- बिहारी मजदूरों की हत्या पर बिहार के नेताओं का दिख रहा बड़बोलापन
- देश के कई राज्यों में अक्सर घटनाओं का शिकार होते है बिहारी मजदूर
- हाल ही में बिहार के नागरिक की कश्मीर मे आतंकियों ने कर दी थी हत्या
नई दिल्ली: पिछले दिनों बिहार के दिलखुश की कश्मीर के बडगाम में आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। दिलखुश एक ईट भट्टे पर काम करके अपनी रोजी-रोटी चलाता था। दिलखुश बिहार के वैशाली जिले से कश्मीर कमाने गया था। ये कोई पहली घटना नहीं है, जब बिहार के मजदूरों की आतंकियों ने कश्मीर में हत्या की है। इससे पहले अक्टूबर 2021 में भी बिहार के तीन मजदूरों की हत्या कर दी गई थी। ये तीनों बिहार के अररिया जिला के रहने वाले थे। बीतें कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में हिंसक घटनाएं बढ़ गई है, आतंकी लगातार लोगों की टारगेट कर हत्या कर रहे हैं।
नेताओं का बड़बोलापन
हाल ही में हुए बिहार के मजदूरों की हत्या पर जब बिहार सरकार के एक मंत्री से इस मुद्दे पर सवाल किया गया तो मंत्री जी ने कहा कि कोई हमारे एक व्यक्ति की हत्या करेगा तो हम उसके 100 लोगों को मारेंगे। साथ ही मंत्री जी ने यह भी कहा कि पिछले एक दो साल से कश्मीर से कचरा साफ हो रहा है, इसलिए कुछ लोग माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पहले बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि कश्मीर को अगर शांत करना है तो बिहारियों को सौंप दिया जाए, हम सब ठीक कर देंगे। नेताओं के इस तरह के कई बयान देखने को मिल जाते है, लेकिन पलायन के लिए जिम्मेदार बेरोजगारी पर कोई बात नहीं करता।
लाखों मजदूर करते हैं पलायन
बिहार से हर साल लाखों की संख्या में मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं। पिछले कुछ सालों में कई ऐसी घटनाएं हुई है, जिसमें बिहार के मजदूरों को हादसे का शिकार होना पड़ा हैं। बिहार से सैकड़ो किलोमीटर दूर तेलंगाना में एक कबाड़ के गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 मजदूरों की मौत हो गई। ये मजदूर बिहार के सारण और कटिहार जिले से थे, जो वहां गोदाम में काम करते थे और उसी गोदाम के ऊपर बने कमरे में रहते थे। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में नाला खुदाई के दौरान एक स्कूल की दिवार गिरने से तीन बिहार के मजदूरों की मौत हो गई। इससे पहले फरवरी में पुणे के एक निर्माणाधीन मॅाल में लोहे की जाली गिरने से बिहार के पांच मजदूरों की जान चली गई। बिहारी मजदूरों की जाने की लिस्ट बहुत लंबी है, कहीं ना कहीं हर दिन बिहारी मजदूर इस तरह के घटनाओं का शिकार होते रहते हैं। ऐसी हर घटनाओं के बाद लोग गम जताते है और सरकार मुआवजे का एलान कर देती है। लोग सोशल मीडिया पर शोक संदेश की बाढ़ ला देते है, लेकिन समय बीतने के साथ ही लोग मौत की वजह, पलायन और बेरोजगारी को भुल जाते है।
बडगाम में प्रवासी मजदूरों को आतंकियों ने मारी गोली, एक की मौत, दूसरा घायल
सभी जिला मुख्यालयों से देश के हर कोने के लिए बस
बिहार में पलायन की यह स्थिति है कि बिहार के हर जिला मुख्यालय के साथ-साथ बिहार के कई गावों से देश के कोने-कोने तक जाने के लिए बस मिल जाती है। इन बसों पर अक्सर मजदूर सफर करते है, दिल्ली से लेकर जम्मू तक, कोलकाता से लेकर कोटा तक बस चलती है। हजारों की संख्या में मजदूर बसों से ही पलायन करते है। बिहार से मजदूरों को लेकर अंबाला जा रहा एक बस उत्तर प्रदेश में दुर्घटनाग्रस्त हो गई, इसमें हादसे में पांच लोगों की मौत हो गई। ऐसी कई घटनाएं आए दिन होते रहता है, जिसमें सड़क दुर्घटना के कारण मजदूरों की मौत हो जाती है।
बिहार में क्यों नहीं रोजगार के अवसर
वहीं सेंटर फॅार मॅानिटरिंग इकॅानमी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बिहार में बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत रही, दिसंबर में यह 16 प्रतिशत थी। पिछले साल बिहार में बेरोजगारी दर सबसे उच्चतम स्तर पर था। बिहार में रोजगार के अवसर नहीं होने का सबसे बड़ा कारण बिहार में इंडस्ट्री का नहीं होना माना जाता है। ऐसा नहीं है की पहले बिहार में कारखानों की कमी थी, बिहार में एक से बढ़कर एक कारखाना हुआ करता था, लेकिन आज कई औद्योगिक कारखाने बंद पड़ी हुई है। एक समय था जब बिहार चीनी के उत्पादन के लिए पूरे देश में जाना जाता था। बिहार में कुल 28 चीनी मिल है, 28 चीनी मिल में से वर्तमान में 18 मिल बंद पड़ी है। पहले हजारों की संख्या में मजदूर इन चीनी मिलों में काम करते थे। दरभंगा स्थित अशोक पेपर मिल 2003 से बंद पड़ी है, इस मिल की शुरूआत दरभंगा महराज ने की थी।
दरभंगा महाराज ने रोजगार के अवसर के लिए कई फैक्ट्री लगाई थी, लेकिन समय के साथ सभी बंद हो गई। बिहार का भागलपुर जिला सिल्क सिटी के नाम में जाना जाता है, लेकिन सिल्क फैक्ट्री आज भी बंद पड़ी हुई है। सरकार और विपक्ष चुनाव के समय कई रोजगार लाने के कई वादे करती है, लेकिन इतने दिनों बाद भी बिहार से पलायन ना तो रूक पाया है और ना ही सरकार ने रोजगार के अवसर के लिए जरूरी कदम उठाएं है। लॅाकडाउन के दौरान बिहार के हजारों मजदूर सैकड़ो किलोमीटर पैदल सफर के लिए मजबूर हो गए थे, इस दौरान भी कई लोगों की जान चले गई थी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक बिहार के मजदूरों को रोजी-रोटी के लिए परदेश में जान गवाना पड़ेगा ? क्या अब यही बिहार के मजदूरों की नियती बन गई है ?