- ITBP के जवान एक बार फिर संकटमोचन की भूमिका में सामने आए
- आईटीबीपी के जवान सबसे पहले उत्तराखंड के ग्लेशियर आपदा वाले इलाके में पहुंचे थे
- जवानों ने खुद को रस्सी से बांधकर राहत एवं बचाव ऑपरेशन शुरु किया
देश पर कोई आपदा पड़ती है या देश की रक्षा करने की बात हो इंडो तिब्तब बॉर्डर पुलिस यानि ITBP के जवान हर बार अपनी भूमिका पर खरे उतरते आए हैं।एक बार फिर उनका मददगार रूप लोगों के सामने आया है जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड (Uttrakhand) के चमोली में आई प्राकृतिक आपदा की, वहां ग्लेशियर टूटने (Glacier Burst) से बड़ी त्रासदी मच गई है इस आपदा में खासे नुकसान की आशंका है वहीं राहत और बचाव कार्य भी पुरी मुस्तैदी के साथ चलाए जा रहे हैं और इसमें काफी लोग मदद कर रहे हैं वहीं आईटीबीपी के जवान एक बार फिर संकटमोचन की भूमिका में सामने आए हैं और बढ़चढ़कर मदद कर रहे हैं।
आईटीबीपी के मुताबिक, जैसे ही इस हादसे की सूचना मिली, वे तुरंत घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए थे धौली गंगा के आसपास चारों तरफ तबाही का आलम था, वहां कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था, इसलिए पास के इलाकों में ही लेबर्स के रहने का इंतजाम किया गया था।
धौली गंगा में बाढ़ ने भारी तबाही मचा रखी थी। इसके किनारे पर जो निर्माणकार्य हुआ था, वह बह चुका था वहीं आईटीबीपी के जवान सबसे पहले इस इलाके में पहुंचे थे।
वहां पर तबाही का जो नजारा था वो खासा डराने वाला था वहीं ऐसे में ITBP के जवान आगे आए और पहाड़ी में लोहे की कीलें ठोक कर नीचे उतरना शुरू कर दिया उस वक्त नीचे पानी का बहाव बहुत तेज और खासा डरा रहा था लेकिन जवानों ने खुद को रस्सी से बांधकर राहत एवं बचाव ऑपरेशन शुरु किया।
जवानों के सामने बड़ी परेशानी यह थी कि उन्हें बहुत अधिक ऊंचाई से नीचे जाकर लोगों को बचाना था सो उन्होंने पहाड़ी पर रास्ता बनाकर जवानों ने नीचे उतरने का इंतजाम किया और कड़ी मशक्कत के बाद कई लोगों को सुरक्षित तरीके से सुरंग के बाहर निकाल लाए।
जवानों ने तपोवन में ऑपरेशन शुरू कर दिया। इस इलाके में जवानों को करीब पचास मीटर नीचे उतरना पड़ा तब जाकर वो उस तबाही के स्थान पर पहुंचकर उन्हें बाहर निकाला गया।
कुछ लोगों को आईटीबीपी जवान अपने कंधे पर भी लाए अभी भी उत्तराखंड के इस आपदा स्थल पर ये जवान बेहद जोश के साथ मदद करने में जुटे हुए हैं।
दुर्गम स्थानों पर पुल बनाने में है महारत हासिल
सीमा के लोगों को सुरक्षा की भावना प्रदान करने और वहां के लोगों का दिल और दिमाग जीतने के लिए आईटीबीपी के जवान दूरस्थ सीमा क्षेत्रों में सड़कों और पुलों के निर्माण/मरम्मत के साथ ही प्राकृतिक आपदा के समय उनकी मदद, चिकित्सा और पशु चिकित्सा के लिए शिविरों का आयोजन करते हैं।
'लेह में हुए भू-स्खलन और बादल फटने के दौरान भी बने थे संकटमोचन'
लेह में हुए भू-स्खलन और बादल फटने के दौरान आईटीबीपी के जवान प्रभावित इलाकों में राहत और पुनर्वास कार्य में सबसे पहले आगे आए थे। इन्होंने राहत शिविरों की स्थापना की और संकंट में घिरे लोगों को राहत देने के लिए चिकित्सा शिविर भी लगाया। आईटीबीपी के इन कार्यों के लिए बल को स्थानीय लोगों की सराहना प्राप्त हुई।
1962 को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल का गठन किया गया था
भारत-चीन संघर्ष के उपरांत देश की उत्तरी सीमाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 24 अक्टूबर 1962 को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल का गठन किया गया।आईटीबीपी की शुरुआत केवल चार पलटनों के एक छोटे से दल के रूप में हुई जो अब 45 सेवा पलटनों और चार विशेषीकृत पलटनों का वृहद रूप ले चुका है।