कोलकाता : पश्चिम बंगाल के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा हो जाने के बाद सभी राजनीतिक दलों ने अपने गठबंधन को करीब-करीब आकार दे चुके हैं। बंगाल चुनाव में राजद ने टीएमसी को समर्थन देकर चौंकाया है। दरअसल, बिहार चुनाव में वह कांग्रेस उसके साथ थी। ऐसे में राजद को लेफ्ट-वाम गंठबंधन का हिस्सा बनना था लेकिन तेजस्वी यादव ने ममता को अपना समर्थन दिया है। कुछ ऐसा ही हाल समाजवादी पार्टी (सपा) के सुप्रीमो अखिलेश यादव का है। अखिलेश ने भी जारी विधानसभा चुनाव में टीएमसी का समर्थन करने का वादा किया है।
बिहार, यूपी में भाजपा से है इनका सीधा मुकाबला
बंगाल चुनाव में सपा और राजद चुनावी परिदृश्य पर क्या असर डालेंगे, इस बारे में अभी कुछ स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। सपा उत्तर प्रदेश और राजद बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी है। इन दोनों राज्यों में सपा और राजद का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से है। ऐसे में राजद एवं सपा का टीएमसी के साथ जाना चुनावी समीकरण को प्रभावित करने से ज्यादा एक राजनीतिक रुख है। दोनों दलों की मंशा भाजपा के वोट बैंक में कमी लाकर टीएमसी को फायदा पहुंचाने की है। राज्य में सपा और राजद का जनाधार ऐसा नहीं है कि वे चुनाव नतीजों को प्रभावित कर पाएं। फिर भी राजद एवं सपा का समर्थन ममता बनर्जी के लिए मनोबल बढ़ाने का काम करेगा क्योंकि उनका सामना लेफ्ट, कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों से है।
2016 में बंगाल में लड़ा था चुनाव
2016 में सपा और राजद दोनों पार्टियों ने विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन ये कोई सफलता हासिल नहीं कर पाए। राजद ने एक सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा था और उसे 0.3 प्रतिशत वोट मिले जबकि सपा ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और 0.8 फीसदी वोट हासिल हुए। ऐसा नहीं है कि राज्य में हिंदी बोलने वालों या यूपी, बिहार के लोगों की आबादी कम है। इन दोनों राज्यों से अच्छी खासी संख्या में लोग पश्चिम बंगाल में रहते हैं और इनमें चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता भी है।
बंगाल में करीब 45 लाख हैं हिंदी वोटर
यह आबादी शुरू से ही कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी के साथ जुड़कर रही है। बंगाल में अब भाजपा का दमखम बढ़ने से इस हिंदी पट्टी के लोगों का झुकाव भगवा पार्टी की तरफ ज्यादा हुआ है। ऐसे में राजद एवं सपा के लिए राजनीतिक गुंजाइश कम है। दरअसल, इन दोनों पार्टियों ने बंगाल में कभी अपने राजनीतिक विस्तार के इरादे से कभी काम नहीं किया है। इसलिए राज्य में इनका जनाधार भी न के बराबर है। उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले हिंदी भाषी वोटरों की संख्या करीब 45 लाख है। भाजपा की नजर इस वोट बैंक पर है। टीएमसी को हराने के लिए भाजपा की रणनीति हिंदी भाषी वोटरों को अपने पक्ष में करने की रही है। इसके लिए वह लंबे समय से काम करती रही है।
अखिलेश, तेजस्वी की लोकप्रियता भुनाएगी टीएमसी
सपा और राजद का समर्थन हासिल होने के बाद टीएमसी हूगली के जूट मिल क्षेत्रों, बैरकपुर के कारोबारी इलाकों, दुर्गापुर, आसनसोल और बिहार एवं झारखंड से लगे इलाकों में तेजस्वी-अखिलेश की लोकप्रियता भुनाने का प्रयास करेगी। इन इलाकों में हिंदी भाषी वोटरों की संख्या ज्यादा है। अखिलेश और तेजस्वी आने वाले समय में टीएमसी के लिए चुनाव-प्रचार भी कर सकते हैं। इनकी रैलियों में भीड़ भी जुट सकती है जो टीएमसी का मनोबल बढ़ाने की काम करेगी। बता दें कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं और इसके लिए आठ चरणों में मतदान होंगे जबकि नतीजे 2 मई को आएंगे।