नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं। सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच गतिरोध बना हुआ है। निकट भविष्य में नई दिल्ली और बीजिंग के संबंधों में सुधार होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं। फिर भी भारत इस पड़ोसी देश के साथ अपने संबंधों को लेकर निराश नहीं है। भारत का कहना है कि चीन यदि सकारात्मक माहौल बनाता है तो दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर सामान्य हो सकते हैं। खास बात यह है कि संबंधों में सुधार के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आठ सिद्धांतों का जिक्र किया है। जयशंकर का कहना है कि चीन यदि इन आठ बातों का पालन करता है तो दोनों देशों के संबंध एक बार फिर पटरी पर आ सकते हैं।
चीन अध्ययन पर 13वें अखिल भारतीय सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में पिछले वर्ष हुई घटनाओं ने दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों को मूलभूत सिद्धांत 'पारस्परिकता' होनी चाहिए। खासकर दोनों देशों के संबंध 'आपसी सम्मान' 'आपसी संवेदनशीलता' और 'आपसी हितों' के आधार पर तय होने चाहिए।
- विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर मौजूदा स्थिति की अनदेखी कर जीवन सामान्य रूप से चलते रहने की उम्मीद करना वास्तविकता नहीं है। जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के संबंध दोराहे पर हैं और इस समय चुने गए विकल्पों का न केवल दोनों देशों पर बल्कि पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ेगा। द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के उन्होंने आठ सूत्रीय सिद्धांत पेश किए।
- वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रबंधन पर पहले हुए समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना इसमें सर्वोपरि है।
- जो समझौते हुए हैं, उनका पूर्णतया पालन किया जाना चाहिए । वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से पालन और सम्मान किया जाना चाहिए। यथास्थिति को बदलने का कोई भी एकतरफा प्रयास पूर्णतया अस्वीकार्य है।
- सीमावर्ती इलाकों में शांति स्थापना चीन के साथ संबंधों के सम्पूर्ण विकास का आधार है और अगर इसमें कोई व्यवधान आयेगा तो नि:संदेह बाकी संबंधों पर इसका असर पड़ेगा।
- दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि बहु ध्रुवीय एशिया इसका एक महत्वपूर्ण परिणाम है।
- स्वाभाविक तौर पर हर देश के अपने अपने हित, चिंताएं एवं प्राथमिकताएं होंगी लेकिन संवेदनाएं एकतरफा नहीं हो सकतीं। अंतत: बड़े देशों के बीच संबंध की प्रकृति पारस्परिक होती है।
- उभरती हुई शक्तियां होने के नाते प्रत्येक देश की अपनी आकांक्षाएं होती हैं और इन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
- यह समझना होगा कि मतभेद हमेशा रहेंगे लेकिन उनका प्रबंधन हमारे संबंधों के लिये जरूरी है।
- यह समझना होगा कि भारत और चीन जैसे सभ्यता से जुड़े देशों को हमेशा दीर्घकालिक नजरिया रखना होगा।
जयशंकर ने कहा कि अगर संबंधों को स्थिर और प्रगति की दिशा में लेकर जाना है तो नीतियों में पिछले तीन दशकों के दौरान मिले सबक पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में संबंधों का बेहतर होना इस बात को स्पष्ट करता है कि क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता में बाधा नहीं आई और दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान किया।