- मैरिटल रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
- केंद्र सरकार ने इस विषय पर नहीं रखा है अपना नजरिया
- मैरिटल रेप के विषय में लगाई गई थी याचिका
वैवाहिक बलात्कार, क्या ऐसा भी होता है। क्या पति और पत्नी के बीच जोर जबरदस्ती से बनाए गए शारीरिक रिश्ते को बलात्कार की श्रेणी में माना जाना चाहिए। यहीं दिल्ली हाईकोर्ट के सामने याचिका का मूल बिंदू है। इस विषय पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा है। यहां बता दें कि केंद्र सरकार ने इस विषय पर अपने रुख को साफ नहीं किया है।
केंद्र सरकार के रुख पर अदालत की राय
इस मामले में केंद्र सरकार का कहना है कि उसकी तरफ से इस विषय में राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और महिला आयोग को खत लिखा गया है। सभी पक्षों की राय मिलने तक कार्यवाही को स्थगित रखा जाए। केंद्र की इस दलील पर जस्टिस राजीव शकधर, जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने साफ किया कि सुनवाई को अब स्थगित करना मुमकिन नहीं है। पीठ ने कहा कि केंद्र ने संबंधित पक्षों से नजरिया जानने की अंतिम समय सीमा मुकर्रर नहीं की है। दिल्ली हाईकोर्ट भारत में बलात्कार कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इस विषय पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए सात फरवरी को 14 दिन का समय दिया गया था। केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया था।
हिंदू मैरिज एक्ट, रेप और वैवाहिक बलात्कार
जैसा की हम सब जानते हैं कि अगर कोई शख्स किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ या बिना मर्जी के संबंध बनाता है तो उसे आईपीसी की धारा 375 के तहत रेप माना जाता है। लेकिन वैवाहिक रेप का जिक्र नहीं है। आईपीसी की धारा 376 में पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है लेकिन जब पत्नी 12 साल से कम उम्र की हो। हिंदू विवाह अधिनियम में पति और पत्नी के लिए एक-दूसरे के प्रति कई जिम्मेदारियां हैं जिसमें संबंध बनाने का अधिकार शामिल है।
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