- आसमान साफ हुआ है,पहले के मुकाबले अब वह ज्यादा नीला दिखाई देता है
- परिदों को नई दुनियां मिली है, अब प्रकृति और पर्यावरण करीब दिख रहे हैं
- बियावान जंगलों में रहनेवाले पक्षी अब आसपास के पार्कों में दिखने लगे हैं
सुबह की बेला में एक आवाज सबसे कर्णप्रिय लगती है जो परिंदों की चहचहाहट के रूप में गूंजायमान होती है। सुबह की किरण से पहले परिंदों की आसमानी अटखेलियां, कूकना,चहचहाना यह सब यकीनन प्रकृति की खूबसूरत नेमतों में से एक है जो शायद हीं किसी को अच्छा नहीं लगे। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना की वजह से देश के लोग खौफ के साए में जी रहे है लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि लॉकडाउन की वजह से प्रकृति अब पहले के मुकाबले करीब हुई है। प्रकृति का ऐसा मंजर अवतरित हुआ है जिसे वर्तमान पीढ़ी ने कभी नहीं देखा होगा। लॉकडाउन के पहलुओं पर कोई गौर करें ये ना करें लेकिन बना किसी बहस-मुबाहिसे के यह बात साफ होती है कि प्रकृति के परिंदे अब आपके काफी करीब है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि लॉकडाउन की वजह से प्रकृति करीब से नजर आने लगी है। आसमान साफ हुआ है। पहले के मुकाबले अब वह ज्यादा नीला दिखाई देता है। लोगों को दमघोंटू प्रदूषण से राहत मिली है। एक तरफ जहां हवा साफ है, सड़कों पर शोरगुल ना के बराबर है, चिड़ियों की चहचहाहट फिर से सुनाई दे रही है।
देश के कई शहरों में अब तेंदुए,हाथी,हिरण और बिलाव जैसे जानवर शहरी क्षेत्रों में देखे जा रहे हैं। इंसान घरों के भीतर रहने को मजबूर हैं वहीं पक्षी और जानवर उन इलाकों में फिर से नजर आन लगे हैं जो कभी उनके ही हुआ करते थे। इसी हफ्ते की शुरुआत में चंडीगढ़ की सड़कों पर एक तेंदुआ घूमता नजर आया था।
मेरे एक मित्र अनिमेष कपूर कई सालों से परिंदों की दुनिया से जुड़े हैं। वह परिंदों की बारीकियां बेहतर समझते हैं। जीव-परजीवों और परिदों पर लंबे समय से वह रिसर्च कर रहे हैं। परिंदों की आहट,चहचहाहट उन्हें रोमांचित करती है जिसमें खोना उनका शगल है। परिंदों की दुनिया उन्हें खूब भाती है। वो प्रकृति प्रेमी व्यक्ति हैं।
कुदरती चीजों से उन्हें खासा मोहब्बत है। प्रकृति और परिंदों की दुनिया उन्हें हर पल सुकून देती है। अनिमेष के साथ मैं भी कभी-कभार परिदों को उड़ान भरते हुए देखता हूं तो अच्छा लगता है। अनिमेष ने लॉकडाउन के बाद की प्राकृतिक परिवेश को जब मुझसे बताया तो मैं हैरान रह गया। समझ आया कि लॉकडाउन के बाद प्रकृति ने बड़ी खूबसूरत करवट यूं भला कैसे ली है। पर्यावरण के लिहाज से कुछ ऐसी चीजें हो रही है जो आज तक नहीं हुई। देखने समझने वालों को रोमांचित करती है।
अनिमेष बताते हैं- लॉकडाउन ने आम लोगों की मुश्किलें भले ही बढ़ाई हो लेकिन प्रकृति के लिए यह वरदान सिद्ध हुआ है। प्रकृति के ऐसे आयाम देखने को मिल रहे हैं जो बेहद सुखद है। प्रकृति में यूं तो रंगों की कमी नहीं है लेकिन बढ़ते शहरीकरण और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने प्रकृति के पंखों को अनजाने में बुरी तरह कतरने का काम किया है। लेकिन लॉकडाउन के बीच शहरों का शोर थमा।
गाड़ियों की रफ्तार के साथ आवाजाही भी थमी। आसमान में सिर्फ चुनिंदों विमानों की आवाजाही सिमट गई। भीड़ खत्म हो गई, शोर थम गया। प्रकृति मानों अपने स्वर में कूकने लगी। यहीं हलचल परिदों और बेजुबानों को भी भा गई। प्रकृति में अनायास हुई इस हलचल से बेजुबां परिंदे करीब हुए।
