नई दिल्ली : समय की कठोर आवश्यकताएं नायकों को जन्म देती हैं। इन्हीं में से एक नायक थे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर। समतामूलक समाज के बारे में डॉ. अंबेडकर की दूरदृष्टि भारतीय संविधान के निर्माण में झलकती है। एक बेहतर भारत के निर्माण में उनका योगदान अतुलनीय है। उनकी सोच वैज्ञानिक थी। वह रूढ़ियों से मुक्त एक शिक्षित समाज चाहते थे। उनमें राष्ट्रहित सर्वोपरि था। आज के समय में डॉ. अंबेडकर के मूल्यों को अपनाने एवं उनकी समतामूलक समाज की अवधारणा को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
संघर्षों एवं शिक्षा से सामाजिक मूल्य विकसित किए
डॉ. अंबेडकर ने अपने संघर्षों एवं अपनी शिक्षा से सामाजिक मूल्यों को विकसित किया। वे जीवनभर अपने मूल्यों से कभी विचलित नहीं हुए। उनका व्यक्तित्व विराट था। भारतीय संविधान के निर्माण में उनका चिंतन, अध्ययन एवं विद्वता की स्पष्ट छाप झलकती है। डॉ. अबेंडकर अध्ययन बहुआयामी एवं विशाल था। उन्होंने भारतीय संविधान के जरिए एक आत्मनिर्भर एवं आधुनिक भारत की नींव रखी। उन्होंने आर्थिक रूप से संपन्न एवं शिक्षित भारत का सपना देखा था। वह समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार देने के पक्षधर रहे।
शिक्षा को वह सामाजिक परिवर्तन का 'हथियार' मानते थे
शिक्षा को वह सामाजिक परिवर्तन के एक बड़े एवं प्रभावी 'हथियार' के रूप में देखते थे। वह कहते थे कि सामाजिक गुलामी से अगर व्यक्ति को मुक्त होना है तो उसे शिक्षित होना होगा। समाज के वंचित एवं हाशिये के लोगों में शिक्षा से ही जागृति पैदा होगी। शिक्षा से ही समाजिक हैसियत, आर्थिक संपन्नता एवं राजनीतिक आजादी पाई जा सकती है।
जातिविहीन समाज चाहते थे डॉ. अंबेडकर
जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए उन्मूलन के लिए डॉ. अंबेडकर हमेशा मुखर रहे। इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए उन्होंने अभियान चलाया। सामाजिक न्याय एवं समान अधिकारों की लड़ाई में उन्होंने अपना पूरा जीवन खपा दिया। उनका सपना समानता के आधार पर हिंदू समाज को नए तरीके से व्यवस्थित करने का था। वह जातिमुक्त समाज चाहते थे। वह चाहते थे कि आगे बढ़ने के लिए सभी को समान अवसर मिले।
दलित समाज को एकजुट किया
दलित समाज को प्रेरित करने एवं उनमें जनजागृति लाने के लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहे। दलित समाज के उत्थान के लिए उन्होंने राजनीतिक दल बनाए। उनकी ओर से गठित इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया एवं ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन से दलित समाज संगठित हुआ। इन राजनीतिक दलों ने दलित वर्ग की आवाज को प्रमुखता से उठाया। डॉ. अंबेडकर के प्रयासों की वजह से देश के दलित समाज की मुख्यधारा से जुड़े। साजाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समानता के अधिकार का अभियान चलाने वाले डॉ. अंबेडकर की लड़ाई अभी अधूरी है। उनके सपनों का भारत बनाने के लिए उनके मूल्यों एवं विचारधारा को आगे बढ़ाने की जरूरत है।