कृषि कानून को लेकर लंबे समय से कुछ किसान जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर तकरीबन 8 महीनों से डेरा जमाए किसानों की आज महापंचायत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में है। पंचायत में एक बार फिर से अपनी पुरानी मांग दोहराई और सरकार को चेतावनी दी है उनकी मांगों पर अगर सरकार सहमत नहीं होती तो 27 सितंबर को देशभर में प्रदर्शन होगा। लेकिन किसानों की मांग कितनी जायज है, इसको लेकर टाइम्स नाउ नवभारत के संवाददाता प्रेरित कुमार ने कृषि मामलों के आर्थिक विशेषज्ञ विजय सरदाना से बातचीत की।
विजय सरदाना कहते हैं कि किसान नेताओं को यही नहीं पता है कि वो विरोध क्यों कर रहे हैं। जो मुद्दे वो अक्सर बोलते हैं कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं क्योंकि इससे किसानों की जमीनें चली जाएगी। मैं उन सभी किसान नेताओं को चुनौती देता हूं कि एक लाइन दिखा दें कि यह कहां लिखा हुआ है। दूसरा मुद्दा वो हमेशा स्वामीनाथन कमेटी के रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि हमें MSP मिलना चाहिए। लेकिन उन्हें नहीं पता है कि स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट के वॉल्यूम 3, पेज नंबर 14 पर साफ-साफ लिखा हुआ है कि गेहूं और चावल को MSP नहीं मिलना चाहिए। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट में लिखा हुआ है कि MSP सिर्फ उसी स्थिति में दिया जाए अगर सरकार डायवर्सिफिकेशन की बात करती है। जो फसल आपको नहीं चाहिए आप कोई नई फसल उगाना चाहते हैं तो आप उसके लिए MSP कर दें ताकि किसानों को प्रोत्साहन मिले। यह साफ तौर पर स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट में लिखा हुआ है तो मैं किसान भाइयों से पूछना चाहता हूं कि किसान नेता जो उनको कह रहे हैं आंदोलन और प्रदर्शन करिए। कम से कम आप अपने उन किसान नेताओं से तो पूछिए कि कहां लिखा हुआ है।
किसान MSP को लेकर लगातार मांग कर रहे हैं। MSP से किसानों को क्या फायदा होगा?
अगर आप मैंडेटरी MSP करते हैं तो उससे किसानों का नुकसान ज्यादा है। पहला, एक किसान किसी एक फसल को उगाता है तो दूसरा किसान कोई और फसल उगाता है। कोई धान उगाता है तो कोई गेहूं उगता है। लेकिन वो घर चलाने के लिए 10 से ज्यादा फसलों को खरीदते हैं। घर चलाने के लिए जो गेहूं उगाता है वह चीनी भी खरीदेगा, चावल भी खरीदेगा, तेल भी खरीदेगा, मूंगफली भी खरीदेगा। आप एक फसल उगाते हैं तो आपको एक फसल पर MSP अच्छी मिलेगी। लेकिन बाकी जो फसलें घर चलाने के लिए खरीदेंगे वो तो बढ़े MSP की वजह से उन्हें महंगी कीमत पर मिलेगा। पहले आप कहेंगे कि MSP बढ़ाओ। फिर आप कहेंगे सब्सिडी बढ़ाओ। फिर होगा कि साथ में टैक्स बढ़ाओ। जब टैक्स बढ़ेगा तब फिर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ेंगे। हमें यह समझना पड़ेगा कि सरकार और संसद में कोई पैसा छापने की मशीन नहीं है। जो भी पैसा होता है वह सरकार हम जनता से लेकर के हमारे बीच में ही वो खर्च करती है। हमें यह समझना पड़ेगा कि अगर आप MSP बढ़ाते हैं तो वास्तव में जो आपकी रसोई है उसका खर्च बढ़ेगा।
