लाइव टीवी

Hijab Issue: कर्नाटक HC के फैसले पर सियासी प्रतिक्रिया की बाढ़, संविधान की दुहाई देने लगे दल

Updated Mar 15, 2022 | 12:23 IST

शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि उसने पूरे परिप्रेक्ष्य में फैसला किया है, कोई भी छात्र स्कूली ड्रेस को पहनने से मना नहीं कर सकता है। इसके साथ ही हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं बताया।

Loading ...
Hijab Issue: कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को महबूबा मुफ्ती ने बताया निराशाजनक
मुख्य बातें
  • इस्लाम में हिजाब की अनिवार्य व्यवस्था नहीं- कर्नाटक हाईकोर्ट
  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिका को किया खारिज
  • हाईकोर्ट के फैसले पर राजनीतिक बयानबाजी तेज

शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहने जाने के मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य नहीं है। इस फैसले के बाद अब राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया भी सामने आ चुकी है। बीजेपी ने इसे स्वागतयोग्य फैसला बताया तो पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इसे निराशाजनक करार दिया। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है तो केंद्रीय अस्पसंख्यक एवं कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला विधिसम्मत है, जिसको फैसले पर ऐतराज है वो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। लेकिन संविधान खतरे में है का राग अलापना बंद कर दें। 

फैसला निराशाजनक- मुफ्ती

हिजाब प्रतिबंध को बरकरार रखने का कर्नाटक एचसी का फैसला बेहद निराशाजनक है। एक तरफ हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं फिर भी हम उन्हें एक साधारण विकल्प के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। यह सिर्फ धर्म के बारे में नहीं है बल्कि चुनने की स्वतंत्रता है।


कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला घोर निराशाजनक

कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले से बहुत निराश। चाहे आप हिजाब के बारे में क्या सोच सकते हैं, यह कपड़ों की एक वस्तु के बारे में नहीं है, यह एक महिला के अधिकार के बारे में है कि वह कैसे कपड़े पहनना चाहती है। अदालत ने इस मूल अधिकार को बरकरार नहीं रखा, यह एक उपहास है।

असदुद्दीन ओवैसी ने क्या कहा

1. मैं #hijab पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले से असहमत हूं। फैसले से असहमत होना मेरा अधिकार है और मुझे उम्मीद है कि याचिकाकर्ता SC के समक्ष अपील करेंगे।

2. मुझे यह भी उम्मीद है कि न केवल बल्कि अन्य धार्मिक समूहों के संगठन भी इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। क्योंकि इसने धर्म, संस्कृति, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया है

3. संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि व्यक्ति के पास विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास आस्था और पूजा की स्वतंत्रता है।अगर यह मेरा विश्वास और विश्वास है कि मेरे सिर को ढंकना जरूरी है तो मुझे इसे ठीक से व्यक्त करने का अधिकार है। एक धर्मनिष्ठ मुसलमान के लिए हिजाब भी एक इबादत है।

4. यह आवश्यक धार्मिक अभ्यास परीक्षण की समीक्षा करने का समय है। एक भक्त के लिए सब कुछ आवश्यक है और एक नास्तिक के लिए कुछ भी आवश्यक नहीं है। एक भक्त हिंदू ब्राह्मण के लिए जनेऊ आवश्यक है लेकिन गैर-ब्राह्मण के लिए यह नहीं हो सकता है। यह बेतुका है कि न्यायाधीश अनिवार्यता तय कर सकते हैं

5. एक ही धर्म के अन्य लोगों को भी अनिवार्यता तय करने का अधिकार नहीं है। यह व्यक्ति और ईश्वर के बीच है। राज्य को धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिए जब इस तरह के पूजा कार्य दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। हेडस्कार्फ़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है।

6. हिजाब पर प्रतिबंध निश्चित रूप से धर्मनिष्ठ मुस्लिम महिलाओं और उनके परिवारों को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि यह उन्हें शिक्षा प्राप्त करने से रोकता है।

7. इस्तेमाल किया जा रहा बहाना यह है कि वर्दी एकरूपता सुनिश्चित करेगी। कैसे? क्या बच्चों को पता नहीं चलेगा कि अमीर/गरीब परिवार से कौन है? क्या जाति के नाम पृष्ठभूमि को नहीं दर्शाते हैं?

8. शिक्षकों को भेदभाव से बचाने के लिए वर्दी क्या करती है? विश्व स्तर पर, अनुभव यह रहा है कि विविधता को दर्शाने के लिए स्कूल, पुलिस और सेना की वर्दी में उचित आवास बनाए जाते हैं।

9. जब आयरलैंड की सरकार ने हिजाब और सिख पगड़ी की अनुमति देने के लिए पुलिस की वर्दी के नियमों में बदलाव किया, तो मोदी सरकार ने इसका स्वागत किया। तो देश और विदेश में दोहरा मापदंड क्यों? वर्दी के रंग के हिजाब और पगड़ी पहनने की अनुमति दी जा सकती है

10. इन सबका परिणाम क्या है? सबसे पहले, सरकार ने एक ऐसी समस्या खड़ी की जहां कोई अस्तित्व ही नहीं था। बच्चे हिजाब, चूड़ियां आदि पहनकर स्कूल जा रहे थे। दूसरा, हिंसा को भड़काया गया और भगवा पगड़ी के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया।

हिजाब मामले में सुप्रीम फैसला
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कक्षा में हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध करने वाली उडुपी में ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग की याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दी।तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि स्कूल की वर्दी का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकती हैं।

Karnataka HC verdict on Hijab row: हिजाब पहनना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं-कर्नाटक HC, फैसले को SC में देंगे चुनौती

मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जे एम खाजी की पीठ ने आदेश का एक अंश पढ़ते हुए कहा, ‘‘हमारी राय है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।’’पीठ ने यह भी कहा कि सरकार के पास पांच फरवरी 2022 के सरकारी आदेश को जारी करने का अधिकार है और इसे अवैध ठहराने का कोई मामला नहीं बनता है। इस आदेश में राज्य सरकार ने उन वस्त्रों को पहनने पर रोक लगा दी थी जिससे स्कूल और कॉलेज में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होती है।

अदालत ने कॉलेज, उसके प्रधानाचार्य और एक शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का अनुरोध करने वाली याचिका भी खारिज कर दी गयी।उसने कहा, ‘‘उपरोक्त परिस्थितियों में ये सभी रिट याचिकाएं खारिज की जाती हैं। रिट याचिका खारिज करने के मद्देनजर सभी लंबित याचिकाएं महत्वहीन हो जाती हैं और इसके अनुसार इनका निस्तारण किया जाता है।’’गौरतलब है कि एक जनवरी को उडुपी में एक कॉलेज की छह छात्राएं कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुई थीं और उन्होंने हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश करने से रोकने पर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ रोष व्यक्त किया था।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।