- किसानों की मांग के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों वाली कमेटी का किया है गठन
- समिति को दो महीने का दिया गया है समय लेकिन किसानों को सदस्यों के नाम पर ऐतराज
- किसानों का कहना है कि समिति के सदस्य पहले से ही खास नजरिए से प्रभावित हैं
नई दिल्ली। किसान आंदोलन अब 49वें दिन में प्रवेश कर चुका है। सवाल अभी यह है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या अन्नदाता दिल्ली की सीमा से हटेंगे। अगर किसान नेता राकेश टिकैत के बयान को देखें तो उनके इरादे साफ नजर आते हैं। उन्होंने कहा था कि लड़ाई जारी रहेगी। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों वाली कमेटी का गठन कर दिया है तो क्या 15 जनवरी को सरकार से बातचीत होगी। लेकिन इसे समझने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को क्या कुछ अपने फैसले के जरिए साफ किया उसे समझना जरूरी है।
चार सदस्यों वाली समिति पर ऐतराज
मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ ने साफ कर दिया कि अदालत नए कृषि कानूनों पर दो महीने के लिए रोक लगा रही है और इस बीच चार सदस्यों वाली एक समिति विचार करने के बाद जो सुझाव देगी उसके आधार पर आगे का फैसला किया जाएगा। कमेटी को 10 दिन के अंदर काम करने के निर्देश के साथ दो महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है। लेकिन किसानों को समिति के सदस्यों पर ऐतराज है।
समिति के सदस्यों का अपना नजरिया
किसान नेताओं का कहना है कि जिन चार लोगों यानी बी एस मान, अनिल घनवत, अशोक गुलाटी और पी के जोशी को शामिल किया गया है उन लोगों को पहले से ही कृषि कानूनों पर खास नजरिया रहा है ऐसे में वो क्या सुझाएंगे उसके बारे में समझा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उससे बेहतर तो यही है वो सरकार से बात करें क्योंकि सरकार का तो स्पष्ट मत है कि वो कानूनों को वापस नहीं लेगी। लेकिन जिन लोगों को समिति का हिस्सा बनाया गया है उनसे किसी बेहतर नतीजे की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
ऐसे में सवाल है कि क्या 15 जनवरी को केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत होगी। इस संबंध में किसानों का कहना है कि इसके बारे में फैसला तो सरकार को ही करना है,क्योंकि सरकार की तरफ से जितनी दफा बातचीत के लिए बुलाया गया हम लोग विज्ञान भवन गए। किसान कहते हैं कि सवाल यह नहीं है कि हम कितने दौर की बातचीत कर चुके हैं। असल मुद्दा यह है कि क्या नतीजा सामने आएगा।