- परिसीमन के बाद जम्मू में 7 सीटें बढ़ा दी गई हैं। अब 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी।
- गुलाम नबी आजाद आगामी विधान सभा चुनावों में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं।
- आजाद के इस्तीफे का असर केवल राज्य में ही नहीं आने वाले दिनो में दिल्ली में भी दिखाई पड़ सकता है।
Ghulam Nabi Azad and Jammu and Kashmir Plan:गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में बड़ा झटका साबित हो सकता है। उसे यह झटका केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर पर लगता दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां उनके इस्तीफे के बाद से आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चाह्वाण, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं ने उनके घर पर बैठक की है। वहीं मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेताओं ने कांग्रेस के चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठा दिए हैं। साफ है कि ये घटनाएं कांग्रेस में आने वाले तूफान का संकेत है। लेकिन उससे भी बड़ा भूचाल जम्मू और कश्मीर में आता दिखाई दे रही है। जहां पर थोक के भाव कांग्रेस के नेता आजाद के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा दे रहे हैं। और इस लिस्ट में पूर्व उप मुख्यमंत्री से लेकर कई वरिष्ठ नेता शामिल है। अब तक जम्मू-कश्मीर के करीब 64 कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है।
जानें गुलाम नबी आजाद का कश्मीर प्लान
26 अगस्त को कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद, गुलाम नबी आजाद कई मौकों पर स्पष्ट कर चुके हैं कि वह नई पार्टी बनाएंगे। और जिस तरह जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस के नेता इस्तीफा दे रहे है। उससे साफ है कि आजाद ने जम्मू और कश्मीर में आगामी चुनावों को देखते हुए अपनी तैयारी शुरू कर दी है। उनके साथ पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद, पूर्व मंत्री माजिद वानी, घारू चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हो चुके हैं। आजाद का यह कदम कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका इसलिए साबित हो सकता है क्योंकि पार्टी अभी तक राज्य में गुलाम नबी आजाद पर ही निर्भर थी। लेकिन आजाद उनसे अलग हो चुके हैं, और अब वह 4 सितंबर को जम्मू-कश्मीर में रैली करने जा रहे हैं। रैली का दिन भी आजाद ने वह दिन चुना है, जिस दिन कांग्रेस महंगाई पर मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने जा रही है। साफ है कि आजाद राज्य में कांग्रेस को कोई मौका नहीं देना चाहते हैं।
2005 में आजाद के नेतृत्व में ही बनी थी कांग्रेस सरकार
कांग्रेस ने जम्मू और कश्मीर में आखिरी बार आजाद के नेतृत्व में साल 2005 में अच्छा प्रदर्शन किया था। और विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का हासिल की थी। और आजाद 2005 से 2008 के बीच बतौर मुख्यमंत्री के रूप में काम किया था। और उसके बाद से राज्य में पार्टी का प्रदर्शन फीका ही रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चौथी नंबर पर थी। चुनावों में पीडीपी को 28 सीटें, भाजपा को 25 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं थी। अब जब आजाद के साथ थोक के भाव में कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, ऐसे में पार्टी के लिए इस झटके से उबरना आसान नहीं होगा।
किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं आजाद
राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है। इनमें में 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में थी और कश्मीर में 46 सीटें थी। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि वह अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। ऐसे में आगामी चुनाव बदली हुई परिस्थितियों में होंगे।
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गुलाम नबी आजाद की खासियत यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जिनकी घाटी से लेकर दिल्ली तक स्वीकार्यता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें पसंद करते हैं। तो नेशनल कांफ्रेस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी कांग्रेस छोड़ने के बाद उनका स्वागत करने को तैयार दिख रहे हैं। इसके अलावा अलगाव विरोधी मुस्लिमों की भी वह पसंद रहे हैं और हिंदू समुदाय भी उन्हें वोट देता है। ऐसे में आजाद चुनाव बाद किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। खास तौर पर उस समय जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिले।
कांग्रेस छोड़ने और पार्टी बनाने की टाइमिंग अहम
गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस छोड़कर पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जब जम्मू-कश्मीर में न केवल विधानसभा चुनावों की आहट है। बल्कि चुनावों में करीब 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है। ऐसी परिस्थिति में अगर गुलाम नबी आजाद कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ते हैं तो उसका सबसे ज्यादा खामियाजा कांग्रेस को ही उठाना पड़ सकता है।