- पाटीदार आंदोलन का असर ऐसा हुआ कि भाजपा को 1990 के बाद पहली बार राज्य में 100 से कम सीटें मिलीं।
- कांग्रेस में अनदेखी से परेशान थे हार्दिक पटेल
- गुजरात कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मुकदमें के डर से हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल हुए हैं।
Hardik Patel Joins BJP:सात साल पहले जिस राजनीतिक पार्टी के खिलाफ आंदोलन कर हार्दिक पटेल ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाई थी, आज उसी भाजपा में वह शामिल हो गए। और शामिल होने से पहले वह पूरी तरह से भाजपा के रंग में रंगे हुए भी नजर आ रहे हैं। बृहस्पतिवार (2 जून)को उन्होंने पार्टी कार्यालय पहुंचने से पहले न केवलमां दुर्गा की पूजा की , बल्कि उसके बाद गौ पूजा भी की। इसके पहले जब उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था, तो उस समय में भी उनके इस्तीफे की भाषा, भाजपा कार्यकर्ता के रंग में ही नजर आई थी। जिसमें वह राष्ट्रवाद, धारा-370 को हटाने जैसे कदमों का समर्थन करते दिख रहे थे। जाहिर है भाजपा में शामिल होने की पटकथा 18 मई को कांग्रेस से इस्तीफे के समय ही लिख दी गई थी। हार्दिक पटेल का भाजपा में शामिल होना उन्हें कितना फायदा पहुंचाएगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन 2022 के चुनावों के पहले भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल कर गुजरात में यह तो संदेश दे दिया है कि वह धुर विरोधी को अपने साथ जोड़ सकती है। साथ ही उसने राज्य में अपने सबसे बड़े विरोधी कांग्रेस को भी कमजोर कर दिया है।
पाटीदार आंदोलन और आनंदी पटेल के इस्तीफे की बने थे वजह
असल में हार्दिक पटेल की अभी तक की राजनीति को देखा जाय तो वह भाजपा विरोध पर टिकी हुई थी। उन्हें पहचान 2015 के पाटीदार आंदोलन से मिली। वह पाटीदार समुयदाय के सरदार पटेल ग्रुप से जुड़े हुए थे। और इसी ग्रुप ने पाटीदार आरक्षण की मांग की थी। साल 2015 के आंदोलन में सूरत रैली और अहमदाबाद की जीएमसी ग्राउंड रैली ने हार्दिक पटेल को पाटीदार आंदोलन का चेहरा बना दिया। आलम यह था कि सूरत रैली में करीब 3 लाख और अहमदाबाद रैली में 5 लाख लोगों के जुटने का दावा किया गया। इसी आंदोलन के दौरान 14 पाटीदारों की मौत भी हुई। जिन्हें हार्दिक पटेल शहीद कहा करते थे और भाजपा को गुंडो की पार्टी कहते थे। एक बार उन्होंने अमित शाह को जनरल डायर तक कह दिया था।
राज्य की राजनीति में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले पाटीदार का विरोध 2017 के चुनावों में भाजपा के लिए बड़ा खतरा बनता दिख रहा था। पाटीदार आम तौर पर भाजपा के वोटर माने जाते रहे हैं। और राज्य में उनकी करीब 14-17 फीसदी आबादी है। लेकिन हार्दिक पटेल के आंदोलन का ऐसा असर था कि भाजपा को तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को कुर्सी से हटाना पड़ा था। और फिर विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया । जिन्होंने न केवल आंदोलन के दौरान पाटीदारों पर दर्ज किए सारे मुकदमें वापस लिए बल्कि आरक्षण आयोग भी बनाया। लेकिन इसके बावजूद 2017 की चुनावी लड़ाई भाजपा के लिए बहुत मुश्किल बन गई थी। इसके बाद 2019 में वह कांग्रेस में शामिल हए गए और बाद में 2020 में उन्हें गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।
साल 1990 के बाद पहली बार भाजपा को 100 से कम सीटें
पाटीदार आंदोलन का असर ऐसा हुआ कि 2017 के विधान सभा चुनावों में भाजपा की सरकार तो बनी, लेकिन 1990 के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि उसे राज्य की 182 सीटों में से 99 सीटें मिली । इसके पहले 1995 से वह लगातार 100 से ज्यादा सीटें जीतती आ रही थी। इसके अलावा हार्दिक पटेल ने चुनावों में कांग्रेस का खुल कर समर्थन किया था। जिसकी वजह से कांग्रेस भी पहली बार 1990 के बाद 60 का आंकड़ा पर कर सकी। 2017 के चुनावों में उसे 78 सीटें मिली थी। जाहिर है भाजपा को 2017 के चुनावों का अहसास है। इसकी वजह से वह 2022 के चुनावों के पहले हार्दिक पटेल को पार्टी में शामिल कर पटेल वोट में 2017 जैसी किसी तरह की सेंध को रोकना चाहती है। इस बार भाजपा ने 150 सीटों का लक्ष्य तय किया है।
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हार्दिक पर मुकदमों की भरमार
7 साल से राजनीति में सक्रिय होने के बावजूद हार्दिक पटेल अभी तक एक भी चुनाव नहीं लड़ पाएं हैं। उसकी वजह उन पर चल रहे मुकदमे हैं। पटेल पर 20 से ज्यादा मुकदमें चल रहे हैं। जिसमें दो देशद्रोह के मुकदमे हैं। इसके अलावा विरमगाम में मेहसाणा के भाजपा विधायक के दफ्तर पर तोड़फोड़ का मामला भी उन पर चल रहा है। जिसकी वजह से साल 2019 का वह चुनाव नहीं लड़ पाए थे। हालांकि इस मामले में उन्हें बाद में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। ऐसे में अब वह चुनाव लड़ सकते हैं। हार्दिक पटेल ने जब 18 मई को कांग्रेस से इस्तीफा दिया था तो उसके बाद गुजरात इकाई के कांग्रेस अध्यक्ष जगदीश ठाकोर ने यह बयान दिया था कि पटेल ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उन्हें डर था कि उनके खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामलों में उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। यानी कांग्रेस का मानना है कि पटेल मुकदमों के डर से भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं।
अल्पेश ठाकुर जैसा न हो जाए हाल
जिस तरह हार्दिक पटेल कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं। ठीक उसी तरह हार्दिक पटेल के साथ राजनीति शुरू करने वाले अल्पेश ठाकुर भी 2019 में कांग्रेस से नाता तोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। अल्पेश उस समय कांग्रेस से विधायक थे। लेकिन इसके बावजूद वह भाजपा में शामिल हुए। हालांकि बाद में वह चुनाव जीत पाए। और आज भाजपा में साइडलाइन दिखते हैं। ऐसा खतरा हार्दिक पटेल के साथ भी है। लेकिन फिलहाल उनके पास अब ज्यादा विकल्प नहीं है। गुजरात चुनाव और चल रहे मुकदमों को देखते हुए उनके पास भाजपा से अच्छा विकल्प नहीं हो सकता है। लेकिन यह तो साफ है कि अब भाजपा से ज्यादा हार्दिक को भाजपा की जरूरत है।