- दिल्ली के नेताजी सुभाष चंद्र इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक डॉ. मीरा चड्ढा
- चड्ढा का दावा है कि परमाणु विस्फोट के घातक असर को कम किया जा सकता है
- डॉ. चड्ढा ने अपने शोध में गणितीय मॉडल के जरिए इसे समझाया है
नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर मीरा चड्ढा ने दावा किया है कि परमाणु हथियारों के घातक असर को डस्ट पॉर्टिकल्स से कम किया जा सकता है। डॉ. चड्ढा का रिसर्च रॉयल सोसायटी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के किरन विभाग के तहत होना वाले वूमन साइंटिस्ट स्कीम का हिस्सा है। दिल्ली के नेताजी सुभाष चंद्र इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक डॉ. चड्ढा ने अपने अध्ययन में गणितीय मॉडल के जरिए यह बताया है कि डस्ट पॉर्टिकल्स की मदद से परमाणु हथियारों के घातक असर को कम किया जा सकता है।
जर्नल में प्रकाशित डॉ. चड्ढा के अध्ययन में कहा गया है कि अधिक तीव्रता वाले (खासकर परमाणु हथियार) विस्फोट के बाद उससे नुकसान पहुंचने वाले क्षेत्र में एवं विस्फोट से निकली ऊर्जा में डस्ट पॉर्टिकल्स से कमी लाई जा सकती है। उन्होंने अपने मॉडल में यह दर्शाया है कि विस्फोट के बाद पैदा हुई तरंगों में कैसे कमी आई।
अपने इस अध्ययन के बारे में डॉ. चड्ढा का कहना है, 'अपनी पीएचडी के दौरान मैंने शॉक वेव्स के बारे में पढ़ा कि डस्ट पॉर्टिकल्स कैसे इन तरंगों को कमजोर करते हैं। इसी दौरान मैंने 'साइंस टुवार्ड्स स्प्रिच्युलिटी' किताब पढ़ी जिसमें पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कमाल से पूछा गया कि 'क्या विज्ञान कूल बम बना सकता है जिसका इस्तेमाल परमाणु बम के विस्फोट को निष्क्रिय करने अथवा उसे अप्रभावी बनाने में किया जा सके? इसके बाद मैं इस दिशा में सोचने लगी।'
डॉ.चड्ढा ने परमाणु हथियारों के विस्फोटों एवं उनकी तरंगों पर डस्ट पॉर्टिकल्स के संभावित असर पर गंभीर अध्ययन किया है। बता दें कि 'वूमन साइंटिस्ट स्कीम' विज्ञान एवं प्रौद्दोगिकी मंत्रालय का एक फेलोशेप कार्यक्रम है। इसके तहत उन महिला वैज्ञानिकों को दोबारा मुख्यधारा में आने का मौका मिलता है जो अपने करियर में वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अवकाश लेती हैं। डॉ. चड्ढा ने इस अवसर का लाभ उठाया है।
डॉ. चड्ढा को डब्ल्यूओएस योजना से काफी मदद मिली। इससे अध्ययन में इस्तेमाल होने वाले उपकरण एवं फंड की व्यवस्था आसानी से हो पाई और उन्हें अपना सपना साकार करने में मदद मिली।