- सीमा पर दुश्मन के हमलों से जवानों को बचाने के लिए एक हाईटेक जैकेट तैयार किया गया है
- इसकी मदद से कई किलोमीटर दूर से भी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा
- यह खास जैकेट जवानों को 24 घंटे सीमाई क्षेत्रों में बने कंट्रोल रूम से जोड़े रखेगी
मेरठ : सरहदों की हिफाजत के लिए बॉर्डर पर तैनात सैन्य व सुरक्षा बलों को दुश्मन की गोलियों से बचाना हमेशा से रक्षा क्षेत्र की प्राथमिकताओं में शुमार रहा है। अब एक हाईटेक जैकेट से इसमें मदद मिलने की उम्मीद है, जो जवानों को न सिर्फ दुश्मन की गोलियों से बचाएगा, बल्कि दुश्मन पर गोलियां भी बरसा सकता है। इसकी मदद से जवान कई किलोमीटर दूर से ही दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे सकेंगे।
दूर से ही दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब
रक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझे जा रहे इस हाईटेक जैकेट को उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित MIET इंजीनियरिंग कॉलेज के अटल कम्युनिटी इनोवेशन सेंटर में तैयार किया गया है, जो हमारे सैन्य व सुरक्षा बलों के लिए कई तरह से मददगार होगा। यह न केवल जवानों को दुश्मनों की गोलियों से बचाएगा, बल्कि शत्रु पर गोलियां भी बरसाएगा और जवान के घायल होने की स्थिति में उनके लोकेशन के साथ कंट्रोल रूम को जानकारी देगा।
इसे तैयार करने में वाराणसी के युवा वैज्ञानिक श्याम चौरसिया का अहम योगदान है। जैकेट की अन्य खूबियों के बारे में उन्होंने कहा, 'यह जैकेट वायरलैस टेक्नोलॉजी से लैस है। इस हाईटेक बुलेटप्रुफ जैकेट गन में एक वायरलेस ट्रिगर भी है, जिसकी मदद से सैन्य व सुरक्षा बलों के जवान सीमा पर 10 से अधिक बंदूकें रखकर कई किलोमीटर दूर से ही दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दें सकेंगे।'
इंटरनेट से चलाया जा सकेगा गन
उन्होंने बताया कि अत्याआधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस जैकेट जवानों को 24 घंटे सीमा पर बने सैन्य व सुरक्षा बलों के कंट्रोल रूम से जोड़े रखेगी। इसमें 11 MM के 2 बैरल हैं, जिन्हें जैकेट के आगे या पीछे लगाया जा सकता हैं तो इसमें लाइव कैमरे भी हैं, जिससे दुश्मनों द्वारा पीछे से हमला करने की स्थिति में उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा। इसमें लाइव गन भी लगे हैं, जिसे इंटरनेट की मदद से भी चलाया जा सकता है।
इस हाईटेक जैकेट की एक अन्य खासियत यह भी है कि अगर शत्रु हमारे जवानों पर चाकुओं से हमला करता है तो उस स्थिति में भी यह जैकेट ऑटोमेटिक तरीके से इसे शूट कर देगा। इसकी मारक क्षमता 200 मीटर तक है। खास बात यह भी है कि इसमें लगे सभी उपकरण भारतीय हैं और इसे कॉलेज में पड़ी 'वेस्ट मटीरियल्स' (waste materials) की मदद से तैयार किया गया है।