- कोरोना महामारी में सेक्स वर्करों के सामने गहराया आजीविका का संकट
- सुुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को दिया आदेश
- कोलकाटा के एक एनजीओ की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने की सुनवाई
नई दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी के दौर में देश में और समाज में हर वर्ग के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण छोटे मोटे व्यवसायी मजदूर किसान वर्ग के सामने रोजगार और अजीविका का संकट पैदा हो गया है। यहीं एक वर्ग और भी है जिसके सामने भी ऐसी ही समस्या आ खड़ी हो गई है लेकिन इस तरफ समाज का ज्यादा ध्यान नहीं जाता है। हम बात कर रहे हैं सेक्स वर्कर्स की।
कोरोना वायरस और लॉकडाउन के इस दौर में सेक्स वर्करों के सामने भी अजीविका का एक बड़ा संकट पैदा हो गया है। उनकी कमाई लोगों सो होती है और वायरस के संक्रमण के खतरे के कारण लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया है जिसका सीधा असर इन सेक्स वर्करों की रोजी-रोटी पर पड़ने लगा है।
इसी गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को आदेश जारी की है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को आदेश देते हुए कहा है कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए इन्हें फौरन सहायता प्रदान कराई जाए ताकि इनकी जिंदगी भी सामान्य पटरी पर आ सके।
एक NGO की तरफ से पेश होने वाले एक सीनियर एडवोकेट ने कहा कि सेक्स वर्करों के उपर किए गए सर्व में पाया गया कि 1.2 लाख सेक्स वर्कर्स में 96 फीसदी सेक्स वर्कर्स के पास आजीविका का साधन खत्म हो गया है और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
कोर्ट ने राज्य सरकारों को आदेश देते हुए कहा है कि वे इन्हें सूखा राशन और पैसे उपलब्ध कराएं। कोर्ट में एनजीओ की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने कहा कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना में 1.2 लाख सेक्स वर्कर्स में से 96 फीसदी ने अपना आय का जरिया खो दिया है।
दरबार महिला समन्वय समिति एनजीओ की एक एप्लीकेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए ये बातें कही। इस आवेदन में कोरोना महामारी के कारण सेक्स वर्करों को किन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उस पर प्रकाश डाला गया था। देशभर में 9 लाख सेक्स वर्करों पर किस तरह का संकट पैदा हो गया है उनके राहत के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।
उनकी तरफ से पेश हुए एक अन्य वकील जयंत भूषण ने कोर्ट में कहा कि सेक्स वर्करों को यदि बिना आईडी कार्ड के राशन कार्ड उपलब्ध कराया जाए तो उनकी ये समस्या हल हो सकती है।
कोलकाता के इस एनजीओ ने अपनी दलील में कहा कि संविधान की धारा 21 के तहत सेक्स वर्करों को भी समाज में सम्मान के साथ रहने का अधिकार है। वे भी औरों की तरह इंसान हैं और उनके भी अधिकार हैं ऐसे में उनकी समस्याओं को तुरंत हल किया जाना चाहिए।