- फुरफुरशरीफ के अब्बास सिद्दीकी ने हाल ही में इंडियन सेक्यूलर फ्रंट का किया है गठन
- कांग्रेस, लेफ्ट के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरे
- ममता बनर्जी, अब्बास सिद्दीकी को बताती हैं वाचाल
कोलकाता। बंगाल में आठ में से दो चरणों का चुनाव संपन्न हो चुका है। ममता बनर्जी और बीजेपी में हर दिन बयानों के जरिए वार और पलटवार होता है। ममता बनर्जी से जब असदुद्दीन ओवैसी और फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी के बारे में पूछा जाता है तो ओवैसी को वो पैसों के लिए बिका बताती हैं तो दूसरी तरफ अब्बास सिद्दीकी को वाचाल कहती हैं। इन सबके बीच कांग्रेस और लेफ्ट अपने अभियान को किस तरह से चला रहे हैं वो चर्चा के केंद्र में है।
कांग्रेस से गठबंधन पर आईएसएफ का बयान
यहां सवाल यह है क्या कांग्रेस और फुरफुराशरीफ के बीच किसी तरह का गठबंधन है। दरअसल यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कांग्रेस अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन को नकार रही है। लेकिव उनका कुछ और ही कहना है। अब्बास सिद्दीकी के मुताबिक वो संयुक्त मोर्चा चाहते हैं जो सरकार बना सके इसके लिए वो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का समर्थन चाहते हैं क्योंकि वो खुद संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन उनका नेतृत्व अलग तरह से सोच रहा हो तो वो आखिर क्या कर सकते हैं।
दूसरे चरण के चुनाव से पहले ममता ने की थी खास अपील
दरअसल दूसरे चरण के चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने 15 विपक्षी दलों को खत लिखकर कहा कि इस समय बीजेपी की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए सबका एक साथ आना जरूरी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी की कामयाबी का मतलब यह है कि सांप्रदायिक शक्तियां अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगी। लिहाजा इस समय सबका एक साथ इकट्ठा होना जरूरी है। ऐसे में उन मतों का बिखराव नहीं होने देना चाहिए जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकती हो।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि बंगाल पर कौन राज करेगा इसका औपचारिक फैसला तो 2 मई को आएगा। लेकिन जिस तरह से बीजेपी हमलावर है उसकी वजह से टीएमसी के सामने मुश्किल है। अगर कहा जाए कि ममता बनर्जी अब तक अपनी जिंदगी का सबसे कठिन चुनाव लड़ रही हैं तो गलत ना होगा। 2011 के चुनाव में उनके सामने फुरफुराशरीफ और असदुद्दीन ओवैसी के रूप में किसी तरह की चुनौती नहीं थी। ये दोनों राजनीतिक शख्सियतें भले इस दफा मैजिक नंबर में किसी तरह का बड़ा हेरफेर ना कर पाएं। लेकिन इनकी छोटी मोटी कामयाबी ममता बनर्जी की राह कठिन बना देगी। ऐसे में उनकी नजर कांग्रेस पर है क्योंकि अगर वैचारिक तौर पर देखा जाए तो टीएमसी और कांग्रेस करीब करीब एक जैसे हैं।