- अहिंसा के पुजारी थे महात्मा गांधी, चौरी चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस लिया
- 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ करो या मरो का नारा दिया
- 1922 से लेकर 1942 के बीच अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में गांधी के विचारों में बदलाव भी आए
Gandhi Jayanti 2021: अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने की लड़ाई अलग अलग रूपों में ब्रिटिश भारत के सभी हिस्सों में लड़ी जा रही थी। अगर गांधी से पहले के आंदोलनों को देखें तो ऐसा नहीं था कि स्थानीय स्तर पर कामयाबी ना मिली हो। कामयाबी मिली लेकिन अंग्रेजों के दमन चक्र की वजह से राष्ट्रीय फलक पर वो कामयाबियां खबर नहीं बन पाती थी। महात्मा गांधी जब भारत आए तो उनके साथ दक्षिण अफ्रीका में मिली कामयाबियों का एक खजाना था। लेकिन भारत में उनकी लड़ाई इतनी आसान नहीं थी। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका और संदेश दिया कि अपने सबसे बड़े दुश्मन के खिलाफ लड़ाई में हमें पहले खुद एकजुट होना होगा।
चौरी चौरा के बाद असहयोग आंदोलन की वापसी
गांधी जी भारत की सामाजिक, धार्मिक विभिन्नता को समझते थे लिहाजा उन्होंने अपने आंदोलन के केंद्र में किसान और गांव को बनाया। ये दोनों ऐसे केंद्र थे जिसके ईर्द गिर्द वो अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी लड़ाई छेड़ना चाहते थे। गांधी जी कहा करते थे कि जब आपका शत्रु बेहद ताकतवर हो तो उसके सामने शालीन, अहिंसक होकर व्यवहार करना चाहिए। दरअसल वो कहना चाहते थे कि आप अपने दुश्मन के खिलाफ लड़ाई लड़ने से पहले खुद को संगठित करिए। इस विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए गांधी जी ने स्वदेशी के नारे को बुलंद किया और असहयोग आंदोलन का ऐलान किया और उसे जनमत मिला। लेकिन चौरीचौरा में पुलिस स्टेशन के फूंके जाने के बाद गांधी ने झटके में असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया जिसकी आलोचना हुई।
1942 में करो या मरो का नारा
1922 से लेकर 1942 के कालखंड में गांधी के आंदोलन ने कई उतार चढ़ाव के दौर देखे। गांधी जी के आलोचकों ने निशाना साधना शुरू किया और कहा जाने लगा कि गांधी के विचार में ही खामी है।लेकिन वो कहा करते थे कि किसी भी आंदोलन उतार और चढ़ाव आते ही रहते हैं। करीब 20 साल बाद यानी 1942 में गांधी जी ने मुंबई में नारा दिया करो या मरो। करो या मरो के नारे के बाद भारत ने अंग्रेजों के खिलाफ जो ज्वार देखा उसका नतीजा पांच साल बाद देश की आजादी के रूप में नजर आया। लेकिन गांधी के आलोचक हतप्रभ थे कि एक शख्स जो अहिंसा के जरिए आजादी की बात करता था वो एक तरह ऐसे नारे को उभार दिया है जिसमें हिंसा को निमंत्रण मिलता है। लेकिन गांधी जी ने कहा था कि कभी कभी ऐसे हालात बन जाते हैं जिसमें आप को कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। आज वो समझते हैं कि भारत की जनता जागरूक हो चुकी है और वो उनके नारे पर अहिंसा के दायरे में रहकर अमल करेगी।