे फैलने नहीं देंगे। साथ ही टीका भी लगाते रहें। जहां भी मामले बढ़ रहे हैं, वहां अस्पतालों में भर्ती होने वालों और मरने वालों की संख्या में वृद्धि नहीं देखी जा रही है। इसका यह मतलब है कि जिन्होंने टीके लगवाए हैं, उनको सुरक्षा मिली है। जिन लोगों ने टीके नहीं लगवाए हैं, उन्हें ही अस्पतालों में भर्ती होने की जरूरत पड़ी है। यूरोप में और रूस में टीकों को लेकर लोगों में अब भी हिचक देखने को मिल रही है। इसलिए टीके लगवाना और बचाव करना बहुत जरूरी है।
अभी तक जो आंकड़े हैं, उनमें देखा जा रहा है कि जहां पर भी टीके लगे हैं वहां मृत्यु के मामले नहीं बढ़ रहे हैं। इसका मतलब है कि टीके अभी तक हमें सुरक्षा दे रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे वेरिएंट्स आएंगे, हमें हो सकता है कि नए टीकों की जरूरत पड़े। चाहे हम उसे बूस्टर डोज कहें या नया टीका कहें, उसकी जरूरत पड़ सकती है। इस पर अब भी शोध हो रहा है। कोरोना के नए स्वरूपों में भी कारगर होने वाले टीकों को लेकर कई कंपनियां शोध कर रही हैं। जैसे इन्फ्लुएंजा के नए स्ट्रेंस के अनुरूप उसके टीके बदलते रहते हैं, उसी प्रकार हो सकता है कि कोरोना की अगली पीढ़ी के टीके भी आ सकते हैं। सेकेंड या थर्ड जेनरेशन टीके जो 'मल्टीपल वेरिएंट्स' में भी सुरक्षा दे पाएं। हो सकता है कि अगले साल तक ऐसे टीके आ जाएं जो बिल्कुल नए प्रकार का होगा।
अगर हम तेज गति से टीकाकरण करते रहें और नियमों का पालन करते रहें तो हम तीसरी लहर को या तो आने नहीं देंगे और अगर आए भी तो इतने ज्यादा मामले नहीं होंगे जितनी पहली और दूसरी लहर में आए थे। हमें यह देखना है कि वायरस के स्वरूप में किस प्रकार का परिवर्तन होता है। इसके लिए थोड़ा सा सतर्क रहें। लेकिन अभी तक जो आंकड़े उपलबध हैं उनसे लगता नहीं है कि संक्रमण से अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़गी या मृत्यु दर बढ़ेगी।
इस दफा हमने पूरी तैयारी की हुई है। ऑक्सीजन संयंत्र लगे हैं व ऑक्सीजन भंडारण टैंक भी बने हैं ताकि ऑक्सीजन की कमी ना हो। चिकित्सकों को भी प्रशिक्षण दिया गया है। बच्चों में मामले बढ़ते हैं तो इसका भी प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही दवाइयों की कमी ना हो, इसका भी ध्यान रखा गया है। तैयारी तो पूरी की गई ताकि कोई बड़ी लहर आए तो इस दफा हम बिल्कुल तैयार रहें। लेकिन साथ ही हमें पूरा प्रयास करना चाहिए कि लहर को आने ही ना दें।