- राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की तैयारी, दिवाली के समय जलाए जाएंगे 33 करोड़ दीए
- चीनी लड़ियों को भारतीय बाजार से बाहर करने की तैयारी
- राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का दावा- आत्मनिर्भर भारत बनने की दिशा में एक कदम
नई दिल्ली। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस साल दीपावली के अवसर पर 'कामधेनु दीपावली अभियान' मनाने का अभियान शुरू किया है। इस अभियान के माध्यम से, आयोग दिवाली महोत्सव के दौरान गाय के गोबर और पंचगव्य उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। गोबर आधारित दीयों, मोमबत्तियों, धूप, अगरबत्ती, शुभ-लाभ, स्वस्तिक, स्मरणी, हार्डबोर्ड, वॉल-पीस, पेपर-वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है। आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया ने सोमवार को राष्ट्रीय मीडिया सेंटर में प्रेस कांफ्रेंस कर कामधेनु दीपावली अभियान के बारे में जानकारी दी।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की खास पहल
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का लक्ष्य इस वर्ष दीपावली त्योहार के दौरान 11 करोड़ परिवारों में गाय के गोबर से बने 33 करोड़ दीयों को प्रज्जवलित करना है। अब तक प्राप्त प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक है। लगभग 3 लाख दीयों को अयोध्या में ही प्रज्वलित किया जाएगा और 1 लाख दीये वाराणसी में जलाए जाएंगे। हजारों गाय आधारित उद्यमियों को व्यवसाय के अवसर पैदा करने के अलावा, गाय के गोबर से बने उत्पादों के उपयोग से स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण भी मिलेगा। यह गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद करेगा। यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की परिकल्पना और अभियान को बढ़ावा देगा। इससे पर्यावरण को नुकसान रोकने में मदद मिलेगी।
गौवंश की सुरक्षा के लिए समर्पित है आयोग
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने प्रधानमंत्री की अपील पर इस साल गणेश महोत्सव के लिए भगवान गणेश की मूर्तियों के निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग करने के लिए सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था।राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से गायों और गौवंश के संरक्षण, सुरक्षा और विकास तथा पशु विकास कार्यक्रम को दिशा प्रदान करने के लिए किया गया है। मवेशियों से संबंधित योजनाओं के बारे में नीति बनाने और कार्यान्वयन को दिशा प्रदान करने के लिए आरके एक उच्चशक्ति वाला स्थायी निकाय है, ताकि आजीविका उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा सके। पशुधन अर्थव्यवस्था का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 70.3 लाख घरों में होता है।