ये लॉकडाउन का ही असर रहा कि पर्यावरण ने अपने रंगों का एहसास इंसानों को कराना शुरू किया। बॉम्बे के समुद्र पर डॉलफिन, मलबारी कैट फिश,कुर्ग में हिरणों का झुंड ये सब अपने आप में ये बताते हैं कि प्रकृति की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना की जाए तो परिणाम खुशनुमा होते हैं जिसकी दुनिया में सैरसपाटे का अलग ही मजा है। यूपी के नोएडा सेक्टर 18 में जब नीलगायों का झुंड निकला तो वह ना सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बना बल्कि कई टीवी चैनलों ने उसी मुद्दे को प्राइम टाइम में पिरोकर खूब टीआरपी बटोरी। नीलगाय का झुंड जब सेक्टर 18 नोएडा की सड़कों पर दिखा तो ऐसा लगा कि जैसे हमने इनका जंगल छीन लिया है और बस छीनते ही चले जा रहे हैं। थोड़ी जगह तो ये पास आने लगे हैं।
अनिमेष कहते हैं- मेरा रहना दिल्ली में होता है लेकिन परिंदों पर रिसर्च और वर्कशॉप को लेकर मुझे दिल्ली-नोएडा समेत देश के कई जगहों पर जाना होता है। मेट्रो कल्चर में लोग अपने घरों में रहना पसंद करते हैं। लेकिन 24 मार्च को जब मोर की आवाज मैंने अपनी कानों में सुनी तो यकीन नहीं हुआ क्योंकि अपने जीवन में अपने इलाके में मैंने मोर की आवाज कभी नहीं सुनी। फिर मैंने उन जगहों पर जाने का फैसला किया जहां मैं अक्सर जाया करता हूं। दिल्ली के मयूर विहार फेज-1, मयूर विहार फेज-3, नोएडा सेक्टर 75, 79 से लेकर ऐसे कई इलाके हैं जहां ये परिंदे रोज कूक रहे हैं।
पर्यावरणविद अनिमिष के मुताबिक फिर कैमरे के साथ मैं अलसुबह उन पार्कों की तरफ निकला जहां उन परिंदों को देखना था जो घने जंगलों में हीं दिखते हैं। कभी आपके घरों के करीब नहीं आते है। मुझे आज तक कॉलोनी के इन पार्क में ये पक्षी कभी नहीं दिखे। मैंने उन पक्षियों को कैमरे मे कैद किया क्योंकि इसे मैं यूं नहीं जाने दे सकता था। पीले और काले रंग के लम्बी पूंछ वाला रूफर्स ट्री पाई जिसे राजस्थान में टाइगर का कोलगेट कहा जाता हैं काफी सुरीली आवाज़ में बोलती हैं और बड़ी ही बैचैन एक डाल पर कभी नहीं बैठती। कॉपर स्मिथ बारबेत जी सही लुहार की धोकनी की आवाज़ निकालने वाला शहर में ना के बराबर दिखती है।
ये भी इन पार्कों में बेखौफ होकर अपनी मौजूदीगी दर्ज कराता नजर आया। इसकी आवाज बड़ी तेज होती है जो दूर तक सुनाई देती है। हरियल और पीले पंजों और चोंच वाला हरा कबूतर बेहद शर्मिला होता है। कामोफ्लेज पत्तो में छुप कर रहने वाला साथ साथ जंगल बब्ब्लैर जिसे हिंदी में सात भाई या पंजाबी में सत प्रहां यानी सात भाई क्योंकि यह हमेश सात के झुण्ड में ही रहते हैं। अलसाई सुबह में इनके इस तरह झुंड में विचरण करने और कूकने के स्वर में इनकी खुशियां छिपी है।
दरअसल अनिमेष के अनुभवों और रिसर्च से मुझे एक बात साफ समझ में आई कि प्रकृति के रंगों के दीदार के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाना होता है। लॉकडाउन की वजह से सड़कों पर वाहन ना के बराबर है उसका सीधा असर आसमान पर भी हुआ और वो पहले मुकाबले काफी साफ और नीला दिखाई दे रहे है। पहले चंद तारे बड़ी मुश्किल से दिखते थे लेकिन अब असंख्य तारे नीले अंबर में जगमगाते हुए दिखते हैं। वाहन नहीं तो प्रदूषण नहीं लिहाजा फिजाएं भी अब साफ है। इस गर्मी के तापमान में भी हवाओं में ठंडक है।
पर्यावरणविद अनिमेष इस बात की सख्त वकालत करते दिखे कि कोरोना काल के खात्मे के बाद भी अगर हम सजगता बरतते हैं तो प्रकृति इंसानों से ज्यादा करीब होगी। वो स्थिति सुखद होगी जिसमें मानव जीवन के साथ प्रकृति के समस्त जीवों का संरक्षण सुनिश्चित होगा। ध्यान रहें नेचर सिंगल टेक में सीन को ओके करती है और वो रीटेक का चांस नहीं देती है। प्रकृति और पर्यावरण का चोली दामन का साथ है। इसलिए यह जरुरी है कि हम सब खूबसूरत प्रकृति और पर्यावरण की खातिर अपनी हरसंभव भागीदारी सुनिश्चित करें। लॉकडाउन भले ही एक विवशता हो लेकिन चंद कोशिशों की बदौलत ऐसे रंगों का दीदार हमेशा किया जा सकता है।