- रोहिंग्या महिला ने यूएस जाने की मांगी थी इजाजत
- म्यांमार से बांग्लादेश और उसके बाद भारत में आशियाना
- महिला ने अपने पति की अमेरिकी नागरिकता का दिया हवाला
हाल ही में रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली की सरकार आमने सामने थी। दोनों सरकारों का एक दूसरे पर आरोप था कि वो रोहिंग्याओं के बसाए जाने के समर्थक हैं। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से हलफनामा पेश किया गया है। हलफनामे में जिक्र है कि रोहिंग्या को किसी तीसरे देश में जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।अब सवाल यह है कि आखिर मुद्दा क्या है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार की रहने वाली सेनोआरा बेगम जो दिल्ली में रहती हैं उन्होंने गृहमंत्रालय और एफआरआरओ के उस फैसले के खिलाफ चुनौती दी कि उसे भारत छोड़ने के लिए एग्जिज परमिट नहीं दी जा रही है। बता दें कि सेनोआरा बेगम अमेरिका जाना चाहती हैं।
सुरक्षा को खतरा
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को जानकारी दी कि इस तरह के इनपुट्स हैं कि कुछ रोहिंग्या जो कि अवैध तरीके से भारत में प्रवास कर रहे हैं उनके लिंक पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के साथ साथ दूसरे देशों में इसी तरह के संगठनों से हैं। एफआरआरओ के हलफनामे में बताया गया है कि म्यांमार से संगठित तरीके से अवैध रोहिंग्या एजेंट और दलालों के जरिए बेनापोल- हरिदासपुर, हिल्ली और सोनामोरा के इलाके में बसे।
सेनोआरा बेगम की अर्जी
सेनोआरा बेगम ने अपनी अर्जी में कहा कि वो और उसके पति म्यांमार में ज्यादती के शिकार थे। वहां से वो भागकर बांग्लादेश के शरणार्थी कैंप आए और 2004 में शादी की। उसका पति 2015 में अमेरिका चला गया उसे वहां की नागरिकता मिली। इसके साथ ही उसे पर्मानेंट रेजीडेंस वीजा भी मिला और उसके आधार पर वो अपने परिवार को यूएस ले जाना चाहता है। लेकिन जब याची और उसके बच्चे बांग्लादेश के शरणार्थी कैंप से भारत आए और एग्जिट परमिट की इजाजत मांगी तो कहा गया कि म्यांमार एंबेसी से वो एनओसी हासिल करे। लेकिन वो राज्यविहीन लोग हैं लिहाजा एनओसी नहीं मिल सकती।
नीति नहीं देती इजाजत
इस अर्जी के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि नीति स्पष्ट है, अगर कोई अवैध विदेशी है तो उसे राष्ट्रीयता की जांच और विदेश मंत्रालय से मंत्रणा के बाद उसे उसके देश भेज दिया जाना चाहिए।सरकार ने कहा कि वो अवैध प्रवासियों को किसी तीसरे देश के लिए एग्जिट परमिट नहीं दे सकती क्योंकि वो नियमों के खिलाफ होगा। यही नहीं इस संबंध में भारत सरकार किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते या परंपरा को मानने के लिए बाध्य भी नहीं है। सरकार ने तर्क दिया कि अगर इस तरह से अवैध प्रवासियों को एग्जिट परमिट की इजाजत दी गई तो वैश्विक स्तर पर यह समझा जाएगा कि भारत भी अवैध प्रवासियों को बचाने में मदद कर रहा है।