- साल 2019-20 में एमएसपी पर हुई कुल खरीद में चावल और गेहूं की 80 फीसदी हिस्सेदारी थी।
- इस समय 23 फसलों के लिए सरकार एमएसपी तय करती है। शांता कुमार कमेटी के अनुसार केवल 6 फीसदी किसानों को एमएसपी का फायदा मिलता है।
- फल, सब्जियां, पशुओं से होने वाले उत्पाद, एमएसपी के दायरे से बाहर हैं।
नई दिल्ली: 19 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया तो लगा था कि किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा। लेकिन एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को तुरंत खत्म करने के आसार नहीं दिख रहे हैं। किसान संगठनों ने सरकार से साफ कर दिया है, उनकी सबसे अहम मांगों में से एक अभी भी बाकी है। सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)की गारंटी का कानून बनाना होगा।
इसी सिलसिले में लखनऊ में आज (22 नवंबर ) किसानों की महापंचयात भी हो रही है। महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि किसान आंदलोन सिर्फ तीन कृषि कानूनों को लेकर नहीं था। एमएसपी गारंटी का कानून बनें, जो हमारी सबसे अहम मांग है। उन्होंने कहा कि सरकार से टेबल पर बैठकर बातचीत के बाद ही घर वापसी होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा
कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था जीरो बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, बदलती जरूरतों के अनुसार फसल पैटर्न बदलने और MSP को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, किसानों के प्रतिनिधियों के साथ साथ कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री भी शामिल होंगे। जाहिर है कि सरकार भी यह मान रही है कि मौजूदा एमएसपी व्यवस्था नहीं चलेगी। इसे देखते हुए नया फॉर्मूला निकालना होगा।
अभी क्या है MSP की व्यवस्था
मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)व्यवस्था 23 फसलों पर लागू होती है। सरकार हर साल सीजन के आधार पर इन 23 फसलों की एमएसपी निर्धारित करती है। जिसके आधार पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की एजेंसियां खरीद करती हैं। वैसे तो एमएसपी 23 फसलों के लिए निर्धारित है। लेकिन ऐसा नहीं है कि किसानों की सारी खरीद एमएसपी पर होती है। साला 2015 में आई शांता कुमार कमेटी के अनुसार एमएसपी का लाभ केवल 6 फीसदी किसानों को होता है। यानी 94 फीसदी किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर अपनी फसलों को बेचना पड़ता है।
इसी तरह पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS)की रिपोर्ट बताती है कि साल 2019-20 में 23 फसलों में 80 फीसदी खरीद केवल चावल और गेहूं की खरीद हुई थी। इस अवधि में 43 फीसदी चावल, 26 फीसदी गेहूं, 12 फीसदी दालों की खरीद होती है। जबकि फल, सब्जियां और पशुओं से होने वाले उत्पादन एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। जिनकी कुल कृषि उत्पदान में करीब 45 फीसदी हिस्सेदारी है।
कुछ ही राज्यों में खरीद ज्यादा
किसानों की समस्या यह है कि भले ही सरकार एमएसपी पूरे देश के लिए तय करती है। लेकिन खरीद की जब बात, आती है तो वह सभी राज्यों में एक जैसी नहीं है। मसलन पूरे देश में कुल गेहूं की 85 फीसदी खरीद एमपी, पंजाब, हरियाणा, राज्यों में होती है। वहीं चावल की 74 फीसदी खरीब पंजाब, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश,छत्तीसगढ़, उड़ीसा,हरियाणा से होती है।
इन फसलों पर मिलती है MSP
सरकार के तरफ से धान,गेहूं, मक्का, बाजरा,ज्वार, रागी, जौ, चना, अरहम, मूंग, उड़द, मसूर, मूंगफली तेल, सोयाबीन, सरसों, तिल, सूर्यमूखी,नाइजर सीड, कुसुम तेल , गन्ना, कपास, कच्चा जूट, नारियल पर एसएसपी दी जाती है।
गारंटी देने पर 10 लाख करोड़ रुपये की होगी खरीद
अगर सरकार केवल 23 फसलों पर एमएसपी की गारंटी देती है, तो 2016-17 से 2020-21 के दौरान उत्पादन के आधार पर कैलकुुलेट किया जाय तो करीब 10.59 लाख करोड़ रुपये की खरीद हर साल होगी। हालांकि यह बात भी समझनी होगी कि किसान अपनी उपज का सारा हिस्सा नहीं बेचता है। जिसे देखते हुए इस राशि में 10-20 फीसदी तक कमी भी आ सकती है। कुल मिलाकर जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमेटी बनाने की बात कही है। उससे साफ है कि सरकार एमएसपी के मौजूदा तौर तरीके में बदलाव करेगी।
क्या हो सकते हैं रास्ते
एसबीआई इकोरैप की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार सरकार एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित करने के लिए 5 अहम कदम उठा सकता है...
1.सरकार को एमएसपी की गारंटी देने की जगह 5 साल के लिए न्यूनतम फसल खरीद की गारंटी देनी चाहिए। (जिसमें सूखा, बाढ़ आदि आपदा से सुरक्षा मिले) ।
2.ई-नैम मंडियों में फ्लोर प्राइस एमसीएप से कम नहीं रखी जाय।
3.एपीएमसी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाय।
4.कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग संस्थाओं की स्थापना
5.कम खरीद करने वाले राज्यों को एमएसपी पर खरीद का बढ़ावा दिया जाय।
जाहिर है तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद , अब सरकार फोकस एमएसपी पर है। जिस तरह से प्रधानमंत्री ने कमेटी बनाने की बात की है, उससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में एमएसपी को लेकर नया फॉर्मूला सामने आ सकता है। लेकिन उससे पहले सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसान आंदोलन कब खत्म होगा ?