तीन दिनों तक नफरत की आग में झुलसने के बाद दिल्ली में हालात सामान्य हो रहे हैं। लेकिन उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाकों से आने वाली हिंसा एवं उपद्रव की खौफनाक कहानियां डराने वाली हैं। परिवार बर्बाद हो गए हैं। उपद्रवियों ने दुकानों-स्कूलों को आग के हवाले कर दिया। पीड़ितों की आंखों में अपनों को खोने की कसक और दिल को कभी न भरने वाले घाव की दर्द महसूस की जा सकती है। 1984 के सिख दंगों के बाद दिल्ली ने इससे पहले भीड़ का ऐसा तांडव नहीं देखा था। 23 से 25 फरवरी तक भीड़ की हिंसा में उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, कबीर नगर, कर्दमपुर, यमुना विहार, शिव विहार और खुरेजी जल उठे। मरने-मारने पर उतारू लोगों ने 42 जिंदगियों (यह संख्या बढ़ सकती है) को खत्म कर दिया।
पटरी पर आता जीवन
इतने बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होने के बाद पुलिस ने स्थितियों को निंयत्रण में करने का दावा किया है। लोग घरों से बाहर आने और काम धंधे पर जाने लगे हैं। दुकानों और बाजारों में चहलकदमी बढ़ रही है लेकिन सब कुछ पहले जैसा नहीं है, लोगों में भय और असुरक्षा का माहौल है। दिल्ली के ये दंगे परेशान करने वाले हैं। दिल्ली को सबसे सुरक्षित माना जाता है। यहां की पुलिस खुद को काफी पेशेवर मानती है। यदि राजधानी में तीन दिनों तक बड़े पैमाने पर हिंसा का खेल जारी रह सकता है तो देश के अन्य भागों की कल्पना की जा सकती है।
खुफिया एजेंसी की विफलता
दिल्ली की इस उन्मादी हिंसा के पीछे पुलिस और खुफिया एजेंसी की विफलता भी मानी जा रही है। साथ ही कहीं न कहीं उन उकसाने वाले बयानों को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जिन्होंने टकराव को बढ़ाने में आग में घी का काम किया। अब तक पुलिस जांच में जी चीजें सामने आई हैं उससे जाहिर होता है कि दिल्ली को जलाने की साजिश पहले से की गई थी। लोगों, इमारतों और वाहनों को निशाना बनाने के लिए पेट्रोल बम का इस्तेमाल हुआ। टायर और रबड़ से बनी खास तरह की गुलेल से ज्वलनशील पदार्थों एवं बड़े पत्थर फेंके गए। भीड़ ने बड़े पैमाने पर गोलीबारी की। कई जगहों पर भीड़ ने पुलिस को घेर लिया। पत्थरबाजी में एक पुलिसकर्मी की मौत हुई और पुलिस अधिकारी घायल हुए। जांच में यह बात भी सामने आई है कि हमला करने वालों में बहुत से लोग बाहरी थे जिन्हें पहली बार सड़कों पर देखा गया।
250 से ज्यादा एफआईआर दर्ज
गत 25 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली में थे और इस दिन हिंसा अपने चरम पर थी। ट्रंप के दौरे को देखते हुए पुलिस पहले से अलर्ट पर थी। फिर भी राजधानी को आगजनी और हिंसा की चपेट में आने से नहीं बचाया जा सका। हिंसा मामले में 250 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुए हैं और पुलिस ने सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का कहना है कि वह दिल्ली दंगों के तह में जाएगी और दोषियों को सख्त सजा दी जाएगी। हालांकि एक कांस्टेबल पर सरेआम पिस्तौल तानने वाले शाहरूख अभी गिरफ्त से बाहर है। पुलिस ताहिर हुसैन को भी पकड़ नहीं पाई है।
पुलिस की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है उससे यह बात सामने आ रही है कि कुछ जगहों पर हिंसा अचानक से हुई जबकि कुछ जगहों पर यह सुनियोजित थी। अचानक हिंसा की बात समझ में आती है लेकिन दंगे यदि सुनियोजित हों तो सवाल पुलिस और खुफिया एजेंसियों पर उठते हैं। दंगा फैलाने के लिए हजारों लोग एक साथ हथियारों एवं अन्य साजो-सामान के साथ सड़कों पर आ गए यह बात आसानी से गले नहीं उतरती। बाहरी लोग कैसे पहुंचे, हथियार उन तक कैसे पहुंचे। चुनिंदा जगहों एवं लोगों को कैसे निशाना बनाया गया यह सब जांच का विषय है।
भविष्य में और चौंकन्ना होने की जरूरत
उत्तर पूर्वी दिल्ली में बड़े पैमाने पर यदि सुनियोजित हिंसा, हत्या और आगजनी हुई है तो यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए एक बड़ी विफलता है। मीडिया में दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारियों के बयान देखने से ऐसा लगता है कि हिंसा रोकने निकली पुलिस कई जगहों पर उपद्रवियों के बीच फंस गई और चाहते हुए भी कार्रवाई नहीं कर पाई। इतने बड़े पैमाने पर हिंसा से निपटने में कहीं न कहीं उसकी लाचारी भी सामने आई है। दिल्ली पुलिस के सामने 84 के दंगों के बाद पहली बार ऐसे हालात बने हैं और इससे उसकी कमजोरियां सामने आई हैं। जाहिर है कि इस जघन्य हिंसा से वह सबक लेगी और इससे निपटने के लिए खुद को और बेहतर तरीके से तैयार करेगी।