- मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी।
- मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना से फिलहाल दूरी बना रखी है।
- नीतीश कुमार ने एक जून को जातिगत जनगणना पर सर्वदलीय बैठक बुलाई है।
Caste Census and Bharat Bandh:करीब एक साल बाद फिर से जातिगत जनगणना (Caste Census) को लेकर मोदी सरकार के सामने चुनौती खड़ी हो रही है। एक तरफ आज बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलॉयीज फेडरेशन यानी बामसेफ (BAMCEF)ने जातिगत जनगणना मुद्दे पर भारत बंद (Bharat Bandh)का आह्वाहन किया है। वहीं बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर भाजपा और जद (यू) में भी दूरी बनती दिख रही है। जबकि विपक्ष में बैठे तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इसी बहाने एक मंच पर आते दिख रहे हैं। यहीं नहीं इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक भी बुला ली है। और इस बात के संकेत दे दिए हैं कि सर्वदलीय बैठक के बाद बिहार कैबिनेट जातिगत जनगणना कराने के लिए प्रस्ताव भी पारित करेगी। जिसका सीधा दबाव मोदी सरकार पर ही पड़ेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जातिगत जनगणना का मुद्दा क्या है और इसकी मांग क्यों उठ रही है..
क्या है जातिगत जनगणना
देश में जनगणना की शुरूआत साल 1860 से हुई है। जहां तक जातिगत जनगणना की बात है तो साल 1931 तक , उसे किया जाता था। लेकिन आजादी के बाद से शुरू हुई जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति को अलग से शामिल किया जा रहा है। उसमें ओबीसी जातियों की अलग से जनगणना नहीं होती है। लेकिन अब यह मांग उठने लगी है कि देश में ओबीसी की भी गणना की जाय। जिससे कि ओबीसी की सही स्थिति का अंदाजा लग सके। और जब कोरोना के बाद अब फिर से जनगणना शुरू होने वाली है, तो एक बार फिर से जातिगत जनगणना की मांग उठने लगी है।
मोदी सरकार जातिगत जातिगत जनगणना पर क्यों नहीं तैयार
जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार का क्या रुख है ,इसे तत्कालीन गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब से समझा जा सकता है। उस समय उन्होंने कहा था "फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी जनगणना में एससी और एसटी को ही शामिल किया गया है।" और उसके बाद से केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने के कोई संकेत नहीं दिए हैं।
हालांकि बिहार से उठती मांग को देखते हुए बीते 17 मई को राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी (Sushil Modi) ने जातिगत जनगणना पर भाजपा के रूख को लेकर कई ट्वीट किए। जिससे यह साफ होता है कि फिलहाल केंद्र सरकार का जातिगत जनगणना कराने का कोई इरादा नहीं है। भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरुद्ध नहीं रही, इसलिए इस मुद्दे पर बिहार विधानसभा और विधान परिषद से दो बार पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव में भाजपा भी शामिल रही। केंद्र सरकार ने सबकी राय पर सम्मानपूर्वक विचार करने के बाद व्यावहारिक कारणों से जातीय जनगणना कराने में असमर्थता प्रकट की है।
जातिगत जनगणना पर राजनीति क्यों
जातिगत जनगणना को लेकर एक ऐसा पेंच है, जो किसी भी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इस बात का डर है कि कहीं ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी न हो जाय। अगर मौजूदा संख्या में कोई बड़ा बदलाव होता है तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। और आरक्षण की नई मांग खड़ी हो सकती है। साल 1990 में तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ा वर्ग पर गठित बी.पी.मंडल आयोग की कुल 40 सिफारिशों में से एक सिफारिश को जब लागू किया और उसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की व्यवस्था हुई ।
जातिगत जनगणना की एक बार फिर मांग, पटना से दिल्ली तक तेजस्वी यादव करेंगे पदयात्रा
मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी। उस एक फैसले ने पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल कर रख दिया। इस तरह का डर ओबीसी जातिगत जनगणना से भी दिखता है। इसीलिए सत्ता में बैठे राजनीतिक दल के लिए यह राजनीतिक जोखिम लेना आसान नहीं है। खासतौर उसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में दिख सकता है। और फिलहाल इस जोखिम को भाजपा नहीं लेना चाहती है।