- राष्ट्रीय लोक दल और महान दल को साथ लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा भाजपा विरोधी वोटों को एकजुट करना चाहती है।
- पूूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर को साथ लेकर अखिलेश ने बड़ा दांव खेला है।
- गठबंंधन के बाद अखिलेश के लिए सीट बंटवारे और उम्मीदवार खड़ी करने की बड़ी चुनौती सामने आएगी।
नई दिल्ली: यूपी विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। इसके लिए उन्होंने भाजपा को घेरने के लिए पूरब से लेकर पश्चिम तक किलेबंदी कर दी है। अखिलेश इसके लिए उन सभी छोटे दलों को अपने साथ जोड़ रहे हैं, जो भाजपा विरोधी वोट को एकजुट कर सकते हैं। असल में अखिलेश यादव 2017 की उस गलती को दोहराने से बच रहे है, जिसकी वजह से उनकी दोबारा सत्ता में वापसी नहीं हो पाई थी।
छोटे दलों को साथ लेने की रणनीति
अखिलेश यादव ने 2022 के चुनावों के पहले से ही ऐलान कर रखा था कि वह इस बार बड़े दलों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। उसी रणनीति के तहत उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल, केशव प्रसाद मौर्य के महान दल के साथ गठबंधन किया है। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), डॉ संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), और कृष्णा पटेल गुट के अपना दल के साथ गठबंधन का ऐलान किया है।
इसके अलावा बुधवार (24 नवंबर) को लखनऊ में आम आदमी पार्टी के संजय सिंह के साथ हुई अखिलेश यादव की मीटिंग भी कई अहम संकेत दे रही है। दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत हुई। इसके पहले संजय सिंह, मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन समारोह में भी शामिल हुए थे। वहां भी अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात हुई थी। पिछले दो महीनों में दोनों नेता तीसरी बार मिले हैं। लगातार हो रही मुलाकातों से इस बात के कयास लग रहे हैं कि समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच भी गठबंधन हो जाएगा।
साथ ही उनके चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन के संकेत है। अखिलेश यादव ने बार-बार कहा है कि समय आने पर चाचा के साथ फैसला हो जाएगा। चाचा शिवपाल यादव गठबंधन के अलावा पार्टी विलय को लेकर भी तैयार हैं। लेकिन इसके लिए वह 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। जिसकी वजह से मामला फंस रहा है। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने पॉलिटिकल जस्टिस पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है।दौरान लेबर एस पार्टी ,भारतीय किसान सेना का सपा में विलय करा लिया है।
इन दलों के साथ लेकर ऐसे साधेंगे वोट
सबसे पहले बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की, जो न केवल अखिलेश यादव के लिए बेहद अहम हैं, बल्कि राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख जयंत चौधरी के लिए अहम है। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुस्लिम -जाट एकता में आए बिखराव की वजह से राष्ट्रीय लोकदल का इलाके से सफाया हो गया था। और उसे 2017 की विधानसभा चुनावों में केवल 1 सीटें मिली थी। लेकिन इस बार किसान आंदोलन की वजह से एक बार फिर से मुस्लिम-जाट होते दिख रहे हैं। इस इलाके में 40 फीसदी मुस्लिम और 20 फीसदी जाट आबादी है। ऐसे में अखिलेश को उम्मीद है कि आरएलडी को साथ लाकर वह 100 से ज्यादा सीटों वाले क्षेत्र में बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं। इसीलिए वह, आरएलडी को 36 सीटें देने पर राजी हो गए हैं। इसी तरह मुराबाद, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत में असर है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर के साथ गठबंधन कर अखिलेश ने राजभर वोटों को साधने की कोशिश की है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति है। पू्र्वांचल में 17-18 फीसदी राजभर मतदाता हैं। इसी राजभर समुदाय को साथ लेकर 2017 के चुनाव में भाजपा ने पूर्वांचल में बड़ी जीत हासिल की थी। उसे 150 से ज्यादा सीटों में 100 से ज्यादा सीटें मिलीं थी। इसी तरह डॉ संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) बलिया, मऊ, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, चंदौली समेत आस-पास के जिलों से आने वाली नोनिया जाति पर प्रभाव रखती है। जिसके जरिए अखिलेश अपने वोट बैंक के साथ नोनिया जाति को भी जोड़ना चाहते हैं। इसी तरह अपना दल का भी कुर्मी जातियों में प्रभाव है।
भाजपा के लिए राह आसान नहीं
2017 में भाजपा की जीत में छोटे दल का अहम योगदान रहा था। खास तौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश में उसे ओम प्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल के महान दल के साथ गठबंधन करने से 100 से ज्यादा सीटें मिल गईं थी। इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़े थे। साथ ही किसान आंदोलन के बाद बदला समीकरण भी नहीं था। ऐसे में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 120 में से करीब 90 सीटें मिल गईं थी। लेकिन इस बार समीकरण बदल गए हैं। पुरानी साथियों में राजभर, भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं, जबकि अनुप्रिया पटेल अब भी उनके साथ हैं। ऐसे में साफ है कि पार्टी के लिए राह आसान नहीं होने वाली है।