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राम मंदिर के निर्माण में अहम रही है गोरक्षपीठ की भूमिका

Updated Aug 04, 2020 | 08:00 IST

राम मंदिर आंदोलन और गोरक्षपीठ का संबंध अद्भुत है। श्रीराम जन्मभूमि मामले में जब भी कोई महत्वपूर्ण घटना घटी, उसका नाता नाथ गोरक्षपीठ से जरूर रहा।

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Yogi Adityanath at Gorakhnath Peeth

आखिरकार वह शुभ घड़ी आ गई जिसका वर्षों से इंतजार था। अयोध्‍या की पावन भूमि पर प्रभु श्री राम पधार रहे हैं और उनके भव्‍य मंदिर का शिलान्‍यास होने जा रहा है। भगवान राम के इस भव्‍य मंदिर के न‍िर्माण से अयोध्‍या नगरी धर्म, आध्‍यात्‍म, संस्‍कृति के साथ साथ विकास का भी केंद्र बनेगी। प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या अब एक ऐसी धर्मनगरी के रूप में विकसित हो रही है जहां भारतीय आध्यात्मिकता, संस्कृति, धार्मिक परम्पराओं के मूर्त और अमूर्त दोनों स्वरूप मौजूद रहेंगे। राम मंदिर आंदोलन और गोरक्षपीठ का सम्बंध अद्भुत है। ब्रिटिश काल में हिंदू और हिंदुत्व की मुखर पैरोकारी के साथ राममंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ महाराज जैसे साहसी और दूरदर्शी व्यक्ति के बूते की ही बात थी। 

गजब संयोग है कि उसी पीठ के महंत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अयोध्या, भगवान राम से जुड़ी पूरी विरासत को संजोने व प्रस्तुत करने वाली शास्त्रीय, लोक-जनजातीय और आधुनिक प्रदर्श व दृश्य कलाओं, साहित्य, बौद्धिक परंपराओं को समेटने वाला केंद्र बन रही है। अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के बाद ये प्रमाणित हो गया कि संत समाज, करोड़ों रामभक्तों व विभिन्न संगठनों के संघर्ष के फलस्वरूप ही श्री राम जन्मभूमि विवाद निर्णायक मोड़ पर पहुंच सका। श्रीराम जन्मभूमि मामले में जब भी कोई महत्वपूर्ण घटना घटी, उसका नाता नाथ गोरक्षपीठ से जरूर रहा। 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ था, उस समय तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे।

महंत अवेद्यनाथ ने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। उनके नेतृत्व में सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्म यात्रा निकाली गई जिसमें 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। श्री राम मंदिर मुक्ति के लिए 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया था तो ताला खोलने के लिए वहां पर भी गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत अवेद्यनाथ जी मौजूद थे।

गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में 22 सितंबर 1989 को दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित किया गया था। एक दलित से शिलान्यास कराकर महंत अवेद्यनाथ ने आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ा। 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया। कारसेवा का नेतृत्व करने वालों में महंत अवेद्यनाथ जी भी विशेषतः शामिल थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, ढाई साल में 18 बार अयोध्या गए। इसके साथ ही योगी आदित्‍यनाथ 27 साल में भाजपा के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने रामलला विराजमान के दर्शन किए हैं। गोरक्षनाथ मंदिर और नाथ पंथ ने शैव धर्मावलंबी और शैव पीठ होते हुए भी भारत की राष्‍ट्रीयता और हिंदुत्व संबंधी मुद्दों को हमेशा उठाया है। श्रीराम जन्‍म भूमि आंदोलन के साथ लंबे समय तक किसी पीठ या धर्म परंपरा ने नेतृत्व किया है तो वो गोरक्षपीठ रही है।



1984 में श्रीराम जन्‍मभूमि आंदोलन के लिए ऐसे संत की आवश्यकता थी, जो संत सर्वमान्य और जो संत सभी प्रकार के सनातन परंपरा के जितने भी मठ हैं सभी के लिए समान रूप से सर्व स्वीकार हो। ऐसे में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ का नाम खोजा जाता है। गोरक्षपीठ का राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम योगदान रहा है। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ न्यास के अध्यक्ष रहे और उन्होंने इस आंदोलन के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

राम अपने भव्य प्रासाद में करीब 500 वर्ष बाद फिर विराजेंगे। पूरी दुनिया के सनातनधर्मियों की कई पीढ़ियों के संघर्ष के सुफल साकार होने की घड़ी आ गई है। आज अयोध्या और सरयू युगों का फर्क भूलकर भाव विह्वल हैं। 

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