साथ ही अगर आप MSP बढ़ाते हैं तो आपको बताना पड़ेगा कि किस क्वालिटी का MSP बढ़ेगा। क्योंकि खेत कोई फैक्ट्री नहीं है जहां सारा माल अच्छी क्वालिटी का ही होगा। खेतों में एक ही फसल में कई ग्रेड का माल होता है। अगर 50% माल A ग्रेड का होगा, तो 30 से 40 परसेंट B ग्रेड का मिलेगा। कुछ माल C और D ग्रेड का भी मिलता है। अगर MSP मिल गया तो C और D ग्रेड का माल कौन खरीदेगा। A और B ग्रेड का माल बिक गया तो उसका इन्फिरिअर माल कौन और कितने में लेगा। आज भी इस देश में हालत यह है कि सोयाबीन का रेट 90 रुपए चल रहा है। मुर्गी और मछली का किसान लगातार भारत सरकार से कह रहा है कि साहब हम 90 रुपए नहीं दे सकते हैं। हमें आयात करने दो। मुर्गी और मछली का किसान रोज भारत सरकार के यहां धरना दे रहा है कि हमें बताओ इस महंगाई में हम 90 रुपए नहीं दे सकते हैं। अब इस तरह MSP से सोयाबीन का किसान तो बढ़ रहा है खुश हो रहा है। लेकिन मुर्गा और मछली का किसान तो बर्बाद हो रहा है। तो कोई बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा ताकि देश का हित भी हो और किसानों को भी अपनी जिंदगी चलाने का रास्ता मिल सके। इसीलिए मैं बार-बार कहता हूं कि जो MSP की सोच है यह शॉर्टेज इकोनॉमिक्स की सोच है। यह सर प्लस इकनोमिक की सोच नहीं है। जिस देश में कमी होती है वहां पर लोग MSP का इस्तेमाल करें तो अच्छा लगता है। लेकिन जिस देश में सरप्लस है उस देश में MSP से किसानों का भला कभी नहीं हो सकता है। इसलिए हमें MSP को छोड़कर किसानों के हित के लिए नए तरीके को सोचना होगा। यह हमें पता है कि किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन यह MSP उनके लिए और बड़ी परेशानी बनेगी। हमें कुछ और नए रास्ते निकालने होंगे।
अहम की हो गई है लड़ाई
यहां पर किसान नेताओं से बहुत बड़ी गलती हो चुकी हैं। उन्होंने देश में किसानों को काफी भड़का दिया है कि कानून वापस नहीं तो घर वापस नहीं। अब इनकी मजबूरी हो गई है कि कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। इस कानून में इनको कुछ गलत समझ नहीं आ रही कि वापस करने को लेकर क्या कारण बताएं। न ये कोर्ट को कन्विंस कर पा रहे हैं, न ही संसद और न ही जनता को। यह अब इनके ईगो की लड़ाई हो गयी है। जिस दिन इनसे देश की जनता ने पूछ दिया कि हमें दिखाओ इस कानून में क्या गलत है उस दिन ये सब फंस जाएंगे। अभी ये झगड़ा किसान नेताओं की ईगो की लड़ाई है कि अब हम खाली हाथ घर वापस जाए कैसे।
इस आंदोलन का कोई आधार नहीं
किसान नेताओं ने गलत स्टैंड लेकर अपने पीछे गलत रास्ता खड़ा कर दिया। और उनके जो कार्यकर्ता थे उन्होंने भी कभी इस पर सवाल नहीं उठाए और वो इनकी बात मानते चले गए। यह जितने भी किसान नेता है यह सब अमीर लोग हैं। इनमें से कोई भी गरीब नहीं है। यह जब खेती करते थे, किसानी करते थे तभी तक गरीब थे। लेकिन इन्होंने अपने इन्फ्लुएंस का इस्तेमाल करके अपने आप को अमीर बनाया। जो भी बड़े किसान नेता हैं उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि इनके पास इतनी आमदनी और जमीन आई कहां से। यह जो नया तरीका है यह बाकी किसानों को भी क्यों नहीं सिखाते ताकि बाकी किसान भी अमीर हो जाएं। हकीकत यह है कि इस आंदोलन का कोई आधार नहीं है। सिर्फ राजनीतिक महत्वकांक्षा है।
प्रेरित कुमार की रिपोर्ट