- गलवान नदी 80 किमी लंबी और श्योक की सहायक नदी है
- गुलाम रसूल गलवान के नाम पर इस 80 किमी लंबी नदी को गलवान नाम मिला
- गलवान में ही 15 जून की रात चीन और भारत के बीच हिंसक झड़प हुई थी।
नई दिल्ली। 15 जून की रात को लद्दाख के गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीन का धोखाचरित्र उजागर हुआ। एक तरफ ताजा विवाद को सुलझाने की कवायद चल रही है तो चीन के मन में कुछ और ही चल रहा था। 15 जून को दोनों देशों की तरफ से तनाव कम करने की दिशा में बातचीत जारी थी। लेकिन चीन की चालबाजी का असर यह हुआ कि आपसी हिंसक झड़प हुई जिसमें भारतीय फौज के 20 सैनिक शहीद हो गए जिसमें एक कमांडिंग अफसर भी शामिल थे। इस बीच यह भी जानकारी है कि चीन के 43 सैनिक मारे गए हैं लेकिन इसकी पुष्टि चीन की तरफ से नहीं है। जिस गलवान में यह सबकुछ हुआ उसके बारे में हम आपको बताएंगे।
इस तरह एक नदी का नाम पड़ा गलवान
गुलाम रसूल गलवान(Ghulam Rasool Galwan) एक साहसिक लद्दाखी शख्स थे। उन्हें साहसिक कामों को अंजाम देना अच्छा लगता था। उसी क्रम में वो नदी के किनारे किनारे आगे बढ़ते गए और एक ब्रिटिश खोजकर्ता से चैंग चेनमो घाटी में मिले। गुलाम रसूल गलवान ने इस तरह से 80 किमी लंबी नदी और उससे संबंधित भौगौलिक जानकारी को हासिल किया और उनकी साहसिक यात्रा को सम्मान देते हुए नदी का नाम गलवान रखा गया। लेकिन उन्हें भी पता नहीं रहा होगा जो नदी और घाटी अब गलवान के नाम से जानी जाएगी वो एक दिन एशिया की दो बड़ी शक्तियों से बीच विवाद का केंद्र बनेगी।
चीन की गिद्ध जैसी नजर
चीन ने न केवल अक्साई चिन पर अवैध कब्जा किया बल्कि 1956 के बाद उसकी नजर अक्साई चिन के पश्चिम में थी इसका अर्थ यह था कि गलवान पर वो गिद्ध की तरह नजर गड़ाए बैठा था। चार साल के बाद यानि 1960 में चीन ने गलवान नदी से पश्चिम के इलाकों पर जो श्योक नदी के किनारे किनारे पहाड़ियां हैं उन पर दावा करना शुरू कर दिया। दरअसल उसके पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि अगर चीन का कब्जा गलवान से पश्चिम जाकर श्योक नदी के किनारे वाली पहाड़ियों पर कब्जा मिलता तो उसे रणनीतिक तौर पर फायदा मिलता और इसके साथ ही एक बड़े भूभाग पर उसका कब्जा भी हो जाता। इसके साथ ही वो भारत की तरफ से आने वाले किसी भी खतरे का आसानी से मुकाबला कर लेता। इस तरह के फायदे को देखते हुए चीन और आक्रामक होना शुरू हो गया।
गलवान के लिए ही 1962 की लड़ी गई जंग
1961 में पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने कोंगका ला में सीआरपीएफ की पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला किया और इस तरह से चीन के साथ भारतीय पक्ष की झड़प शुरू हुई। खास बात यह थी कि स्पंगुर और पैंगोंग लेक के बीच वाले गलवान इलाके पर कब्जे की लड़ाई तेज हुई। तनाव का यह कहानी लड़ाई का शक्ल ले रही थी और उसका नतीजा 1962 की लड़ाई के रूप में सामने आया। जुलाई 1962 में गोरखा रेजीमेंट ने चीन द्वारा नियंत्रित सैमजुंगलिंग पोस्ट की सप्लाई लाइन को काट दिया। इसके बाद चीन की तरफ से कार्रवाई शुरू हुई और तनाव करीब चार महीने तक जारी रहा।