- चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की कमान अपने हाथ में ले रखी है।
- 2025 तक कारवार नौसेना बेस के तैयार होने की उम्मीद है।
- चीन भारत की समुद्री सीमा पर चौतरफा घेराबंदी करने की कोशिश में है।
Karwar Naval Base: समुद्री क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की चुनौती से निपटने के लिए भारत बड़ी तैयारी में है। इसके लिए वह एशिया का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा बना रहा है। कर्नाटक के करवार क्षेत्र में बनने वाला यह नौसेनिक अड्डा बेहद खास होगा। जहां से चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखी जा सकेगी। जिस तरह पिछले कुछ समय से चीन की प्रशांत महासागर, हिंद महासागर में गतिविधियां बढ़ी हैं, उसे देखते हुए कर्नाटक में स्थित, भारत की सुरक्षा को मजबूत करने में बेहद खास होगा।
रक्षा मंत्री ने INS खंडेरी में यात्रा की
बीते 27 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कारवार नौसेना बेस पहुंचे थे। वहां पर रक्षा मंत्री ने भारतीय नौसेना के शक्तिशाली प्लेटफॉर्म में से एक आईएनएस खंडेरी पर सवार होकर सार्टी की। उन्होंने कहा कि आज भारतीय नौसेना गणना विश्व की अग्रणी नौसेनाओं में की जाती है। उन्होंने कहा कि आज विश्व की सबसे बड़ी समुद्री शक्तियां भारत के साथ काम और सहयोग करने के लिए तैयार हैं। साथ ही उन्होंने आत्मनिर्भर भारत अभियान के बारे में बताते हुए कहा कि भारतीय नौसेना द्वारा 41 में 39 जहाज/पनडुब्बी भारतीय शिपयार्ड में तैयार की जा रही हैं।
चीन पाक के सहारे ऐसे कर रहा है घेराबंदी
चीन ने भारत की समुद्री सीमा पर नजर रखने के लिए अरब सागर में मौजूद पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की कमान अपने हाथ में रख ली है। ग्वादर पोर्ट को रणनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि इसको लेकर उसे बलूचिस्तान में स्थानीय लोगों का काफी विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा चीन श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को पहले ही 99 साल की लीज पर ले चुका है। इसके अलावा उसकी मालदीव के मराओ पोर्ट पर भी नजर है। ऐसे में भारत के लिए चौतरफा चुनौती से निपटने के लिए एक मजबूत नौसेना बेस की जरूरत थी। और कारवार नौ सेना बेस उन जरूरतों को पूरी करेगा।
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ऐसा होगा कारवार नौ सेना बेस
कारवार नौ सेना बेस गोवा के दक्षिण में 80 किलोमीटर और मंगलौर से 320 किलोमीटर उत्तर की दिशा में स्थित है। इसकी लोकेशन इसे किसी तरह के चक्रवाती तूफानी से बचाने में कारगर करेगी। कारवार प्रोजेक्ट की मंजूरी 1999 में तत्तकालीन एनडीए सरकार ने दी थी। इसके पहले चरण का काम 2005 में पूरा हो गया था। जबकि दूसरे चरण का काम 2011 से शुरू हुआ है। और इसके 2025 तक पूरा होने का लक्ष्य है। इसके पूरा होने के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा नौ सेना बेस बन जाएगा। कारवार नौ सेना बेस बनने के बाद यहां कम से कम 30 युद्धपोत और पनडुब्बियां तैनात हो सकेगी।यहां 3 हजार फीट लंबा रनवे भी बनाया जाएगा। यहां पर देश का एक इकलौता विमानवाहक पोत INS विक्रमादित्य कारवार में तैनात हो चुका। साथ ही एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत भी कारवार नौ सेना बेस पर तैनात किया जाएगा।