- देश के पहले उप राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज 45वीं पुण्यतिथि है
- गुलाम भारत में अंग्रेजों ने राधाकृष्णन को 'सर' की उपाधि दी थी
- उन्हें अपने जीवन में 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज 45वीं पुण्यतिथि है। वे 20वीं सदी के सबसे महान विद्वानों में से एक थे यही कारण था कि अंग्रेजों तक ने उन्हें 'सर' की उपाधि से नवाजा था। हालांकि जब भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली तब उन्होंने कभी भी उनके द्वारा दिए गए इस उपाधि को अपने नाम के साथ नहीं जोड़ा। वे स्वतंत्र भारत के पहले उप राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को मद्रास में हुआ था।
हर साल 5 सितंबर को उनके जन्मदिवस के को देशभर में शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। आजादी मिलने के बाद राधाकृष्णन रूस की राजधानी मॉस्को में भारत के राजदूत के पद पर भी रहे। भारत और रूस के बीच मित्रतापूर्ण संबंध में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बड़ी भूमिका मानी जाती है। इसके पहले उन्हें यूएन की संस्था यूनेस्को का भी राजदूत बनाया गया था।
1954 में भारत रत्न
उन्हें 1952 में भारत का उप राष्ट्रपति बनाया गया। 1954 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के द्वारा उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस प्रकार वे भारत रत्न पाने वाले पहले व्यक्ति बने। देशप्रेम के लिए विख्यात होने के बावजूद उन्हें अंग्रेजों की तरफ से सर की उपाधि दी गई जिसे उन्होंने अपने नाम के साथ लगाना स्वीकार नहीं किया था। 1962 में वे देश के दूसरे राष्ट्रपति बने।
27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित
आपको जानकर हैरानी होगी कि डॉ. राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था जिसमें 16 बार लिटरेचर के क्षेत्र में जबकि 11 बार शांति के क्षेत्र में। शिक्षा के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के चलते ही हर साल उनके जन्मदिवस पर टीचर्स डे मनाया जाता है। टीचर्स डे की शुरुआत 1962 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में की गई थी। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी फिलॉसफी के प्रोफेसर रहे।
अपनी सैलरी का आधे से ज्यादा हिस्सा हर महीने किया दान
उन्होंने हेल्पेज इंडिया नाम की एन एनजीओ की स्थापना की थी जो गरीब बुजुर्गों और जरूरतमंदों की मदद करता था। उनके बारे में एक और चीज काफी लोकप्रिय है कि जब वे भारत के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपनी 10,000 की सैलरी में से केवल 2,500 रुपए की सैलरी लेते थे। बाकी के पैसे वे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में हर महीने जमा करा देते थे।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाया
वे एक ऐसे मेधावी छात्र थे जिन्हें जीवन भर स्कॉलरशिप मिलती रही। एमए पूरा करने के बाद उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में नौकरी मिली जहां उन्होंने 7 सालों तक दर्शनशास्त्र पढ़ाया। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी सेवा देने के बाद वे स्वदेश लौट आए और जिस कॉलेज से उन्होंने एमए की डिग्री प्राप्त की थी वहीं पर उन्हें उप-कुलपति बनाया गया। कुछ ही समय बाद वे बनारस चले गए और फिर उन्हें बीएचयू का उप-कुलपति बनाया गया।
दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनने का किया था ऐलान
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 26 जनवरी 1967 को जब वे देश को संबोधित कर रहे थे तब उन्होंने ऐलान कर दिया था कि वे दोबारा देश के राष्ट्रपति नहीं बनेंगे। उस समय उनका पहला कार्यकाल समाप्त होने वाला था। लंबी बीमारी के बाद उन्होंने 17 अप्रैल 1975 को अंतिम सांस ली थी।