- जादव पायेंग को भारत का फारेस्ट मैन कहा जाता है
- माजुली द्वीप के पास 550 एकड़ बंजर जमीन को जंगल में तब्दील कर दिया
- भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया
पांच जून को एक बार फिर पूरी दुनिया पर्यावरण दिवस मना रही है। इस खास दिन का चुनाव आज से करीब 48 साल पहले किया गया जब दुनिया के मुल्कों को महसूस हुआ कि अगर अब नहीं जागे को आने वाली सदी और पीढ़ियां कभी माफ नहीं करेंगी। ठीक उसी के आसपास भारत के असम राज्य में एक शख्स ने बाढ़ के रूप में तबाही के जिस मंजर को देखा उसके बाद उसने अपनी जिंदगी का मकसद बदल दिया। उस शख्स का नाम है जादव पायेंगे। ये वो शख्स हैं जिन्हें अब फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के तौर पर जाना जाता है और भारत सरकार ने उनकी इस काबिलियत का इनाम भी दिया। यहां हम जादव पायेंग की जूनून की बात करेंगे कि अगर कोई शख्स पर्यावरण को बचाने और उसके संरक्षण की ठान ले तो मुश्किलें भी उसके रास्ते से हट जाती हैं।
बाढ़, बंजर, जंगल और जादव पायेंग
जादव पायेंग ने असम में माजुली द्वीप में इकोसिस्टम में आई खराबी से बहुत दुखी और परेशान हुआ और उसके बाद उन्होंने एक फैसला किया जिसे कुछ लोग सनक कहा करते थे। उन्होंने कई सौ एकड़ में फैले बंजर सैंडबार में पेड़ लगाने का काम शुरू किया। इसके लिए उन्हें ताने सुनने पड़े। लेकिन अपने धुन के पक्के उस शख्स ने हार नहीं मानी और उस बंजर जमीन को जंगल में बदल दिया। उनकी कामयाबी को भारत में पहचान तो बाद में मिली। लेकिन अमेरिकी स्कूल ब्रिस्टल कनेक्टिकट के ग्रीन हिल्स स्कूल की कक्षा 6 के पाठ्यक्रम उनकी कामयाबी को शामिल किया गया ।.
( साभार-Facebook)
बंजर को जंगल बनाने में खपा दिए 40 वर्ष
पायेंग ने अपनी 40 साल से भी ज्यादा की ज़िंदगी इस जंगल की देखभाल खपा दी। करीब 550 एकड़ में फैला यह जंगल माजुली के बंजर सैंडबार के पास स्थित है। यह जगह जोरहाट से करीब 28 किलोमीटर दूर है। 1969 में इलाके में बाढ़ के बाद सूखा पड़ा और जमीन बंजर हो गई। करीब 10 वर्ष बाद पायेंग ने उस जगह को देखा तो अचरज में पड़ गए कि कैसे आबाद जगह वीरान हो गई। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि किस तरह से उस वीरान जगह को हरा भरा किया जा सकता है। वो लगातार उस जगह पर जाने लगे और देखा कि कुछ सांप वहां आते हैं उसके बाद उनके दिमाग में एक बात कौंधी कि बांस का पेड़ यहां लगाया जा सकता है। जिस समय पायेंग ने बंजर जमीन को हरा भरा बनाने का फैसला किया उस वक्त उनकी उम्र महज 16 साल थी।
(साभार- Grand Eastern Holidays)
क्या कहते हैं इलाके के लोग
इलाके के लोग कहते हैं कि जादव आज भी अपने दिन की शुरुआत अल सुबह करते हैं और अपने जंगल की देखभाल के लिए माजुली पहुंचते हैं। उनके इस लगन को देखकर लोग कहते हैं कि जादव के लिए, उनका जंगल ही उनका परिवार है। इलाके के लोग यह भी कहते हैं कि जादव को इस बात का कत्तई दुख नहीं होता कि उन्हें कोई क्या कहता था। उन्हें सिर्फ इस बात का दुख रहता था कि आखिक सालों पहले आबाद जमीन कैसे बर्बाद हो गई थी। उनके लिए पांच जून साल के दूसरे दिनों की ही तरह है क्योंकि वो इस विश्व पर्यावरण दिवस के लिए समर्पित दिन को हर साल उसी उत्साह के साथ मनाते हैें क्योंकि उनकी जिंदगी का एकमात्र सपना है जंगल के जरिए प्रकृति की हिफाजत।