धार्मिक आजादी को लेकर भारत के लोकतंत्र की मूल भावना क्या है? यही ना कि हर धर्म का सम्मान होगा। किसी धर्म का तुष्टीकरण नहीं होगा। किसी धर्म को दूसरे धर्म से छोटा या बड़ा करके नहीं आंका जाएगा। लेकिन कनाडा में रहने वाली लीना मणिमेकलाई जिसकी विवादित फिल्म काली को प्रदर्शित करने वाले आगा खान म्यूजियम तक ने माफी मांग ली है और म्यूजियम से फिल्म को हटा लिया है लेकिन लीना मणिमेकलाई क्या कर रही हैं, आपको इसे समझने की जरूरत है।
- काली फिल्म के विवादित पोस्टर और इस तस्वीर के बीच समानता खोजने की कोशिश पर आप क्या कहेंगे?
- किसी बहुरूपिये की आड़ लेकर हिंदू धर्म की मान्यता पर चोट करने को क्या आप सामान्य मान सकेंगे?
- ये कौन सी मानसिकता है?
- किसी धार्मिक व्यक्ति की बात तो छोड़िये...ये किस सच्चे सेकुलर की सोच हो सकती है?
लेकिन इस पर लीना मणिमेकलाई का Justification है...वो कह रहीं हैं कि BJP के पे-रोल वाली ट्रोल आर्मी को नहीं पता कि लोक कलाकार अपनी परफॉर्मेंस के बाद किस तरह मौज करते हैं। ये मेरी फिल्म से नहीं है। ये रोजाना के ग्रामीण भारत से है जिसे संघ परिवार अपनी घृणा और धार्मिक कट्टरता से नष्ट कर देना चाहता है। हिंदुत्व कभी भारत नहीं बन सकता।
इस बयान को क्यों ना माना कि ये एक राजनीतिक बयान है? क्यों ना माना जाए कि एजेंडे के लिए हिंदू आस्था को चोट पहुंचाने से भी परहेज नहीं बरता जा रहा है?
लीना मणिमेकलाई तो महज एक फिल्मकार हैं। लेकिन महुआ मोइत्रा तो एक सांसद हैं। जनता की चुनी हुई प्रतिनिधि हैं। लोकतंत्र को स्वस्थ बनाए रखने की उनकी सीधी जिम्मेदारी है। लेकिन काली को मांसाहारी और शराब स्वीकार करने वाली देवी बताने के बयान पर ना सिर्फ महुआ कायम हैं, बल्कि राजनीतिक बयानबाजी भी कर रही हैं।
महुआ मोइत्रा ने सबसे नये ट्वीट में कहा है कि -मैं ऐसे भारत में नहीं रहना चाहती हूं जहां हिंदूवाद पर बीजेपी का एकरूपी, पितृसत्तामक, ब्राह्मणवादी विचार विजयी हो और बाकी हम लोग धर्म के नोंक पर रहें। मैं मरते दम तक इसकी रक्षा करूंगी। अपने FIRs दाखिल करो - देश के हर कोर्ट में देख लूंगी।
महुआ ने एक कविता ट्वीट की। जिसका टाइटिल है - Be Careful Mahua!
यानी महुआ सावधान रहो! महुआ के इस अंदाज की क्रोनोलॉजी क्या आप समझ रहे हैं? पहले उदयपुर-अमरावती कांड के तनावपूर्ण माहौल के बीच हिंदू धर्म को आहत करने वाली टिप्पणी की जाती है। फिर उस comment पर राजनीतिक सुविधा वाले बयान दिए जाते हैं। और फिर कहा जाता है कि बोल कि लब आजाद हैं तेरे। और जो लोग सवाल उठाते हैं, उन पर तोहमत लगायी जाती है कि देश में विचारों को सेंसर करने की कोशिश हो रही है।
महुआ मोइत्रा एक पार्टी की सांसद हैं वो पार्टी पॉलिटिक्स करती रहें। उनका अधिकार है। लेकिन महुआ को अपने बयानों पर पलटकर सोचने की जरूरत इसलिए है क्योंकि उनका बयान पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन को भी अच्छा लग रहा है।
"महुआ के स्टैंड से RSS-BJP में हड़कंप है"
खुद को PFI का महासचिव कहने वाले अनीस अहमद नाम के व्यक्ति ने महुआ मोइत्रा के समर्थन में लिखा कि महुआ के स्टैंड से RSS-BJP में हड़कंप है।- इस ट्वीट पर BJP प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तंज किया है कि PFI महुआ का समर्थन कर रही है। TMC भी यही कर रही है। उन्होंने अबतक कोई एक्शन नहीं लिया है। तो क्या TMC और PFI एक पेज पर हैं। क्या कोई हैरान हो रहा है? दोनों ही हिंदू आस्था का अपमान करने में विश्वास करते हैं।
इस व्यक्ति का नाम है सलमान चिश्ती
आपने महुआ मोइत्रा और लीना मणिमेकलाई के रुख देखे। हिंदू आस्था को चोट पहुंचाने की मानसिकता आपने देखी।अब पुलिस की कैद में बैठे इस व्यक्ति के चेहरे की मुस्कुराहट देखिए। दोनों अंगूठे उठाकर ऐसा उत्साह दिखाने की हिमाकत देखिए कि जैसे ये दुनिया का सिकंदर हो।
इस व्यक्ति का नाम है सलमान चिश्ती।सलमान चिश्ती ने बीजेपी नेता नूपुर शर्मा का गला काटने पर इनाम रखा था। इसीलिए वो गिरफ्तार हुआ है। लेकिन उसे फर्क ही नहीं पड़ा है।
ऐसा क्यों है? इसका सबूत देने वाली तस्वीर कल आयी थी। बीजेपी ने आरोप लगाया कि राजस्थान पुलिस सलमान चिश्ती के बचाव की प्लानिंग करती दिख रही थी।एक ओर सलमान चिश्ती जैसे लोग हैं जो भारत के कानून को ठेंगा दिखाने की मानसिकता रखते हैं।
तो दूसरी ओर उदयपुर और अमरावती के हत्याकांड पर आक्रोश उबल रहा है। तमाम लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और हत्याकांड पर इंसाफ की मांग कर रहे हैं।
सवाल पब्लिक का-
1. क्या हिंदुस्तान को हेट मशीन बताना सोची-समझी चाल है?
2. क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर चित भी मेरी, पट भी मेरी वाला रवैया है?
3. क्या आस्था को लेकर कुतर्क की लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है?