- 1985 में असम समझौते में हुआ था एनआरसी का जिक्र
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद असम में शुरू हुई एनआरसी प्रक्रिया
- सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम लोगों को भारतीय नागरिकता देने की व्यवस्था
नई दिल्ली। 9 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल को जब सदन के पटल पर रखा गया तो सड़कों पर विरोध के सुर सुनाई पड़ने लगे थे। दो दिन और बीतने के बाद इस बिल को संसद के उपरी सदन यानि राज्यसभा में पेश किया गया। सवाल ये था कि क्या यह बिल राज्यसभा से पारित हो पाएगा। करीब 6 घंटे तक इस बिल पर बहस हुई और गृहमंत्री अमित शाह की तरफ से करीब डेढ़ घंटे बयान दिया गया। इस बिल पर मतदान हुआ और सदन ने बहुमत से हरी झंडी दिखा दी। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल कानून की शक्ल में है। लेकिन इस कानून पर ज्यादातर लोग सड़कों पर हैं और उन्हें डर है कि सीएए और एनआरसी के जरिए उन्हें भारत से बाहर कर दिया जाएगा। यहां सीएबी,सीएए और एनआरसी के बीच का अंतर समझना जरूरी है।
क्या है एनआरसी
1971 के बाद असम के मूल लोग इस बात से परेशान थे कि बिना किसी रोकटोक के शरणार्थी उनके राज्य में आ रहे हैं जिसकी वजह से उनका मूल अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसे लेकर शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चला लेकिन समय गुजरने के साथ प्रदर्शन हिंसक हो चला। इस समस्या के निदान के लिए राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में असम समझौता किया जिसमें असम के मूल लोगों को संरक्षण देने का वादा किया गया। असम समझौते में भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सेंसस का जिक्र था जिसे आमतौर पर हम एनआरसी के नाम से जानते हैं। इसके जरिए घुसपैठियों की पहचान की जानी थी ताकि असम का मूल रूप बचा रहे।
क्या है सीएबी या सीएए
नागरिकता संशोधन कानून पर जब भारत के राष्ट्रपति की तरफ से हस्ताक्षर किया गया तो बिल कानून की शक्ल में आ गया। इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम नागरिकों को नागरिकता प्रदान की जाएगी जो धार्मिक प्रताणना की वजह से भारत आ गए। सड़कों पर उतरे लोगों का कहना है कि इस कानून की वजह से मौजूदा बीजेपी सरकार उन्हें देश से बाहर कर देगी। लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि यह कानून किसी की नागरिकता छिनने के लिए नहीं है, बल्कि नागरिकता देने के लिए है।
गृहमंत्री अमित शाह ने संसद और संसद के बाहर बताया कि पाकिस्तानस बांग्लादेश और अफगानिस्तान का राज्यधर्म इस्लाम है। अगर पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनसंख्या पर नजर डालें तो यह साफ है कि वहां अल्पसंख्यकों की दशा और दिशा क्या है। सीएए के तहत सिर्फ बौद्ध, पारसी, ईसाई, जैन, हिंदुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी और इसके लिए भारत में प्रवास की अंतिम तारीख 31 दिसंबर 2014 मुकर्रर की गई है। इस तिथि के बाद जो लोग भारत आएंगे उन्हें सामान्य प्रक्रिया के तहत ही गुजरना होगा।